धीरेंद्र शास्त्री ने पहनी 65 हजार की जैकेट, हजारों का चश्मा; कहां गई सनातन की त्याग वाली सीख?

बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इन दिनों 65 हजार की जैकेट, हजारों का चश्मे के लिए ट्रोल हो रहे हैं। इसका जवाब भी उन्होंने दिया है। इससे सवाल उठता है कि क्या यही सनातन की सीख है?

Baba Bageshwar Dham Dhirendra Shastri

Baba Bageshwar Dham Dhirendra Shastri

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को आमतौर पर बाबा बागेश्वर के नाम से जाना जाता है। धीरेंद्र कृष्ण हाल के वर्षों में देश भर में एक जाना-पहचाना चेहरा बन गए हैं। दरबार में वह कथित तौर पर लोगों के मन की बात जान लेते हैं और समस्याओं का समाधान भी बताते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का नाम मौजूदा समय में सनातन धर्म के एक प्रमुख प्रचारक के रूप में उभरा है। उनके भक्तों की बड़ा इजाफा हुआ है। हालांकि, विवादों से भी उनका गहरा नाता रहा है। हाल ही में उन्होंने 60,000 की जैकेट और लग्जरी चश्मा पहनकर खुद को डिफेंड किया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर जो सनातन त्याग सिखाता है उसके पुरोधा बनकर ऐसी सुविधाओं का उपभोग करना और उसके बाद बचकानी सफाईयां देना कितना जायज है?

बता दें बाबा बागेश्वर धीरेंद्र शास्त्री इन दिनों 17 दिनों के विदेश दौरे पर हैं। वह ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और फिजी की यात्रा कर रहे हैं। यहां वो हनुमत कथा सुनाएंगे। फिलहाल वो फिजी में है। यहां उनकी कथा चल रही है। इससे पहले उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में बेहद महंगे सामानों का इस्तेमाल किया है जिस कारण निशाने पर आ रहे हैं।

महंगा जैकेट और चश्मा

ऑस्ट्रेलिया दौरे पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री यानी बागेश्वर बाबा की तस्वीरें सामने आईं हैं। इसमें वो एक महंगी नॉर्थ फेस (North Face) की जैकेट पहने हुए हैं। कथित तौर पर इसकी कीमत 65 हजार रुपये बताई जा रही है। इतना ही नहीं उनकी एक और तस्वीर सामने आई है जिसमें वो समुद्र किनारे गुच्ची (Gucci) का महंगा चश्मा पहने नजर आए है। इस चश्मे की कीमत भी हजारों में बताई जा रही है।

अब पढ़िए धीरेंद्र शास्त्री के बयान

  • ‘जिसे परेशानी है, वो सुन ले। ये जैकेट हमारी नहीं है, शिष्यों ने दी है। और हां, अगर इतनी ही जलन है तो कल 1 लाख 20 हजार की जैकेट पहनूंगा। तुम वीडियो बनाना और वायरल करना। हम नहीं सुधरेंगे।’ 
  • ‘ऑस्ट्रेलिया में कथा कर रहे हैं। बहुत ठंडी थी, तो चेलों से कहा कोई जैकेट खरीदो। एक बच्ची दीक्षा ले चुकी थी, उसने जैकेट खरीदी। किसी बड़ी कंपनी की थी, 60 से 65 हजार की रही होगी। जब हमने समुद्र में आंखों में जलन महसूस की तो चश्मा पहन लिया। वो भी गुच्ची का था।’ 
  • ‘बड़े-बड़े बलात्कारी, बड़े-बड़े नचैया…जो समाज को दारू पीने का उपदेश देते है, जो सिगरेट पीकर बच्चों को बर्बाद करते है। गंदी-गंदी फिल्में बनाकर तुम्हारे टिकट के पैसों से ऐश-ओ-आराम करते हैं, उन पर कमेंट करने में तो तुम्हारी नानी मर जाती है। लेकिन, हिंदुओं को ट्रोल करने में तुम्हें मजा आता है।’

क्या सनातन के विपरीत नहीं है धीरेंद्र शास्त्री के जवाब?

समस्या इस बात पर नहीं है कि उन्होंने महंगा जैकेट और चश्मा इस्तेमाल किया। मसला ये भी नहीं है कि उन्होंने खुद खरीदी या उनके भक्तों ने उन्हें भेंट दी। समस्या तो यहां पर आती है कि एक तो धीरेंद्र शास्त्री ने इतनी लग्जरी चीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऊपर से वो अपने बचाव में ऐसे उत्तर दे रहे हैं जो एकदम से सनातन के विपरीत चला जाता है।

सनातन के मूल्य शांति, निस्वार्थ और अहंकार रहित

सनातन में त्याग को महत्वपूर्ण जीवन मूल्य के रूप में देखा जाता है। इसमें भौतिकता से अलगाव के साथ अहंकार, मोह और आसक्ति का त्याग शामिल है। सनातन परंपरा हमें सिखाती है कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं बल्कि आंतरिक शांति और संतोष में है। बिना लोभ के निस्वार्थ कर्म के साथ अहंकार से रहित होना ही सनातन का परम ज्ञान है। ये हमें खुद को कष्ट में रख दूसरों की सेवा करने की सीख देता है जिससे आत्मा की शुद्धि होने के साथ जीवन के वास्तविक अर्थ समझने में मदद मिलती है।

कहां तक जायज है डिफेंड करना?

ऐसा लोग मानते हैं कि धीरेंद्र शास्त्री के प्रवचन और बयान सनातन धर्म की श्रेष्ठता और इसके मूल्यों की रक्षा के लिए होते हैं। वो हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं। इससे प्रभावित होकर देश का बड़ा युवा वर्ग उनसे जुड़ रहा है। ऐसे में बेहद लग्जरी चीजों पर सवाल पूछे जाने पर उनके जवाब कहीं न कहीं सनातन के मूल्यों के विपरीत नजर आते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उनका खुद को डिफेंड करना कहां तक जायज है?

धीरेंद्र शास्त्री से सवाल इसलिए भी पूछा जाना चाहिए कि उनका जन्म छतरपुर के गढ़ा गांव में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनको पहली दीक्षा देने वाले उनके दादाजी खुद एक संत थे। उन्होंने अपना जीवन बेहद कमी के साथ ईश्वर भक्ति में गुजारा। शास्त्री खुद दावा करते हैं कि कम उम्र में ही हनुमानजी की कृपा मिल गई थी। उनके अनुयायी उन्हें हनुमानजी का भक्त और अवतार भी मानते हैं। ऐसे में उनके आत्ममुग्ध बयान देना और इस तरह से डिफेंड करना समाज को क्या सीख देगा?

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