‘शाकाहार को हिंसक’ बताने वाले IIT बॉम्बे के हिंदू विरोधी प्रोफेसर को कारण बताओ नोटिस

आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर सूर्यकांत वाघमोर ने की शाकाहार और धार्मिक परंपराओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ

जिस समय में  भारत के वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थान कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अंतरिक्ष अनुसंधान और ऊर्जा क्षेत्र में वैश्विक समस्याओं का समाधान खोजने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, वहीं आईआईटी बॉम्बे में मानविकी विभाग से जुड़े प्रोफेसर सूर्यकांत वाघमोर की गतिविधियां अकादमिक जगत में व्यापक चर्चा का विषय बन गई हैं।

वाघमोर पर आरोप है कि वे अपने व्याख्यानों और सार्वजनिक बयानों में बार-बार हिंदू सांस्कृतिक परंपराओं, शाकाहार और वैवाहिक व्यवस्थाओं का उपहास करते आए हैं। आलोचकों का कहना है कि वे कक्षाओं को राजनीतिक रंग देने, छात्रों के बीच वैचारिक ध्रुवीकरण फैलाने और संस्थान की मर्यादा के विपरीत सामाजिक मुद्दों को भड़काने में लगे रहते हैं।

विवादास्पद लेख पर कारण बताओ नोटिस

12 जून 2025 को, आईआईटी बॉम्बे प्रशासन ने टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक लेख के संबंध में प्रोफेसर वाघमोर को कारण बताओ नोटिस जारी किया। ‘मुंबई के बड़े नकद सर्वेक्षण’ शीर्षक वाले इस लेख में उन्होंने आगामी बीएमसी चुनावों का विश्लेषण किया था, जिसमें उन्होंने अपना आधिकारिक संस्थागत पदनाम भी उपयोग किया—यह बिना पूर्व स्वीकृति के किया गया, जो संस्थान की आचार संहिता की अनुसूची बी, पैरा 5(ii) का उल्लंघन माना गया।

प्रशासन की ओर से जवाब माँगे जाने के बजाय प्रोफेसर वाघमोर ने सोशल मीडिया पर नोटिस साझा किया, जिसके साथ लिखा गया: “आईआईटी प्रणाली में सुधार के लिए एक और संघर्ष शुरू हुआ!”, जिससे प्रोफेशनल व्यवहार और संस्थागत अनुशासन पर सवाल खड़े हुए।

सोशल मीडिया पर विवादास्पद टिप्पणियाँ

प्रोफेसर वाघमोर का सोशल मीडिया लेखन लंबे समय से आलोचना के केंद्र में रहा है। एक व्यापक रूप से वायरल पोस्ट में उन्होंने व्यंग्यात्मक रूप में लिखा: “मैं अगले जन्म में शुद्ध शाकाहारी होना चाहता हूँ। मेरी आशा है कि मेरी अरेंज मैरिज हो, दहेज लूं, गोमूत्र पीऊँ, भाजपा को वोट दूँ और मुसलमानों पर हमला करूं। यह जीवन अंबेडकरवाद को समर्पित है।”

इस बयान को अनेक लोगों ने शाकाहार, धार्मिक परंपराओं और वैकल्पिक राजनीतिक विचारों का मज़ाक उड़ाने वाला माना, जिससे सोशल मीडिया पर तीव्र प्रतिक्रिया हुई। कई लोगों ने सवाल उठाया कि क्या करदाताओं द्वारा पोषित संस्थानों में कार्यरत प्रोफेसरों को इस प्रकार के सार्वजनिक वक्तव्यों की अनुमति होनी चाहिए।

शाकाहार को बताया था हिंसक

2023 में, कैंपस की मेस व्यवस्था को लेकर विवाद में भी प्रोफेसर वाघमोर चर्चा में आए। कुछ जैन और हिंदू शाकाहारी छात्रों ने 129 में से 6 टेबल शुद्ध शाकाहारी भोजन के लिए अलग करने की मांग की थी, जिसे प्रोफेसर वाघमोर ने “उग्र शाकाहार” और “शुद्धता-प्रदूषण की परंपरा” कहकर खारिज किया।

उन्होंने उस छात्र का भी समर्थन किया जिसने जानबूझकर शाकाहारी टेबल पर मांसाहारी भोजन खाया था और जिसे बाद में ₹10,000 का जुर्माना भरना पड़ा। वाघमोर ने इस अनुशासनात्मक कार्रवाई को “अपमानजनक” कहा और दोबारा सोशल मीडिया पर अपनी राय रखी। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा: “शाकाहार हिंसक है क्योंकि यह बच्चों को मांस की सुगंध और दृष्टि से वंचित करता है, जो आकर्षक हो सकती है।”

यह बयान कैंपस और बाहर, दोनों ही स्तरों पर विवाद का विषय बना, खासतौर पर तब जब रमज़ान और हलाल भोजन जैसी अन्य खाद्य प्राथमिकताओं को आमतौर पर स्वीकार किया जाता रहा है।

अकादमिक निष्पक्षता पर उठते सवाल

2024 में, पीएचडी प्रवेश परीक्षा के प्रश्नपत्र में “हिंदुत्व विचारधारा” से संबंधित एक प्रश्न के शामिल होने पर विवाद खड़ा हुआ। इसे लेकर कई छात्रों ने आरोप लगाया कि यह विचारधारात्मक पक्षपात को दर्शाता है। जब यह मामला सामने आया, तो प्रोफेसर वाघमोर ने विरोध कर रहे छात्रों पर कटाक्ष करते हुए एक नृत्य वीडियो पोस्ट किया, जिसे कई लोगों ने गैर-पेशेवर और भड़काऊ कहा।

उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि “मानविकी में पीएचडी करना वैसा ही है जैसे कोई व्यक्ति कैंसर के लिए गोमूत्र नहीं पीता”, जिसे व्यापक रूप से सांस्कृतिक रूप से असंवेदनशील माना गया। इन आलोचनाओं के बाद प्रोफेसर वाघमोर ने अपना सोशल मीडिया खाता डिलीट कर दिया, परंतु उनके पुराने पोस्ट अब भी स्क्रीनशॉट के रूप में प्रसारित हो रहे हैं।

वैचारिक सक्रियता का व्यापक परिदृश्य

प्रोफेसर वाघमोर अकेले ऐसे संकाय सदस्य नहीं हैं जिन पर विचारधारात्मक सक्रियता के आरोप लगे हैं। डॉ. अनुपम गुहा सहित कुछ अन्य शिक्षक भी सीएए-विरोधी प्रदर्शनों, स्टरलाइट आंदोलन और ऐसे व्यक्तियों के समर्थन में देखे गए हैं जिनकी विचारधारा पर विवाद रहा है।

गुहा पर “द कलेक्टिव” और “कोसंबी सर्किल” जैसे समूहों से जुड़ाव का आरोप है, जिन्हें कुछ समीक्षक अकादमिक मंचों पर राष्ट्र-विरोधी या विभाजनकारी विचार फैलाने वाला मानते हैं। अनुच्छेद 370 को हटाने जैसी राष्ट्रीय नीतियों की उनकी आलोचना ने भी इस बहस को और तीखा किया है कि क्या शैक्षणिक संस्थानों का उपयोग विचारधारात्मक प्रचार के लिए हो रहा है।

वहीं, हाल ही में पीएचडी स्कॉलर आदर्श प्रियदर्शी पर लगे यौन दुर्व्यवहार के आरोपों ने संस्थान में पारदर्शिता और अनुशासन पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।

आत्ममंथन की ज़रूरत: क्या हमारे शैक्षणिक संस्थान वैचारिक तटस्थता बनाए रख पा रहे हैं?

आईआईटी बॉम्बे जैसी संस्थाएं सिर्फ तकनीकी उत्कृष्टता के केंद्र नहीं हैं, बल्कि सामाजिक और वैचारिक विविधता का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। इन संस्थानों की गरिमा बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है कि वे अनुसंधान और नवाचार के साथ-साथ नैतिकता, पेशेवर आचरण और वैचारिक संतुलन का भी पालन करें।

प्रोफेसर वाघमोर से जुड़े विवाद भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में गहराते वैचारिक ध्रुवीकरण और सामाजिक संवेदनशीलता की अनदेखी की ओर संकेत करते हैं। यह समय है जब भारत को यह विचार करना चाहिए कि सार्वजनिक संसाधनों से पोषित शैक्षणिक मंचों की जवाबदेही किसके प्रति और किस हद तक होनी चाहिए।

 

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