11 अप्रैल, वो तारीख जब पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसा की चिंगारी वक्फ कानून के विरोध की आड़ में भड़काई गई, लेकिन जो हुआ वो सिर्फ एक विरोध नहीं था वो एक समुदाय विशेष पर सुनियोजित हमला था। हिंदू बस्तियों, मंदिरों, घरों और दुकानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया। इस हिंसा में हरगोबिंदो दास और चंदन मंडल सहित तीन लोगों की जान चली गई, जबकि जाफराबाद में उग्र भीड़ ने दो और निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया। स्थिति इतनी गंभीर थी कि 17 अप्रैल को कलकत्ता हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और दंगा पीड़ितों की पहचान और पुनर्वास के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की गई।
अब इसी घटना से जुड़ी एक रिपोर्ट सामने आई है, जो न सिर्फ दर्दनाक है बल्कि रोंगटे खड़े कर देने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार, इस हिंसा में बर्बरता की सारी हदें पार कर दी गईं। महिलाओं के कपड़े तक जलाए गए ताकि वे अपने शरीर को ढक भी न सकें। पानी की सप्लाई काट दी गई ताकि जिन घरों में आग लगाई गई थी, वहां उसे बुझाने का कोई साधन न बचे। सबसे गंभीर बात यह है कि इस सुनियोजित हमले में सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस के नेताओं की संलिप्तता भी उजागर हुई है। रिपोर्ट में साफ तौर पर बताया गया है कि हिंसा के समय स्थानीय टीएमसी पार्षद महबूब आलम और TMC विधायक अमीरुल इस्लाम मौके पर मौजूद थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमीरुल इस्लाम ने खुद देखा कि किन हिंदू घरों पर अभी तक हमला नहीं हुआ है, और फिर उन्हीं घरों को हमलावरों ने आग के हवाले कर दिया।
सबसे अधिक तबाही बेटबोना गांव में हुई, जहां 113 घर जलाकर खाक कर दिए गए। यह सिर्फ एक दंगा नहीं था, यह एक समुदाय को डराने और दबाने की कोशिश थी। इस रिपोर्ट ने ममता सरकार की भूमिका और उसकी मशीनरी की निष्क्रियता पर बेहद गंभीर और असहज सवाल खड़े कर दिए हैं। पुलिस मूकदर्शक बनी रही, जब हिन्दू घरों में आग लगाई गई, जब लोग चीखते रहे, और जब महिलाओं की गरिमा को सरेआम रौंदा गया। यह रिपोर्ट न सिर्फ न्याय व्यवस्था के सामने एक चुनौती है, बल्कि पूरे देश के सामने एक सच्चाई भी जिसे अनदेखा करना अब संभव नहीं।
रिपोर्ट्स में दर्ज पीड़िता का आँखों देखा हाल
कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा गठित जांच समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले महीने बंगाल के मुर्शिदाबाद के कई इलाकों में वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में राज्य के सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस का एक नेता शामिल था। हमलों का निर्देश स्थानीय पार्षद महबूब आलम ने दिया था। स्थानीय पुलिस पूरी तरह से निष्क्रिय और अनुपस्थित थी।
रिपोर्ट की मानें तो मुर्शिदाबाद में हिंसा कराने में तो सतारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की भागीदारी पर कोई शक नहीं है। क्योंकि, कोर्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा के दौरान स्थानीय तृणमूल पार्षद महूब आलम और शमशेरगंज TMC विधायक अमीरुल इस्लाम मौजूद थे। उन्होंने 11 अप्रैल को इलाके में दंगा कराया था. एक मामले में पंप और टैंकों को नष्ट कर दिया गया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि जली हुई संपत्तियों को बचाने के लिए पानी न हो।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा के दो दिनों में घिरे स्थानीय निवासियों ने मदद के लिए पुलिस को बार-बार कॉल किया, मगर कॉल का कोई जवाब नहीं मिला. पुलिस की गैरमौजूदगी में भीड़ कई घरों में घुस गई और टारगेट कर लोगों को निशाना बनाया. रिपोर्ट में बेलगाम दंगों के पीड़ितों के साथ तथ्य-खोजी पैनल की बातचीत का हवाला दिया गया है।