विदेश मंत्री एस जयशंकर की तालिबान से सीधी बातचीत के क्या हैं मायने?

भारत ने तालिबानी शासन को मान्यता नहीं दी है और दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच यह पहली बातचीत है

आमिर खान मुत्ताकी (बाएं) और एस. जयशंकर (दाएं)

आमिर खान मुत्ताकी (बाएं) और एस. जयशंकर (दाएं)

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आंतकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकियों के ठिकाने उड़ा दिए। इससे बौखलाए पाकिस्तान ने भारत के निर्दोष नागरिकों, पूजास्थलों और सैन्य ठिकानों पर हमले की कोशिश शुरू कर दी। इसके बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के कई एयरबेस उड़ा दिए और उसके सैन्य ठिकानों को भी निशाना बनाया। इस हमले के बाद चीन ने पाकिस्तान की तरफदारी शुरू कर दी और तुर्किये जैसे देश भी उसके समर्थन में आ गए जबकि इज़रायल ने खुलकर भारत का साथ दिया। इस संघर्ष के बाद एक डिप्लोमेटिक गतिरोध पैदा हो गया। भारत ने वैश्विक समुदाय से आतंकवाद पर कड़े कदम उठाने की मांग की और इसी कड़ी में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तालिबान के शासन वाले अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से भी बातचीत की है।

तालिबान ने 15 अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था। भारत ने तालिबानी शासन को मान्यता नहीं दी है और दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच यह पहली बातचीत है। इस बातचीत को ना केवल आतंकवाद के खिलाफ तालिबान के नज़रिए के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है बल्कि इसे पाकिस्तान को घेरने की दिशा में एक अहम कदम बताया जा रहा है। हालांकि, भारत और तालिबानी शासन के बीच यह पहली बातचीत नहीं है। इस वर्ष जनवरी में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दुबई में मुत्ताकी से बातचीत की थी।

जयशंकर ने बातचीत पर क्या कहा?

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुत्ताकी के साथ बातचीत के बाद ‘X’ पर इसे लेकर पोस्ट किया है। जयशंकर ने लिखा, “कार्यवाहक अफगान विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी से अच्छी बातचीत हुई। पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा करने के लिए उनका धन्यवाद किया है।” जयशंकर ने आगे लिखा, “उन्होंने हाल ही में भारत और अफगानिस्तान के बीच गलतफहमी फैलाने की कोशिशों को साफ तौर पर खारिज किया है। बातचीत में अफगान जनता के साथ भारत की पारंपरिक दोस्ती और उनके विकास में मदद जारी रखने की बात दोहराई गई। साथ ही, दोनों देशों के बीच सहयोग को आगे बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा हुई।

अफगानिस्तान ने बातचीत पर क्या कहा?

अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भी इस बातचीत पर बयान जारी किया है। अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय के जनसंपर्क निदेशक हाफिज़ ज़िया अहमद द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, “अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी ने भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से फोन पर बातचीत की। इस बातचीत में दोनों देशों के बीच आपसी रिश्तों को मज़बूत करने, व्यापार को बढ़ावा देने और कूटनीतिक संबंधों को और बेहतर बनाने पर चर्चा हुई।”

बयान में आगे कहा गया है, “मौलवी मुत्ताकी ने भारत को एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय देश बताया, जिसका अफगानिस्तान से ऐतिहासिक रिश्ता रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि दोनों देशों के संबंध और मजबूत होंगे और दोहराया कि अफगानिस्तान सभी देशों के साथ संतुलित विदेश नीति और रचनात्मक संवाद के लिए प्रतिबद्ध है।साथ ही उन्होंने भारत से अपील की कि अफगान व्यापारियों और मरीज़ों के लिए वीज़ा प्रक्रिया को आसान बनाया जाए और भारत में बंद अफगान कैदियों की रिहाई और वापसी की व्यवस्था की जाए।”

अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने आगे कहा, “भारत और अफगानिस्तान के लंबे और घनिष्ठ संबंधों को स्वीकार करते हुए, डॉ. एस. जयशंकर ने अफगानिस्तान को भारत की लगातार मदद का भरोसा दिलाया। उन्होंने राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में मिलकर काम करने की बात कही। साथ ही, अफगान कैदियों के मामलों के जल्दी समाधान और वीज़ा प्रक्रिया को तेज़ करने का वादा किया। अंत में, दोनों पक्षों ने चाबहार बंदरगाह को और विकसित करने के महत्व को भी दोहराया है।”

पहलगाम हमले और संघर्ष पर तालिबान ने क्या कहा था?

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद तालिबान ने इस हमले की निंदा करते हुए इसे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया था। अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल कहर बाल्खी द्वारा जारी एक बयान में कहा गया था, “अफगानिस्तान का विदेश मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हाल ही में पर्यटकों पर हुए हमले की कड़ी निंदा करता है और शोक संतप्त परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है। इस प्रकार की घटनाएँ क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के प्रयासों को नुकसान पहुंचाती हैं।”

तालिबानी शासन द्वारा भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालातों पर भी चिंता व्यक्त की गई थी। अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया था, “अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के विदेश मंत्रालय ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर चिंता व्यक्त की है और माना है कि इस तनाव का और बढ़ना क्षेत्र के हित में नहीं है। इस्लामिक अमीरात का यह भी कहना है कि सुरक्षा और स्थिरता पूरे क्षेत्र के सभी देशों के लिए सामूहिक हित में है। साथ ही, दोनों पक्षों से संयम बरतने और अपने विवादों का समाधान बातचीत और कूटनीति के माध्यम से करने की अपील की गई है।

क्या हैं इस बातचीत के मायने?

जयशंकर की तालिबान के साथ इस बातचीत के कई मायने निकाले जा रहे हैं। इसे ना केवल दोनों देशों के कूटनीतिक रिश्तों को बढ़ाने बल्कि व्यापार से लेकर पाकिस्तान को घेरने की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है। इससे पहले भारत और तालिबान के बीच राजनीतिक संपर्क 1999-2000 में हुआ था, जब दिसंबर 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी-814 के अपहरण के बाद तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह तालिबान के विदेश मंत्री वकील अहमद मुत्तवकिल के साथ बातचीत की थी।

भारत-तालिबान के लिए कूटनीतिक मायने

जयशंकर की यह बातचीत 2021 के बाद से भारत और अफगानिस्तान के बीच सबसे उच्च स्तर की सीधी बातचीत है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत तालिबान से बातचीत नहीं कर रहा है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी के अलावा विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी तालिबान के विदेश मंत्रालय से बातचीत कर चुके हैं। भले ही भारत ने अब तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है लेकिन इस बातचीत से कम-से-कम इतना तो पता चलता है कि भारत जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए व्यवहारिक कूटनीति अपना रहा है। भारत का अफगानिस्तान में हमेशा से यह प्रयास रहा है कि वहां स्थायित्व बना रहे और आतंकवाद को बढ़ावा न मिले। भारत द्वारा दी गई मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण में योगदान जैसी चीज़ें इस नीति का हिस्सा रही हैं। जयशंकर की यह बातचीत रिश्तों को औपचारिक मान्यता की ओर न सही लेकिन व्यावहारिक सहयोग और संपर्क बढ़ाने की दिशा में एक अहम कदम हो सकती है।

हाल ही में, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से मुलाकात की है। शरा को अबू मोहम्मद अल-जुलानी के नाम से भी जाना जाता है और कुछ समय पहले तक अमेरिका अल-शरा को आंतकी मानता था और उन पर करोड़ों का इनाम भी था। लेकिन भू-राजनीति में जिस तरह समीकरण बदल रहे हैं उसमें भारत में नई तरह से सोचने को मजबूर हुआ है।

क्षेत्रीय प्रभाव और मानवीय प्रभाव के लिए ज़रूरी

भारत-पाकिस्तान के संघर्ष ने क्षेत्र में नए तरह के समीकरण पैदा कर दिए हैं। पाकिस्तान के साथ संघर्ष से जूझ रहे भारत को चीन के साथ भी दो-दो हाथ करने पड़ रहे हैं। वहीं, बांग्लादेश में भी संघर्ष के हालात बने हुए हैं और म्यांमार पहले ही गृह युद्ध से जूझ रह हैं। ऐसे में भारत को क्षेत्र में अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए अफगानिस्तान को अपने पक्ष में करना ज़रूरी है और भारत की इस पहल क्षेत्रीय प्रभाव की दिशा में एक अहम कदम साबित हो सकती है। इसके अलावा अफगानिस्तान में भारत ने वर्षों तक स्कूल, सड़कें, अस्पताल और संसद भवन जैसे महत्वपूर्ण निर्माण कार्य किए हैं। तालिबान के आने के बाद भारत की वहां की उपस्थिति सीमित हो गई थी। अब यह संवाद भारत को एक रास्ता देता है जिससे वह अफगान जनता से जुड़ा रह सके, मानवीय सहायता जारी रख सके और अपने ऐतिहासिक संबंधों को बनाए रख सके।

चीन-पाकिस्तान के संतुलन की रणनीति

यह बातचीत पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से घेरने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है। तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद पाकिस्तान को उम्मीद थी कि अफगानिस्तान पूरी तरह उसके प्रभाव में रहेगा लेकिन भारत द्वारा तालिबान से सीधा संवाद स्थापित करने के बाद पाकिस्तान को इससे सीधी चुनौती मिलेगी। तालिबान और भारत के रिश्ते अगर पटरी पर आ जाते हैं तो पाकिस्तान का ‘इकलौता सहयोगी’ होने का दावा भी कमजोर पड़ जाएगा। मौजूदा समय में चीन और पाकिस्तान अफगानिस्तान में मिलकर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। चीन काफी वक्त से अफगानिस्तान में निवेश कर रहा है और उसके संतुलन के लिए ज़रूरी है कि भारत, तालिबान से खुलकर बातचीत करे।

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