TMC में संकट! कोलकाता लॉ कॉलेज गैंगरेप मामले में कैसे दो फाड़ होती जा रही है पार्टी?

कोलकाता में हुए एक दिल दहला देने वाले सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (TMC) खुद को सिर्फ जनता के गुस्से ही नहीं बल्कि आंतरिक उठापटक के गंभीर संकट में घिरा हुआ पा रही है।

मौजूदा संकट के दौरान ममता बनर्जी की चुप्पी ने लोगों को चौंका दिया है (FILE PHOTO)

मौजूदा संकट के दौरान ममता बनर्जी की चुप्पी ने लोगों को चौंका दिया है (FILE PHOTO)

कोलकाता में हाल ही में सामने आए एक दिल दहला देने वाले सामूहिक बलात्कार मामले ने न सिर्फ आम जनता को झकझोर दिया है, बल्कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) के भीतर भी हलचल मचा दी है। इस संवेदनशील मुद्दे पर एकजुटता और सहानुभूति दिखाने के बजाय पार्टी के शीर्ष नेता आपस में ही उलझते नजर आ रहे हैं। घटना के बाद जहां लोगों का गुस्सा उफान पर है, वहीं TMC के कई वरिष्ठ नेता सार्वजनिक मंचों पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। यह राजनीतिक खींचतान न सिर्फ नेतृत्व की संवेदनहीनता को दर्शाती है, बल्कि इससे पार्टी के भीतर मौजूद गहरे मतभेद और संकट भी उजागर हो रहे हैं।

क्या है पूरा मामला?

25 जून को कोलकाता में 24 वर्षीय एक कानून की पढ़ाई कर रही एक लड़की के साथ दक्षिण कोलकाता के लॉ कॉलेज परिसर के अंदर कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया। आरोप है कि पीड़िता को देर रात कॉलेज परिसर में एक पूर्व छात्र मोनोजीत मिश्रा बहला-फुसलाकर ले गया, जो टीएमसी की छात्र शाखा TMCCP (TMC Chhatra Parishad) से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है। इस मामले में प्रमित मुखर्जी और जैब अहमद नाम के दो अन्य आरोपी, साथ ही एक कॉलेज सुरक्षा गार्ड को भी गिरफ्तार किया गया है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस अपराध को ‘बर्बर’ और ‘सुनियोजित’ करार देते हुए इसकी सीबीआई निगरानी में जांच की मांग की है। साथ ही, कोर्ट ने राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका जताते हुए कानून व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं।

इन घटनाओं के बाद जनता में भारी आक्रोश है, विरोध प्रदर्शन तेज हो चुके हैं और राज्य सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस गंभीर स्थिति पर एकजुट और संवेदनशील प्रतिक्रिया देने के बजाय, टीएमसी के कई वरिष्ठ नेता आपसी आरोप-प्रत्यारोप में उलझे नजर आ रहे हैं। जिस समय पार्टी को जनता के साथ खड़े होने और न्याय की मांग को मजबूती से उठाने की जरूरत थी, उस समय टीएमसी नेताओं की बयानबाज़ी और अंदरूनी गुटबाज़ी ने पूरे घटनाक्रम को और भी शर्मनाक बना दिया है। जनता का भरोसा डगमगाता नजर आ रहा है और सवाल ये उठ रहा है कि क्या टीएमसी इन अपराधों पर सिर्फ सियासत तक सीमित रह जाएगी, या वाकई दोषियों को न्याय के कटघरे तक पहुंचाएगी?

किसने क्या कहा?

कोलकाता में हुए सामूहिक बलात्कार मामले के बाद जहां जनता न्याय और जवाबदेही की मांग कर रही है, वहीं तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेतृत्व की दिशा पूरी तरह भटकती नजर आ रही है।

TMC के विधायक मदन मित्रा ने कहा कि अगर कोई आपको बंद कॉलेज में पद का वादा करके बुलाता है, तो मत जाइए। उन्होंने कहा, “अगर उसने किसी को सूचित किया होता, तो ऐसा नहीं होता।” इस बयान को व्यापक रूप से पीड़िता को दोषी ठहराने वाला माना गया। पार्टी ने उन्हें कारण बताओ नोटिस तो दिया लेकिन कोई माफी नहीं मांगवाई गई।

TMC सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, “अगर कोई दोस्त दोस्त का बलात्कार करता है तो क्या किया जा सकता है? पुलिस हर जगह नहीं रह सकती है।” साथ ही, उन्होंने पार्टी की सांसद महुआ मोइत्रा पर भी निजी हमला किया है। उन्होंने कहा, “महुआ अपने हनीमून के बाद भारत वापस आ गई है और मुझसे लड़ने लगी है! वह मुझ पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाती है। वह क्या हैं? उन्होंने 40 साल की शादी तोड़कर 65 साल के आदमी से शादी कर ली है। क्या उसने महिला को चोट नहीं पहुंचाई?”

वहीं, TMC की सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि भारत में महिलाओं के प्रति घृणा पार्टी लाइन से परे है। उन्होने कहा कि फर्क यह है कि हम इसका विरोध करते हैं, चाहे वो हमारे अपने लोगों से ही क्यों न हो। उनके रुख की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा की गई, लेकिन इसने पार्टी के अंदर गहरे मतभेदों को भी उजागर किया। जवाब में, TMC ने दावा किया कि मित्रा और बनर्जी की टिप्पणियां ‘व्यक्तिगत’ थीं और पार्टी के विचारों को नहीं दर्शाती हैं। लेकिन हल्की चेतावनियों के अलावा, अब तक कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई है

कहां हैं ममता बनर्जी?

यह सवाल इन दिनों हर तरफ गूंज रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को आमतौर पर एक सशक्त और निर्णायक नेता के रूप में देखा जाता है, जो पार्टी मामलों पर पूरी पकड़ रखती हैं। लेकिन मौजूदा संकट के दौरान उनकी चुप्पी ने सबको चौंका दिया है। जहां उनसे मुखर बयान या सार्वजनिक प्रतिक्रिया की उम्मीद थी, वहीं उन्होंने खुद को बंद कमरों की बैठकों और आंतरिक सलाह-मशविरों तक सीमित रखा है कि जो उनके जैसे तेजतर्रार और माइक पर हावी रहने वाले नेता के लिए असामान्य है।

उनकी इस खामोशी ने कई तरह की अटकलों को जन्म दे दिया है। क्या ममता अब पार्टी पर अपनी पकड़ खो रही हैं? अब तक टीएमसी में उनकी नेतृत्व शैली बेहद केंद्रीकृत और प्रभावशाली रही है। लेकिन जब पार्टी के वरिष्ठ नेता खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे हैं और शीर्ष स्तर से कोई स्पष्ट दिशा नहीं मिल रही, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या टीएमसी धीरे-धीरे अराजकता की ओर बढ़ रही है और ममता बनर्जी का नेतृत्व अंदर ही अंदर चुनौती में घिरता जा रहा है?

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