क्यों इस्तीफा देने की बात करने लगे हैं ‘कट्टरपंथी’ यूनुस; बांग्लादेशी सेना से बिगड़ी बात या कोई और दबाव?

पर्दे के पीछे किसी और 'जनरल प्लान' की क्या है कहानी

मोहम्मद यूनुस

मोहम्मद यूनुस (Image Source: IANS)

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के इस्तीफे की अटकलें अब सिर्फ कानाफूसी नहीं रहीं ये एक राजनीतिक विस्फोट के मुहाने पर खड़ी सच्चाई की तरह सामने आ रही हैं। राजनीतिक दलों के बीच बढ़ती असहमति, सेना की खुली चुनौती और एक असहाय नेतृत्व की झलक देते ‘कट्टरपंथी’ यूनुस अब खुद इस कुर्सी को छोड़ने पर विचार कर रहे हैं। छात्र संगठन नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) के प्रमुख एनहिद इस्लाम ने बीबीसी बांग्ला को बताया कि उन्होंने यूनुस से इस मुद्दे पर मुलाकात की थी, जहां उन्हें साफ तौर पर कहा गया कि “मैं इस बारे में सोच रहा हूं।”

यूनुस का मानना है कि जब तक सियासी ताकतों के बीच न्यूनतम सहमति नहीं बनती, तब तक अंतरिम सरकार का काम करना नामुमकिन है। लेकिन ये संकट सिर्फ भीतर से नहीं फूटा इसकी जड़ें सत्ता के दो सिरों के बीच हो रहे एक खतरनाक टकराव में भी हैं। गुरुवार को सैन्य मुख्यालय में अधिकारियों को संबोधित करते हुए आर्मी चीफ जनरल वकार-उज-जमा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आम चुनाव दिसंबर से आगे नहीं बढ़ाए जा सकते। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यूनुस सरकार के पास संवेदनशील राष्ट्रीय मुद्दों पर कोई नैतिक या संवैधानिक अधिकार नहीं है। रखाइन कॉरिडोर को लेकर भी सेना मार्च से कहती आ रही है कि बिना सैन्य सहमति के उसका निर्माण पूरी तरह अवैध होगा और अब ये मतभेद खुलकर देश की स्थिरता को डांवाडोल करने लगे हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री ने भी चुनाव के लिए कहा

इस राजनीतिक उठापटक में अब खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएनपी ने भी अपनी चुप्पी तोड़ दी है और यूनुस सरकार पर सीधा दबाव बनाना शुरू कर दिया है। पार्टी ने चुनाव दिसंबर 2025 में कराने की मांग दोहराते हुए साफ शब्दों में कहा है कि अगर सरकार जल्द कोई ठोस चुनावी रोडमैप तैयार कर उसे सार्वजनिक नहीं करती, तो उनके लिए अंतरिम सरकार के साथ किसी भी तरह का सहयोग जारी रखना संभव नहीं होगा। इस बयान ने सत्ता के गलियारों में हलचल और गहरी कर दी है।

डॉ. यूनुस जहां अब तक चुनावों को जनवरी से जून 2026 के बीच कराने की बात कहते रहे हैं, वहीं सेना पहले ही इस प्रस्ताव को लेकर असहमति जता चुकी है। सैन्य नेतृत्व स्पष्ट कर चुका है कि चुनाव दिसंबर से आगे नहीं टलने चाहिए। यही असहमति अब सरकार और सेना के बीच एक नए टकराव का कारण बनती दिख रही है, जो किसी भी वक्त बड़ा रूप ले सकती है।

इस राजनीतिक खींचतान में कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी की भूमिका भी कम विस्फोटक नहीं है। वह भी चुनाव को आगे बढ़ाने के पक्ष में है, जिससे संकट की दिशा और जटिल हो गई है। सूत्रों का कहना है कि यूनुस सरकार को उम्मीद थी कि उसे पांच साल तक काम करने का समय मिलेगा, लेकिन अब हालात ने करवट ले ली है। छात्र संगठनों का दबाव, सेना की सख्ती और राजनीतिक दलों की नाराज़गी ने सरकार की नींव को हिला दिया है। गृह मंत्रालय के सलाहकार भले यह कह रहे हों कि जनता चाहती है सरकार को पूरा कार्यकाल मिले, लेकिन सेना का रुख कुछ और ही संकेत देता है। सैन्य अधिकारियों ने यह तक कह दिया है कि अगर सरकार अपनी ज़िद पर अड़ी रही, तो हालात हाथ से निकल सकते हैं। ऐसे में सवाल अब सिर्फ एक इस्तीफे का नहीं, बल्कि पूरे राजनीतिक संतुलन के ढहने का है और बांग्लादेश एक बार फिर एक बेहद नाज़ुक मोड़ पर खड़ा है।

क्यों आया था सेना और यूनस में तकरार

सेना और यूनुस के बीच चल रही तकरार की असली वजह एक और संवेदनशील मसले से जुड़ी है म्यांमार सीमा पर रखाइन जिले में कथित “मानवीय कॉरिडोर” बनाने की योजना ने सरकार और सैन्य नेतृत्व को आमने-सामने ला खड़ा किया है। विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने हाल ही में ऐलान किया था कि अंतरिम सरकार ने अमेरिका की ओर से प्रस्तावित इस रखाइन कॉरिडोर पर सहमति जता दी है। यही बयान बाद में एक बड़े विवाद का कारण बना।

जैसे ही यह जानकारी सेना तक पहुँची, अंदरूनी असहमति अब खुली नाराज़गी में बदल गई। सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमा ने इसे साफ शब्दों में “खूनी कॉरिडोर” करार देते हुए सरकार को चेताया कि बांग्लादेश की सेना कभी भी ऐसी किसी योजना का हिस्सा नहीं बनेगी, जो देश की संप्रभुता को चोट पहुंचाए। उन्होंने दो टूक कहा कि न तो सेना इसमें शामिल होगी और न ही किसी और को इसकी इजाज़त दी जाएगी। इस तीखे विरोध के बाद यूनुस सरकार ने अचानक रुख पलटते हुए सफाई दी कि उन्होंने किसी भी देश के साथ रखाइन कॉरिडोर को लेकर कोई औपचारिक समझौता नहीं किया है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी सेना और सरकार के रिश्तों में दरार साफ नज़र आने लगी थी, और यह साफ हो गया कि मामला सिर्फ नीतिगत मतभेद का नहीं, बल्कि भरोसे के संकट का भी है। यह विवाद सिर्फ एक गलियारे तक सीमित नहीं रहा इसकी झलक अब यूनुस के इस्तीफे की अटकलों और संभावित तख्तापलट की आशंका में दिख रही है।

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