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भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच अचानक इस्लामाबाद क्यों पहुंचे ईरान के विदेश मंत्री?

अरागची इस यात्रा के बाद वापस तेहरान लौट जाएंगे और 7-8 मई की यात्रा के लिए वापस भारत आएंगे

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
6 May 2025
in भू-राजनीति, समीक्षा
1971 के भारत-पाक युद्ध में ईरान ने पाकिस्तान का समर्थन किया था लेकिन वर्तमान में वह भारत के साथ भी अपने संबंधों को महत्व देता है

1971 के भारत-पाक युद्ध में ईरान ने पाकिस्तान का समर्थन किया था लेकिन वर्तमान में वह भारत के साथ भी अपने संबंधों को महत्व देता है

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ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची सोमवार (5 मई) की शाम पाकिस्तान पहुंचे हैं। पहलगाम आंतकी हमले के बाद जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है ऐसे में अरागची की इस यात्रा को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अरागची को इस हफ्ते ही भारत की यात्रा पर भी आना है जो यात्रा पूर्व नियोजित है। जब पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बची तनाव बढ़ना शुरू हुआ था तो ईरान ने ही सबसे पहले शांति स्थापित करने के लिए दोनों देशों के बीच मध्यस्थता का प्रस्ताव दिया था। अरागची ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान भी इस बात को दोहराया है। अरागची ने अपनी यात्रा के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सेना प्रमुख और विदेश मंत्री समेत कई प्रमुख लोगों से मुलाकात की है। अरागची इस यात्रा के बाद वापस तेहरान लौट जाएंगे और 7-8 मई की यात्रा के लिए वापस भारत आएंगे।

ईरान के विदेश मंत्री की पाक में क्या हुई बात?

अरागची की पाकिस्तान यात्रा पहलगाम आतंकी हमले के बाद किसी भी देश के उच्च अधिकारी की पहली पाकिस्तान यात्रा है। ऐसे में पाकिस्तान इस यात्रा को बेहद अहमियत दे रहा है। आम तौर पर ऐसी यात्राओं में सेना प्रमुखों की मुलाकात विदेश मंत्रियों से नहीं होती है लेकिन इस यात्रा के दौरान असीम मुनीर ने भी अब्बास अरागची से मुलाकात की है। मुनीर-अब्बास की इस बैठक को लेकर ईरान की न्यूज़ एजेंसी ‘इरना’ ने लिखा है, “इस बैठक में में भू-रणनीतिक वातावरण पर रचनात्मक चर्चा हुई, जिसमें सुरक्षा के क्षेत्र में दोनों देशों के सामने आने वाली चुनौतियों पर विशेष ध्यान दिया गया। जनरल मुनीर ने इस बात की पुष्टि की कि पाकिस्तान और ईरान भाईचारे के पड़ोसी हैं, जो साझा इतिहास, संस्कृति और धर्म के संबंधों से बंधे हुए हैं।”

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ईरान के विदेश मंत्री लगातार भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने पर ज़ोर देने की बात कर रहे हैं। उन्होंने दोनों देशों से अपने संबंधों को महत्वपूर्ण बताया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री और उप-प्रधानमंत्री मोहम्मद इशाक डार की बैठक को लेकर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा, “उन्होंने दक्षिण एशिया में उभरती स्थिति और अमेरिका-ईरान वार्ता को लेकर बातचीत की है और इस बात पर सहमति जताई कि जटिल मुद्दों को कूटनीति और बातचीत के जरिए सुलझाया जा सकता है।” पाकिस्तान पहुंचने पर अरागची ने कहा था कि ईरान और पाकिस्तान के संबंधों के अलावा क्षेत्र में भारत के साथ ईरान के संबंध भी महत्वपूर्ण हैं। अरागची ने भारत-पाकिस्तान को भाई जैसा पड़ोसी देश बताया है।

पहलगाम हमले में क्या बोले थे अरागची?

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने कम-से-कम 26 नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हमले में शामिल कुछ आतंकी पाकिस्तान से आए थे और कुछ पाकिस्तान में ट्रेनिंग लेकर आए थे। अरागची ने 23 अप्रैल को इस हमले की निंदा करते हुए कहा, “पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकवादी हमले की ईरान कड़ी निंदा करता है। हमारी संवेदनाएं और प्रार्थनाएं निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। हम भारत के लोगों और सरकार के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं।”

दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने पर 25 अप्रैल को अरागची ने एक और X पोस्ट में लिखा था, “भारत और पाकिस्तान, ईरान के भाई जैसे पड़ोसी हैं, जिनके बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध हैं। अन्य पड़ोसियों की तरह, हम उन्हें अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानते हैं। तेहरान इस कठिन समय में अधिक समझ बनाने के लिए इस्लामाबाद और नई दिल्ली में अपने दफ्तरों का इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं।” अरागची ने अपने पोस्ट में फारसी कवि सादी की एक कविता का भी ज़िक्र किया था। जिसका सार यही था कि सभी मनुष्य एक हैं और यदि एक सदस्य को दर्द होता है तो अन्य सदस्य भी बैचेन रहेंगे।

भारत-ईरान संबंध

भारत और ईरान के बीच सदियों से ऐतिहासिक संबंध रहे हैं और आज़ादी के बाद ये आर्थिक तौर पर और भी मज़बूत हुए हैं। भारत और ईरान ने 15 मार्च 1950 को मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद अप्रैल 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ईरान यात्रा के दौरान तेहरान घोषणा और 2003 में ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति सैय्यद मोहम्मद खातमी की दिल्ली यात्रा के दौरान दिल्ली घोषणा पर हस्ताक्षर के बाद यह सहयोग और अधिक गहरे हुए हैं। दोनों के व्यापार संबंध भी मज़बूत हैं और साल 2022-23 में भारत और ईरान के बीच करीब 2.5 अरब डॉलर का कारोबार हुआ। ईरान के शीर्ष पांच कारोबारी सहयोगी देशों में भारत भी शामिल है। इसके अलावा भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह में करीब 50 करोड़ डॉलर का निवेश किया है जिसके जरिए भारत अफगानिस्तान और मध्य एशिया के बाज़ारों तक अपनी पहुंच बनाना चाहता है।

‘युद्ध’ रोकने की ईरान के कोशिश के क्या हैं मायने?

पहलगाम आतंकी हमले के बाद ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान ने इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत की थी और उनकी पाकिस्तान से प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ से भी बात हुई थी। ईरान की भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध रोकने की कोशिश के कई भू-राजनीतिक, क्षेत्रीय और कूटनीतिक मायने हैं। पाकिस्तान के साथ ईरान बॉर्डर साझा करता है और भारत के साथ उसके संबंध ऐतिहासिक और पारंपरिक रूप से दोस्ताना रहे हैं ऐसे में भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव ईरान के लिए बड़ी कूटनीतिक चुनौती के तौर पर सामने आएगा।

भारत-पाकिस्तान के बीच अगर युद्ध होता है तो इससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ेगी जिससे ईरान के लिए आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियां पैदा होंगी, खासकर ब्लूचिस्तान के क्षेत्र में। ईरान की सीमा पर पाकिस्तान का ब्लूचिस्तान राज्य है जो विद्रोह से जूझ रहा है, ब्लूचिस्तान के लोग पाकिस्तान से आज़ादी की मांग कर रहे हैं। करीब एक हफ्ते पुरानी एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि एक महीने में ही ईरान में बलूचिस्तान के 33 कैदियों को फांसी पर लटका दिया गया था। ऐसे में ब्लूचों में भी ईरान के खिलाफ गुस्सा पनप रहा है और हमले की स्थिति में यह खुलकर बाहर आ सकता है। ऐसे में ईरान चाहता है कि भारत-पाकिस्तान के बीच शांति और स्थिरता बनी रही ताकि बलूच लोग पाकिस्तान के खिलाफ अंदरूनी लड़ाई में उलझे रहें।

ईरान के लिए यह मध्यस्थता उसकी क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने की कोशिश का हिस्सा हो सकती है। अमेरिका, सऊदी अरब और अन्य पश्चिमी देशों के साथ तनाव के बीच, ईरान दक्षिण एशिया में एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में उभरना चाहता है। भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता जैसा कदम उसे वैश्विक मंच पर एक मध्यस्थ की भूमिका में स्थापित कर सकता है। भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाओं के कारण मजबूत रणनीतिक साझेदारी है। ईरान नहीं चाहता कि भारत के साथ उसके संबंध किसी भी तरह प्रभावित हों। 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में ईरान ने पाकिस्तान का समर्थन किया था लेकिन वर्तमान में वह भारत के साथ भी अपने संबंधों को महत्व देता है।

ईरान ने इस मामले में तटस्थता बनाए रखने की कोशिश की है। पहलगाम हमले की निंदा करते हुए उसने न तो स्पष्ट रूप से पाकिस्तान का समर्थन किया और न ही भारत का। यह रुख ईरान की उस रणनीति को दर्शाता है, जिसमें वह दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखना चाहता है। ईरान के लिए भारत एक महत्वपूर्ण आर्थिक और रणनीतिक साझेदार है (खासकर चाबहार बंदरगाह के संदर्भ में) जबकि पाकिस्तान के साथ भी उसके गहरे संबंध रहे हैं। सीधे तौर पर देखें तो ईरान की मध्यस्थता की कोशिश क्षेत्रीय शांति, उसके अपने भू-राजनीतिक हितों और दोनों देशों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है।

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