कहते हैं कि राजनीति में शब्दों से ज्यादा प्रभाव प्रतीकों का होता है। इसीलिए रविवार को लखनऊ के डिफेंस एक्सपो मैदान पर हुए पुलिस भर्ती कार्यक्रम में जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक मंच पर और एक सुर में दिखे—तो मंच से एक दूसरे की तारीफों के अलावा जो दूसरा सबसे बड़ा संदेश सामने आया वो समन्वय का था।
एक मंच पर बिल्कुल साथ–साथ मौजूद दोनों शीर्ष नेताओं की तस्वीरों का अर्थ स्पष्ट था– “न तो दूरी है, न टकराव”- कुछ है तो डबल इंजन की साझा शक्ति और इस शक्ति का प्रयोग प्रतिद्वंदिता के लिए नहीं बल्कि प्रगति के लिए होगा।
ये कार्यक्रम इस मायने में भी ऐतिहासिक था कि पहली बार रिकॉर्ड एक साथ यूपी पुलिस में 60,244 रंगरूटों को नियुक्ति पत्र सौंपे गए, इनमें 12,048 महिलाएं भी शामिल थीं। ज़ाहिर है उनके लिए ये मौक़ा दोहरी उपलब्धि सरीखा था। हालांकि ये कार्यक्रम वहां मौजूद हजारों बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए भी उतना ही ख़ास रहा और इसकी वजह है– एकजुटता।
मंच पर न सिर्फ दोनों उप मुख्यमंत्री मौजूद रहे, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच दिखी गर्मजोशी ने भगवा कार्यकर्ताओं का उत्साह भी दोगुना कर दिया होगा।
धराशाई हो जाएगा मतभेद का झूठा नैरेटिव ?
पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक गलियारों और मीडिया के कुछ हलकों में योगी और शाह के बीच मतभेदों या टकराव की चर्चा दबी ज़ुबान से ही सही, लेकिन तेजी के साथ फैल रही थी। कहा जा रहा था कि केंद्रीय गृह मंत्री शाह और सीएम योगी के बीच सत्ता संघर्ष की स्थिति है।
इसे दिल्ली बनाम लखनऊ से लेकर आत्मनिर्भर मुख्यमंत्री बनाम केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती जैसे नैरेटिव के साथ और आगे बढ़ाया जाता रहा। विपक्ष भी इन अटकलों को हवा देने में पीछे नहीं रहा। लेकिन शनिवार को जब दोनों नेता न सिर्फ एक ही मंच पर एक साथ नज़र आए, बल्कि एक–दूसरे की जमकर तारीफ भी की, तो ये तमाम नैरेटिव वहीं मंच पर ही दफन हो गए।
अमित शाह ने योगी आदित्यनाथ की तारीफ़ करते हुए कहा “यूपी मॉडल ने दिखा दिया है कि सुशासन और त्वरित न्याय कैसे दिया जा सकता है। योगी जी की कानून व्यवस्था पर पकड़ देश के लिए उदाहरण है।“
वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी केंद्र और केंद्रीय गृह मंत्री की सिर्फ तारीफ़ की, बल्कि उनके निरंतर मार्गदर्शन की अपेक्षा भी जताई। उन्होने कहा, “अगर यूपी में पुलिस भर्ती में पारदर्शिता और गुणवत्ता लाना संभव हुआ है, तो वो केंद्रीय गृह मंत्रालय और अमित शाह जी के मार्गदर्शन के कारण हुआ है।“
शक्ति संघर्ष नहीं, बल्कि साझेदारी की शक्ति
ज़ाहिर है यह कार्यक्रम सिर्फ नियुक्ति पत्र बांटने का मंच नहीं था, यह एक सधी हुई रणनीति का हिस्सा था। संदेश साफ था: डबल इंजन की सरकार सिर्फ स्लोगन नहीं है, यह ज़मीनी स्तर पर समर्पण और समन्वय का भी प्रमाण है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर विशेष नज़र रखने वाले एक वरिष्ठ राजनीतिक समीक्षक इन तस्वीरों को विशेष बताते हुए कहते हैं कि
“यह विरासत की लड़ाई नहीं, बल्कि विरासत की संगति है। ये दोनों नेता एक साझा लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं, और वो है—2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की हैट्रिक।“
ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टि से अहम दिन
यह उत्तर प्रदेश के इतिहास में एक दिन में हुई सबसे बड़ी पुलिस भर्ती थी। 60,244 में से 15 को मंच पर अमित शाह और योगी आदित्यनाथ ने खुद नियुक्ति पत्र सौंपे। सरकार का दावा है कि इस भर्ती की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रही है,
सरकार ने अक्टूबर 2023 में इन भर्तियों का विज्ञापन निकला था, फरवरी 2024 में परीक्षा करवाई गई, लेकिन पेपर लीक का मामला सामने आने के बाद परीक्षा रद्द कर दी गई थी। एक वक्त तो लगा था कि कहीं ये भर्तियां ठंडे बस्ते में न चली जाएं।
हालांकि 6 महीने के अंदर ही सरकार ने दोबारा परीक्षा आयोजित करवाई, जिसमें 48 लाख से ज्यादा अभ्यर्थी शामिल हुए।
फिजिकल टेस्ट के बाद 13 मार्च 2025 को इनमें से 60,244 अभ्यर्थियों का चयन किया गया और आज उन्हें ख़ुद मुख्यमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री के हाथों नियुक्ति पत्र भी सौंप दिए गए।
ज़ाहिर है इतने बड़े स्तर पर भर्ती और परीक्षा आयोजित करवाना आसान काम नहीं था, लेकिन योगी सरकार इसे तय वक्त के अंदर करने में कामयाब रही और अब इसे अपनी बड़ी सफलता के रूप में भी पेश कर रही है।
विपक्ष के लिए ‘बर्नॉल मोमेंट’!
लेकिन अब ज़रा विपक्ष की कल्पना कीजिए, जो केंद्र बनाम योगी के नैरेटिव को न सिर्फ हवा दे रहा था, बल्कि इसे अपनी रणनीति में भी शामिल कर रहा था। विपक्ष के एक बड़े वर्ग का मानना था कि योगी और शाह के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा, ऐसे में वो इस ‘दरार‘ का वर्ष 2024 के विधानसभा चुनावों में फायदा उठा लेंगे।
लेकिन आज तक कैमरे के सामने दोनों नेताओं ने मुस्कुराते हुए हाथ मिलाया, एक–दूसरे की पीठ थपथपाई और साझा विजन की बात की—तो विपक्ष के नैरेटिव में न कोई धार बची, न कोई दिशा।
ज़ाहिर है, इन तस्वीरों से विपक्ष ही नहीं, ये नैरेटिव गढ़ने वाले सभी ‘सूत्रधारियों‘ कोगंभीरसदमालगाहोगा।
2027 की साझा योजना
इस कार्यक्रम ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व 2027 के विधानसभा चुनाव की दिशा में एकजुट है। अमित शाह की संगठन की रणनीति और योगी की जमीनी पकड़—ये वो दो स्तंभ हैं जिन पर बीते दो चुनावों से भाजपा की यूपी रणनीति काफी हद तक निर्भर देखी गई है।
ऐसे में अमित शाह का लखनऊ आकर इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करना बताता है कि 27 के समर में न तो सीएम योगी अकेले हैं, न ही दिल्ली में उन्हें लेकर कोई असंतोष है।