TFIPOST English
TFIPOST Global
tfipost.in
tfipost.in
कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
  • राजनीति
    • सभी
    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
    ₹58 करोड़ का खेल! गुरुग्राम लैंड स्कैम में रॉबर्ट वाड्रा पर कसा शिकंजा

    ₹58 करोड़ का खेल! गुरुग्राम लैंड स्कैम में रॉबर्ट वाड्रा पर कसा शिकंजा, हो सकती है यह सजा

    पीएम मोदी ने ट्रप को दिया करारा जवाब।

    पीएम मोदी ने ट्रंप की मृत अर्थव्यवस्था वाले बयान का दिया जवाब, जल्द ही तीसरे पायदान पर पहुंचेगा भारत

    बिहार में राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों की निकली हवा, जानें क्या है मामला?

    बिहार में राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों की निकली हवा, जानें क्या है मामला?

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रक्षाबंधन

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रक्षाबंधन

    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
  • अर्थव्यवस्था
    • सभी
    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
    भारत बना अमेरिका को सबसे ज़्यादा स्मार्टफोन भेजने वाला देश, इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण पहुँचा ₹12 लाख करोड़ के पार

    भारत बना अमेरिका को सबसे ज़्यादा स्मार्टफोन भेजने वाला देश, इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण पहुँचा ₹12 लाख करोड़ के पार

    पीएम मोदी ने ट्रप को दिया करारा जवाब।

    पीएम मोदी ने ट्रंप की मृत अर्थव्यवस्था वाले बयान का दिया जवाब, जल्द ही तीसरे पायदान पर पहुंचेगा भारत

    पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति से की बात, द्विपक्षीय सम्मेलन में भारत आने का दिया न्योता

    पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति से की बात, द्विपक्षीय सम्मेलन में भारत आने का दिया न्यौता

    रिकॉर्ड 50% टैरिफ के चलते ट्रंप ने भारत के साथ व्यापार वार्ता से किया इनकार

    रिकॉर्ड 50% टैरिफ के चलते ट्रंप ने भारत के साथ व्यापार वार्ता से किया इनकार

    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
  • रक्षा
    • सभी
    • आयुध
    • रणनीति
    पाकिस्तान पर ऐसे बरसा भारतीय वायुसेना कहर, देखें वीडियो

    पाकिस्तान पर ऐसे बरसा भारतीय वायुसेना कहर, देखें वीडियो

    असीम मुनीर के बयानों से भारत-पाकिस्तान संबंधों को और बिगाड़ दिया है।

    असीम मुनीर की धमकी पर भारत का पलटवार: पाकिस्तान को बताया गैर-ज़िम्मेदार परमाणु ताकत

    सैनिकों को जल्द मिलंगी नई चौकियां।

    LAC पर के लिए तैनात जवानों के लिए बड़ी खबर, अब दुश्मन ही नहीं, मौसम भी होगा पस्त

    'जल्द हो सकता है अगला युद्ध': सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने की ये अपील

    सेना प्रमुख की बड़ी चेतावनी: ‘जल्द हो सकता है अगला युद्ध’

    • आयुध
    • रणनीति
  • विश्व
    • सभी
    • AMERIKA
    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
    असीम मुनीर के बयानों से भारत-पाकिस्तान संबंधों को और बिगाड़ दिया है।

    असीम मुनीर की धमकी पर भारत का पलटवार: पाकिस्तान को बताया गैर-ज़िम्मेदार परमाणु ताकत

    ‘सुपर’ कहलाने वाला जेट फिर पस्त, F-35B की जापान में इमरजेंसी लैंडिंग

    ‘सुपर’ कहलाने वाला जेट फिर पस्त, F-35B की जापान में इमरजेंसी लैंडिंग

    अमेरिकी धरती से पाक सेना प्रमुख की गीदड़भभकी, आधी दुनिया को ले जाएंगे अपने साथ

    अमेरिकी धरती से पाक सेना प्रमुख की गीदड़भभकी, आधी दुनिया को ले जाएंगे अपने साथ

    पीएम मोदी ने ट्रप को दिया करारा जवाब।

    पीएम मोदी ने ट्रंप की मृत अर्थव्यवस्था वाले बयान का दिया जवाब, जल्द ही तीसरे पायदान पर पहुंचेगा भारत

    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
  • ज्ञान
    • सभी
    • इतिहास
    • संस्कृति
    औपनिवेशिक मिथक का पर्दाफ़ाश: हुमायूं-रानी कर्णावती राखी की झूठी कहानी और रक्षाबंधन की असली प्राचीन हिंदू उत्पत्ति

    ऐतिहासिक झूठ का खुलासा: हुमायूं-रानी कर्णावती राखी की झूठी कहानी और रक्षाबंधन की असली प्राचीन हिंदू उत्पत्ति

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रक्षाबंधन

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रक्षाबंधन

    भारत में ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ का औचित्य…?

    भारत में ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ का औचित्य…?

    दिल्ली में आरएसएस करेगा लोगों से संवाद, संघ प्रमुख देंगे इन सवालों के जवाब

    दिल्ली में आरएसएस करेगा लोगों से संवाद, संघ प्रमुख देंगे इन सवालों के जवाब

    • इतिहास
    • संस्कृति
  • बैठक
    • सभी
    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
    स्मृति ईरानी की टीवी पर शानदार वापसी, रुपाली गांगुली और हिना खान को पछाड़ बनीं हाईएस्ट पेड टीवी स्टार

    स्मृति ईरानी की टीवी पर शानदार वापसी, रुपाली गांगुली और हिना खान को पछाड़ बनीं हाईएस्ट पेड टीवी स्टार

    लद्दाख में ISRO का Mini Mars मिशन: होप सिमुलेशन से अंतरिक्ष की अगली छलांग

    क्या है भारत का मिशन HOPE और लद्दाख में क्यों जुटे हैं ISRO के वैज्ञानिक ?

    19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने रचा इतिहास, बनीं FIDE वर्ल्ड कप जीतने वाली पहली भारतीय महिला

    19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने रचा इतिहास, बनीं FIDE वर्ल्ड कप जीतने वाली पहली भारतीय महिला

    मेघालय में विवाह से पहले अनिवार्य एचआईवी जांच: क्या कानून वहां सफल होगा जहां संस्कृति असफल रही?

    मेघालय में विवाह से पहले अनिवार्य एचआईवी जांच: क्या कानून वहां सफल होगा जहां संस्कृति असफल रही?

    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
  • प्रीमियम
tfipost.in
  • राजनीति
    • सभी
    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
    ₹58 करोड़ का खेल! गुरुग्राम लैंड स्कैम में रॉबर्ट वाड्रा पर कसा शिकंजा

    ₹58 करोड़ का खेल! गुरुग्राम लैंड स्कैम में रॉबर्ट वाड्रा पर कसा शिकंजा, हो सकती है यह सजा

    पीएम मोदी ने ट्रप को दिया करारा जवाब।

    पीएम मोदी ने ट्रंप की मृत अर्थव्यवस्था वाले बयान का दिया जवाब, जल्द ही तीसरे पायदान पर पहुंचेगा भारत

    बिहार में राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों की निकली हवा, जानें क्या है मामला?

    बिहार में राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों की निकली हवा, जानें क्या है मामला?

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रक्षाबंधन

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रक्षाबंधन

    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
  • अर्थव्यवस्था
    • सभी
    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
    भारत बना अमेरिका को सबसे ज़्यादा स्मार्टफोन भेजने वाला देश, इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण पहुँचा ₹12 लाख करोड़ के पार

    भारत बना अमेरिका को सबसे ज़्यादा स्मार्टफोन भेजने वाला देश, इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण पहुँचा ₹12 लाख करोड़ के पार

    पीएम मोदी ने ट्रप को दिया करारा जवाब।

    पीएम मोदी ने ट्रंप की मृत अर्थव्यवस्था वाले बयान का दिया जवाब, जल्द ही तीसरे पायदान पर पहुंचेगा भारत

    पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति से की बात, द्विपक्षीय सम्मेलन में भारत आने का दिया न्योता

    पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति से की बात, द्विपक्षीय सम्मेलन में भारत आने का दिया न्यौता

    रिकॉर्ड 50% टैरिफ के चलते ट्रंप ने भारत के साथ व्यापार वार्ता से किया इनकार

    रिकॉर्ड 50% टैरिफ के चलते ट्रंप ने भारत के साथ व्यापार वार्ता से किया इनकार

    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
  • रक्षा
    • सभी
    • आयुध
    • रणनीति
    पाकिस्तान पर ऐसे बरसा भारतीय वायुसेना कहर, देखें वीडियो

    पाकिस्तान पर ऐसे बरसा भारतीय वायुसेना कहर, देखें वीडियो

    असीम मुनीर के बयानों से भारत-पाकिस्तान संबंधों को और बिगाड़ दिया है।

    असीम मुनीर की धमकी पर भारत का पलटवार: पाकिस्तान को बताया गैर-ज़िम्मेदार परमाणु ताकत

    सैनिकों को जल्द मिलंगी नई चौकियां।

    LAC पर के लिए तैनात जवानों के लिए बड़ी खबर, अब दुश्मन ही नहीं, मौसम भी होगा पस्त

    'जल्द हो सकता है अगला युद्ध': सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने की ये अपील

    सेना प्रमुख की बड़ी चेतावनी: ‘जल्द हो सकता है अगला युद्ध’

    • आयुध
    • रणनीति
  • विश्व
    • सभी
    • AMERIKA
    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
    असीम मुनीर के बयानों से भारत-पाकिस्तान संबंधों को और बिगाड़ दिया है।

    असीम मुनीर की धमकी पर भारत का पलटवार: पाकिस्तान को बताया गैर-ज़िम्मेदार परमाणु ताकत

    ‘सुपर’ कहलाने वाला जेट फिर पस्त, F-35B की जापान में इमरजेंसी लैंडिंग

    ‘सुपर’ कहलाने वाला जेट फिर पस्त, F-35B की जापान में इमरजेंसी लैंडिंग

    अमेरिकी धरती से पाक सेना प्रमुख की गीदड़भभकी, आधी दुनिया को ले जाएंगे अपने साथ

    अमेरिकी धरती से पाक सेना प्रमुख की गीदड़भभकी, आधी दुनिया को ले जाएंगे अपने साथ

    पीएम मोदी ने ट्रप को दिया करारा जवाब।

    पीएम मोदी ने ट्रंप की मृत अर्थव्यवस्था वाले बयान का दिया जवाब, जल्द ही तीसरे पायदान पर पहुंचेगा भारत

    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
  • ज्ञान
    • सभी
    • इतिहास
    • संस्कृति
    औपनिवेशिक मिथक का पर्दाफ़ाश: हुमायूं-रानी कर्णावती राखी की झूठी कहानी और रक्षाबंधन की असली प्राचीन हिंदू उत्पत्ति

    ऐतिहासिक झूठ का खुलासा: हुमायूं-रानी कर्णावती राखी की झूठी कहानी और रक्षाबंधन की असली प्राचीन हिंदू उत्पत्ति

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रक्षाबंधन

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और रक्षाबंधन

    भारत में ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ का औचित्य…?

    भारत में ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ का औचित्य…?

    दिल्ली में आरएसएस करेगा लोगों से संवाद, संघ प्रमुख देंगे इन सवालों के जवाब

    दिल्ली में आरएसएस करेगा लोगों से संवाद, संघ प्रमुख देंगे इन सवालों के जवाब

    • इतिहास
    • संस्कृति
  • बैठक
    • सभी
    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
    स्मृति ईरानी की टीवी पर शानदार वापसी, रुपाली गांगुली और हिना खान को पछाड़ बनीं हाईएस्ट पेड टीवी स्टार

    स्मृति ईरानी की टीवी पर शानदार वापसी, रुपाली गांगुली और हिना खान को पछाड़ बनीं हाईएस्ट पेड टीवी स्टार

    लद्दाख में ISRO का Mini Mars मिशन: होप सिमुलेशन से अंतरिक्ष की अगली छलांग

    क्या है भारत का मिशन HOPE और लद्दाख में क्यों जुटे हैं ISRO के वैज्ञानिक ?

    19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने रचा इतिहास, बनीं FIDE वर्ल्ड कप जीतने वाली पहली भारतीय महिला

    19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने रचा इतिहास, बनीं FIDE वर्ल्ड कप जीतने वाली पहली भारतीय महिला

    मेघालय में विवाह से पहले अनिवार्य एचआईवी जांच: क्या कानून वहां सफल होगा जहां संस्कृति असफल रही?

    मेघालय में विवाह से पहले अनिवार्य एचआईवी जांच: क्या कानून वहां सफल होगा जहां संस्कृति असफल रही?

    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
  • प्रीमियम
कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
tfipost.in
tfipost.in
कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • रक्षा
  • विश्व
  • ज्ञान
  • बैठक
  • प्रीमियम

‘मैं देह नहीं…जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूँ’: जानिए कैसे पादरी के बेटे ने हिला दी थी ब्रिटिश हुकूमत की नींव – बिरसा मुंडा पुण्यतिथि पर विशेष

'धरती आबा' भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर पढ़ें उनका इतिहास

himanshumishra द्वारा himanshumishra
9 June 2025
in इतिहास
बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा (From The Book "Life And Movement of Birsa Munda"

Share on FacebookShare on X

भारत के इतिहास में कुछ नाम केवल स्मृति नहीं, चेतना बन जाते हैं। बिरसा मुंडा उन्हीं में से एक हैं एक ऐसा नाम जिसने जंगलों की खामोशी को विद्रोह की आवाज़ दी, एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने आदिवासी अस्मिता को अंग्रेजी सत्ता के सामने खड़ा कर दिया। आज, जब हम उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें स्मरण करते हैं, तो यह केवल एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि उस विरासत को पहचानने और पुनः जागृत करने का समय है जिसे मुख्यधारा के इतिहास ने लंबे समय तक उपेक्षित किया।

18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में प्लासी की पराजय के साथ भारत में सत्ता-संतुलन बदल चुका था। स्थानीय राजे-रजवाड़े कमजोर हो चले थे और ब्रिटिश सत्ता ने जमींदारी प्रथा के ज़रिए एक ऐसा वर्ग खड़ा कर दिया था, जो अपने अस्तित्व के लिए पूरी तरह अंग्रेजों पर आश्रित था। इन जमींदारों ने न केवल किसानों को बटाईदार बना दिया, बल्कि जनजातीये समुदायों के सामूहिक जीवन और ज़मीनों को भी छीन लिया। जंगल, जो कभी जीवनदायिनी थे, अब शोषण और पीड़ा के केंद्र बन गए थे। आदिवासी सरदारों को ‘जमींदार’ घोषित कर उनसे लगान वसूली का काम लिया जाने लगा, और उनके इलाकों में महाजनों, साहूकारों और ब्रिटिश दलालों का ऐसा वर्ग घुस आया जिसने स्थानीय समाज को भीतर से तोड़ना शुरू कर दिया।

संबंधितपोस्ट

भगवान बिरसा मुंडा के परपोते मंगल मुंडा का निधन, पीएम मोदी और सीएम सोरेन ने जताया शोक

एक युवा बांसुरी वादक जिन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबवाए, बिरसा मुंडा के ‘धरती आबा’ बनने की कहानी

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का ‘जनजातीय गौरव दिवस’ और बिरसा मुंडा के 150वें जयंती वर्ष पर संदेश

और लोड करें

इसी व्यवस्था के खिलाफ बिरसा मुंडा ने एक ऐसी मशाल जलाई, जो न केवल ब्रिटिश सत्ता के लिए चुनौती बनी, बल्कि उस तंत्र के लिए भी खतरा थी जो आदिवासियों को सदा गुलामी की ओर धकेलता रहा था। 1874 में जन्मे बिरसा ने अपने प्रारंभिक जीवन में मिशनरियों से शिक्षा ली, ईसाई धर्म भी अपनाया, लेकिन जल्द ही उन्हें समझ में आ गया कि यह सहायता नहीं, सांस्कृतिक दासता की शुरुआत है। वे लौटे, अपनी जड़ों की ओर, और अपने लोगों को जगाने का संकल्प लिया। 1895 में जब उन्होंने स्वयं को ‘धरती का भगवान’ घोषित किया, तो वह केवल धार्मिक या आध्यात्मिक घोषणापत्र नहीं था, वह एक क्रांतिकारी उद्घोष था। उन्होंने साफ़ कहा कि ईश्वर ने उन्हें इसलिए भेजा है ताकि वे अपने लोगों को उनके जंगल, जमीन और सम्मान वापस दिला सकें। उन्होंने जनजातीयों को धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से संगठित किया, और 1899 में एक सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींव तक हिला दी।

दुखद यह रहा कि इस महापुरुष को पकड़वाने में उसके ही लोगों का इस्तेमाल किया गया। केवल 500 रुपये के इनाम के बदले उसे अंग्रेजों को सौंप दिया गया। बिरसा ने 9 जून 1900 को जेल में दम तोड़ दिया, लेकिन वह केवल शरीर की मृत्यु थी। उनके विचार, उनकी चेतना और उनका संघर्ष आज भी जीवित हैं। तो आइए, आज हम उस इतिहास को फिर से जानें कि कैसे एक बांसुरी की धुन, एक चेतन मन और एक विद्रोही आत्मा ने ‘धरती आबा’ को जन्म दिया। चलिए शुरू करते हैं बिरसा मुंडा की उस इतिहास को जो आज भी हर अन्याय के खिलाफ उठने वाली आवाज़ को दिशा देता है…

एक साधारण बच्चे से ‘धरती आबा’ बनने की शुरुआत 

15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातू गांव में जन्मे बिरसा मुंडा, जनजातीय समाज के उन दुर्लभ नायकों में से हैं, जिन्हें आज भी न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में सम्मान और श्रद्धा से याद किया जाता है। वे एक सामान्य मुंडा परिवार में जन्मे थे, लेकिन प्रतिभा उनमें असाधारण थी। बाल्यकाल से ही उनमें ऐसा तेज था कि गांव के लोग खुद उनके ज्ञान से चकित हो जाया करते थे। कहा जाता है कि जब लोग उनकी बुद्धिमत्ता और सीखने की ललक को देखकर अभिभूत हुए, तो उन्होंने बिरसा के पिता से आग्रह किया कि उसका दाखिला किसी मिशनरी स्कूल में करवाया जाए।

उस दौर में मिशनरी स्कूलों में पढ़ाई करने के लिए ईसाई धर्म अपनाना अनिवार्य था। इसी कारण उनका नाम ‘डेविड’ रखा गया, और उन्होंने चाईबासा के जर्मन मिशन स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। पढ़ाई के साथ-साथ बिरसा को बांसुरी बजाने का गहरा शौक था। वे अपनी बांसुरी की मधुर धुनों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते थे।

उनके परिवार के अधिकांश सदस्य पिता, चाचा और छोटे भाई ईसाई धर्म अपना चुके थे। पिता धर्म प्रचारक बन गए थे और उनका नाम ‘मसीह दास’ रखा गया। विवाह के बाद बिरसा अपनी मौसी के साथ खटंगा गांव चले गए थे। वहीं एक ईसाई प्रचारक से उनके विचारों का टकराव हुआ, जो मुंडाओं की पारंपरिक आस्था और रीति-रिवाजों की आलोचना कर रहा था। यह टकराव शायद उस चेतना का आरंभ था, जो आगे चलकर पूरे आदिवासी आंदोलन की धुरी बनी।

इतिहासकार मनोज सहारे अपनी पुस्तक ‘लाइफ एंड मूवमेंट ऑफ बिरसा मुंडा’ में लिखते हैं, “जर्मन स्कूल में दाखिले के बाद कुछ समय तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने जर्मन मिशन स्कूल छोड़ दिया क्योंकि बिरसा के मन में बचपन से ही साहूकारों के साथ-साथ ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह की भावना पनप रही थी। इसके बाद बिरसा ने जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ लोगों को जागृत किया तथा आदिवासियों की परंपराओं को जीवित रखने के लिए कई प्रयास किए।”

1894 में जब छोटा नागपुर अकाल और महामारी से जूझ रहा था, तब बिरसा ने अपने लोगों की निस्वार्थ सेवा की। उन्होंने न केवल बीमारों की देखभाल की, बल्कि लोगों को अंधविश्वास से बाहर निकालकर इलाज की समझ भी दी। उनकी छवि एक ऐसे युवा की बन चुकी थी जो न केवल सामाजिक चेतना ला रहा था, बल्कि चमत्कारी उपचारक भी माना जाने लगा था।

1895 में उन्होंने खुद को ‘भगवान का दूत’ घोषित कर दिया। उनका कहना था कि भगवान ने उन्हें विशेष शक्ति दी है जिससे वे अपने लोगों को पीड़ा से मुक्ति दिला सकते हैं। उनके उपदेशों और चमत्कारी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हजारों आदिवासी उन्हें सुनने और देखने आने लगे। उन्होंने अपने अनुयायियों को ‘सिंगबाँगा’ की पूजा करने का सुझाव दिया। यह वही समय था जब बिरसा आदिवासी समुदाय के लिए ‘धरती आबा’ यानी ‘धरती पिता’ बन चुके थे।

बिरसा मुंडा जब लगभग 20 वर्ष के थे, तब तक उनकी छवि एक जन-नेता और मसीहा की बन चुकी थी। दूर-दराज़ से लोग अपनी बीमारी और समस्याओं के समाधान के लिए उनके पास आने लगे थे। वे अब केवल एक सामाजिक नेता नहीं, एक धार्मिक प्रवर्तक भी बन चुके थे। उन्होंने एक नई धार्मिक धारा की नींव रखी, जिसे आज ‘बिरसाइत’ के नाम से जाना जाता है।

प्रसिद्ध इतिहासकार कुमार सुरेश सिंह अपनी पुस्तक ‘बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन’ में लिखते हैं, “1895 में बिरसा मुंडा ने अपने धर्म के प्रचार के लिए 12 शिष्यों को नियुक्त किया। जलमई (चाईबासा) के रहने वाले सोमा मुंडा को प्रमुख शिष्य घोषित किया और उन्हें धर्म-पुस्तक सौंपी।”

बिरसा की यह यात्रा अब केवल सामाजिक सुधार या धार्मिक चेतना तक सीमित नहीं रही यह आगे चलकर एक उग्र राजनीतिक आंदोलन में बदलने वाली थी, जो ब्रिटिश साम्राज्य की नींवों को चुनौती देगा। आइए, अब आगे जानते हैं कि कैसे यह युवक, जो कभी मिशनरी स्कूल में ‘डेविड’ कहलाता था, ब्रिटिश सत्ता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया और इतिहास में ‘धरती के भगवान’ के रूप में अमर हो गया…

अंग्रेजों के खिलाफ जनजातीय चेतना की क्रांति: ‘उलगुलान’ की शुरुआत

बिरसा मुंडा के भीतर जो चेतना धीरे-धीरे आकार ले रही थी, उसका ऐतिहासिक संदर्भ कहीं गहराई में छिपा था। प्लासी की पराजय के साथ ही भारत में स्थानीय राजे-रजवाड़ों और नवाबों का अवसान प्रारंभ हो चुका था। इसके बाद जब लॉर्ड कार्नवालिस ने स्थायी बंदोबस्त लागू किया, तो उसने जमींदारों का एक ऐसा वर्ग खड़ा कर दिया जो पूरी तरह अंग्रेजी सत्ता पर निर्भर था। ये जमींदार पारंपरिक सामंतों की तुलना में अपने असामियों के प्रति अधिक निष्ठुर और स्वार्थी हो गए। किसानों की स्थिति भी भूस्वामी से गिरकर केवल बटाईदार तक सीमित रह गई।

अंग्रेजी शासन की जड़ें धीरे-धीरे भारत के उन दुर्गम हिस्सों तक फैलने लगीं, जो अभी तक बाहरी सत्ता और सभ्यता की परिभाषाओं से लगभग अछूते थे। आदिवासी क्षेत्रों में ब्रिटिश सरकार ने चालाकी से उनके पारंपरिक सरदारों को जमींदार घोषित कर दिया और उनके ऊपर भारी मालगुजारी वसूलने का बोझ लाद दिया। इसके साथ ही उन क्षेत्रों में महाजनों, व्यापारी वर्ग और लगान वसूली करने वालों की एक पूरी श्रृंखला घुस आई, जिनका चरित्र विशुद्ध रूप से ब्रिटिश सत्ता का दलाल था।

ये दलाल और विचौलिए, जिन्हें मुंडा ‘विकू’ यानी डाकू कहते थे, धीरे-धीरे सामूहिक खेती की परंपरा को तोड़ने लगे। वे कानूनी और गैर-कानूनी तरीकों से मुंडाओं को उनकी जमीनों से बेदखल कर रहे थे, उन्हें कर्ज और झूठे मुकदमों में फंसा रहे थे, और एक पूरी पीढ़ी को गुलामी की ओर धकेल रहे थे। हालांकि मुंडा सरदार इस शोषण के खिलाफ करीब तीन दशकों तक संघर्ष करते रहे, लेकिन यह लड़ाई बिखरी हुई थी। बिरसा मुंडा ने इस संघर्ष को न केवल दिशा दी, बल्कि उसे एकजुटता, साहस और क्रांति की ऊंचाई भी दी।

इतिहासकार मनोज सहारे अपनी पुस्तक ‘लाइफ एंड मूवमेंट ऑफ बिरसा मुंडा’ में लिखते हैं, “इसी कानून से बिरसा में सशक्त क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित हुई। बिरसा ने इसी अधिकार बोध की ज्वाला को सभी मुंडाओं में मुखारित किया। ‘बिरसा’ ने ‘अबुआ दिशुम अबुआ राज’ अर्थात ‘हमारा देश, हमारा राज’ का नारा दिया। मुंडाओं पर ‘बिरसा’ की असीम आस्था का प्रभाव पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप ‘बिरसा’ ने सभी आदिवासी मुंडाओं के मन में एक नए आत्मविश्वास तथा उत्साह का संचार कर दिया। ‘बिरसा’ ने जंगल के अधिकारों को वापस पाने के लिए तीव्र आंदोलन शुरू किया जिसे ‘उलगुलान’ के नाम से भी जाना जाता है। ‘बिरसा’ के ‘उलगुलान आंदोलन’ का केंद्रबिंदु छोटानागपुर का इलाका था, जिसे मुंडा आदिवासियों ने अपने खून-पसीने से सींचकर आबाद किया था। इसी आंदोलन के द्वारा ‘बिरसा’ ने सभी मुंडाओं एवं स्त्रियों में भी अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए सदैव संघर्षरत रहने की प्रेरणा भरी, क्योंकि ‘बिरसा’ इन सबको प्राचीन-जड़ता एवं कुसंस्कारों से मुक्त करवाना चाहता था और एक ऐसे आधुनिक युग का निर्माण करना चाहता था, जिसमें किसी को भी शोषण का शिकार न होना पड़े और सभी को अपने जीवन का अधिकार प्राप्त हो।”

बिरसा का उलगुलान कोई साधारण विद्रोह नहीं था। यह उस चेतना का विस्फोट था जो वर्षों से भीतर ही भीतर सुलग रही थी शोषण के खिलाफ, लूट के खिलाफ, और अपनी जमीन, जंगल और जीवन के अधिकार के लिए। इस क्रांति को शब्द देते हुए आदिवासी साहित्यकार हरीराम मीणा ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘बिरसा मुंडा की याद में’ में लिखा:

“मैं केवल देह नहीं
मैं जंगल का पुश्तैनी दावेदार हूँ
पुश्तें और उनके दावे मरते नहीं
मुझे कोई भी जंगलों से
बेदखल नहीं कर सकता
मैं भी मर नहीं सकता
उलगुलान
उलगुलान!!
उलगुलान!!!”

आगे लिखते हैं, “मुंडा जनजाति में सामूहिक खेती का प्रचलन था जिसे खूंटकट्टी कहा जाता था, लेकिन वहां के जमींदारों, ठेकेदारों एवं महाजनों ने खेती की परंपरा पर ब्रिटिश सरकार के सानिध्य में हल्ला बोला। अंग्रेजों ने इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1882 पारित कर आदिवासियों को जंगल के अधिकार से वंचित कर दिया। अंग्रेजों ने जमींदारी व्यवस्था लागू कर आदिवासियों के वो गांव, जहां वे सामूहिक खेती करते थे, जमींदारों और दलालों में बांट कर राजस्व की नई व्यवस्था लागू कर दी, और फिर शुरू हुआ अंग्रेजों, जमींदार व महाजनों द्वारा भोले-भाले लोगों का शोषण।”

इसी भूमि पर 1895 में बिरसा मुंडा ने जमींदारी प्रथा और ब्रिटिश राजस्व व्यवस्था के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई का बिगुल फूंका। उन्होंने जंगल-जमीन की हकदारी के लिए जो संघर्ष शुरू किया, वही “उलगुलान” अर्थात महाविद्रोह के नाम से जाना गया। यद्यपि मुंडा विद्रोह की चिंगारी 1874 में ही फूंक दी गई थी, लेकिन 1895 के बाद इस आंदोलन को एक नेतृत्व मिला और वह नाम था बिरसा मुंडा। यह संघर्ष 1901 तक चलता रहा।

‘उलगुलान’ सिर्फ राजनीतिक या आर्थिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह आदिवासी अस्मिता, स्वाभिमान और संस्कृति की रक्षा का संघर्ष था। बिरसा ने जो अलख जगाई, वह केवल एक सत्ता परिवर्तन की मांग नहीं थी, बल्कि अपने जीवन, अपने जंगल, अपनी जमीन और अपनी आत्मा को बचाए रखने की पुकार थी। उनका नारा ‘अबुआ दिशुम, अबुआ राज’ मतलब ‘अपना देश, अपना राज’ जंगलों में बिजली की तरह गूंजने लगा।

इस चेतना के सामने अंग्रेजों की ताकत भी कमजोर पड़ने लगी। सरकार ने उलगुलान को कुचलने की भरपूर कोशिश की, लेकिन आदिवासी समाज के गुरिल्ला संघर्ष और बिरसा की प्रेरणा के आगे वे असफल साबित हुए। भ्रष्ट जमींदारों और पूंजीपतियों की नींव हिलने लगी, और खुद अंग्रेज अफसरों की नींदें उड़ गईं। बिरसा अब केवल एक नेता नहीं थे वे प्रतिरोध की जीती-जागती मिसाल बन चुके थे। आइए, अगले हिस्से में जानते हैं कि कैसे इस ‘धरती के भगवान’ ने खुद को नहीं, बल्कि अपने पूरे समाज को इतिहास के पन्नों में अजर-अमर कर दिया।

बिरसा मुंडा का अंतिम संदेश

जिन पहाड़ियों से विद्रोह की आवाज़ गूंजी थी, उन्हीं वनों की छांव में बिरसा का जीवन एक निर्णायक मोड़ पर आ चुका था। 1897 से 1900 के बीच बिरसा मुंडा और उनके अनुयायियों ने अंग्रेजों के खिलाफ कई मोर्चे संभाले। हर लड़ाई में आदिवासी संघर्ष ने अंग्रेजी सत्ता की नींव को हिला दिया, लेकिन आखिरकार उस साहसी योद्धा को पराजित करने में किसी तोप या बंदूक ने नहीं, बल्कि अपनों के विश्वासघात ने भूमिका निभाई।

ब्रिटिश हुकूमत ने बिरसा को पकड़ने के लिए हर चाल चली। कहा जाता है कि वे पश्चिमी सिंहभूम के बंदगांव के सेंतरा जंगल में छिपे हुए थे। लेकिन जब अंग्रेजों ने उनके सिर पर ₹500 का इनाम घोषित किया, तो मानमारू और जरीकेल गांव के सात लोगों ने लोभ में आकर उनकी तलाश शुरू की। जंगल के बीच से उठते धुएं ने उनका रहस्य खोल दिया। वे चुपचाप आगे बढ़े और देखा बिरसा दो तलवारों के साथ बैठे हैं, खाना पक रहा है। जैसे ही उन्होंने खाना खाकर विश्राम किया, वे झपट पड़े और उन्हें पकड़कर डिप्टी कमिश्नर के कैंप में सौंप दिया। बदले में उन्हें ₹500 का इनाम मिला ।

इतिहासकार मनोज सहारे अपनी पुस्तक ‘लाइफ एंड मूवमेंट ऑफ बिरसा मुंडा’ में लिखते हैं, “1897 से 1900 के बीच आदिवासियों और अंग्रेजों के बीच कई लड़ाइयां हुईं पर हर बार अंग्रेजी सरकार ने मुंह की खाई। जिस बिरसा मुंडा को अंग्रेजों की तोप और बंदूकों की ताकत नहीं पकड़ पाई उसके बंदी बनने के कारण अपने ही लोगों का धोखा बना। जब अंग्रेजी सरकार ने बिरसा को पकड़वाने के लिए 500 की धनराशि के इनाम की घोषणा की तो किसी अपने ही व्यक्ति ने बिरसा के ठिकाने का पता अंग्रेजों तक पहुंचाया। जनवरी 1900 में उलिहातू के नजदीक डोमबाड़ी पहाड़ी पर बिरसा अपनी जनसभा को संबोधित कर रहे थे तभी अंग्रेज सिपाहियों ने चारों तरफ से घेर लिया और अंग्रेजों और आदिवासियों के बीच लड़ाई हुई। औरतें और बच्चों समेत बहुते से लोग मारे गए। अंत में बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर से गिरफ्तार कर लिए गए। 9 जून 1900 को बिरसा ने रांची की कारागार में आखिरी सांस ली। 25 साल की उम्र में बिरसा मुंडा ने जिस क्रांति का आगाज किया वह आदिवासियों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी।”

गिरफ्तारी के बाद अंग्रेज भयभीत हो उठे। उन्हें अंदेशा था कि कहीं बिरसा के अनुयायी हमला न कर दें। इसीलिए उन्हें खूंटी होते हुए रांची जेल भेजा गया। रांची की जेल की दीवारें एक ऐसे वीर की सांसों की गवाह बनीं, जो अपने लोगों के लिए जीया, लड़ा और उसी मिट्टी के लिए मर मिटा। इतिहास में दर्ज है कि खूंटी के 33 और तमाड़ के 17 मुंडा आदिवासियों को बिरसा के खिलाफ मुखबिरी करने पर इनाम मिला। सिंगराई मुंडा नामक व्यक्ति को, डोंका मुंडा सहित कई लोगों की गिरफ्तारी में मदद करने के लिए ₹100 का नकद इनाम दिया गया।

गिरफ्तारी के बाद बिरसा को यह आभास हो चला था कि अब उनके जीवन की सांझ निकट है। लेकिन मौत से पहले उन्होंने वह शब्द कहे, जो आज भी हर संघर्षरत आत्मा के लिए दीपस्तंभ हैं। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा, “जब तक मैं अपनी मिट्टी का यह तन बदल नहीं देता, तुम सब लोग नहीं बच पाओगे। निराश मत होना। यह मत सोचना कि मैंने तुम लोगों को मझधार में छोड़ दिया। मैंने तुम्हें सभी हथियार और औजार दे दिए हैं, तुम लोग उनसे अपनी रक्षा कर सकते हो।”

बिरसा मुंडा की मृत्यु भले ही केवल 25 वर्ष की आयु में हो गई हो, लेकिन उन्होंने आदिवासी चेतना को जो अस्त्र सौंपा, वह आज भी जीवित है हर उस आवाज़ में जो न्याय, अधिकार और अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है। उनकी यह जीवनगाथा किसी इतिहास के कोरे पन्ने की कहानी नहीं, बल्कि मिट्टी, जंगल और जन-मन की स्मृति में सजीव एक जयघोष है।

स्रोत: बिरसा मुंडा, बिरसा मुंडा पुण्यतिथि, ‘लाइफ एंड मूवमेंट ऑफ बिरसा मुंडा, उलगुलान, Birsa Munda, Birsa Munda’s Death Anniversary, Life and Movement of Birsa Munda, Ulgulan
Tags: ‘लाइफ एंड मूवमेंट ऑफ बिरसा मुंडाBirsa MundaBirsa Munda’s Death AnniversaryLife and Movement of Birsa MundaUlgulanउलगुलानबिरसा मुंडाबिरसा मुंडा पुण्यतिथि
शेयरट्वीटभेजिए
पिछली पोस्ट

मोदी सरकार के 11 वर्ष: गरीब कल्याण से नोटबंदी तक, जानें जेपी नड्डा ने क्या कहा?

अगली पोस्ट

मक्का की ‘केई रुबात’ मिस्ट्री: वक्फ या परिवार का हक? भारत में भिड़े दो परिवार, सऊदी सरकार मौन

संबंधित पोस्ट

औपनिवेशिक मिथक का पर्दाफ़ाश: हुमायूं-रानी कर्णावती राखी की झूठी कहानी और रक्षाबंधन की असली प्राचीन हिंदू उत्पत्ति
इतिहास

ऐतिहासिक झूठ का खुलासा: हुमायूं-रानी कर्णावती राखी की झूठी कहानी और रक्षाबंधन की असली प्राचीन हिंदू उत्पत्ति

9 August 2025

हमें भी पढ़ाया गया और हमारे बच्चों को भी यही पढ़ाया गया कि मेवाड़ की रानी कर्णावती ने बहादुर शाह की आक्रमण से रक्षा के...

भारत में ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ का औचित्य…?
इतिहास

भारत में ‘विश्व मूल निवासी दिवस’ का औचित्य…?

8 August 2025

अगले कल अर्थात शनिवार 9 अगस्त को 'विश्व मूलनिवासी दिवस', विश्व के कुछ हिस्सों मे मनाया जाएगा। वामपंथियों ने, 'फॉल्ट लाईन चौडी करने' की रणनीति...

सतत सक्रिय, ध्येय साधक और प्रेरणा पुंज ‘हमारे चेतराम जी’
इतिहास

सतत सक्रिय, ध्येय साधक और प्रेरणा पुंज ‘हमारे चेतराम जी’

3 August 2025

आज 3 अगस्त है, इसलिए यह लेख एक ऐसे महान व्यक्तित्व के जन्म दिवस पर लिखा जा रहा हैं, जिनके लिए लोगों द्वारा व्यक्त की...

और लोड करें

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

I agree to the Terms of use and Privacy Policy.
This site is protected by reCAPTCHA and the Google Privacy Policy and Terms of Service apply.

इस समय चल रहा है

'We’ll Start from the East’: Asim Munir’s Threat – Who’s Arming Pakistan?

'We’ll Start from the East’: Asim Munir’s Threat – Who’s Arming Pakistan?

00:06:14

The Secret Power of India’s Unseen Army

00:07:17

Legal Expert: Inside Sanjay Kapoor's Rs 18,000 Cr property Distribution

00:10:19

From jewellery to petroleum, know all about key exports at risk under Trump's 50% tariffs

00:04:28

himalayan fragility exposed. Dharali: Not Just A Cloudburst?

00:20:21
फेसबुक एक्स (ट्विटर) इन्स्टाग्राम यूट्यूब
टीऍफ़आईपोस्टtfipost.in
हिंदी खबर - आज के मुख्य समाचार - Hindi Khabar News - Aaj ke Mukhya Samachar
  • About us
  • Careers
  • Brand Partnerships
  • उपयोग की शर्तें
  • निजता नीति
  • साइटमैप

©2025 TFI Media Private Limited

कोई परिणाम नहीं मिला
सभी परिणाम देखें
  • राजनीति
    • चर्चित
    • मत
    • समीक्षा
  • अर्थव्यवस्था
    • वाणिज्य
    • व्यवसाय
  • रक्षा
    • आयुध
    • रणनीति
  • विश्व
    • अफ्रीका
    • अमेरिकाज़
    • एशिया पैसिफिक
    • यूरोप
    • वेस्ट एशिया
    • साउथ एशिया
  • ज्ञान
    • इतिहास
    • संस्कृति
  • बैठक
    • खेल
    • चलचित्र
    • तकनीक
    • भोजन
    • व्यंग
    • स्वास्थ्य
  • प्रीमियम
TFIPOST English
TFIPOST Global

©2025 TFI Media Private Limited