ISRO का नया इतिहास: पहली बार उत्तर प्रदेश के खेतों से हुई रॉकेट लॉन्चिंग, अंतरिक्ष विज्ञान में क्या बदलेगा?

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने एक मॉडल रॉकेट का सफल परीक्षण किया है। आइये जानें इससे भविष्य में अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में क्या बदलाव होने वाले हैं?

ISROKushinagar Space Science

देश में अब विज्ञान प्रयोगशालाओं और बड़े शहरों की सीमाओं से निकलकर गांव और खेतों तक पहुंच रहा है। भारत का अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में शोध नई संभावनाओं के दरवाजे खोल रहा है। देश में हो रहे नवाचार न केवल तकनीकी प्रगति को दिखा रहे हैं, बल्कि युवाओं में वैज्ञानिक जिज्ञासा और रचनात्मकता को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। इसी दिशा में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से पहली बार ISRO ने रॉकेट लॉन्चिंग परीक्षण किया गया है। यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं है। इससे भविष्य में युवाओं के लिए कई रास्ते खुलने वाले हैं।

शनिवार की शाम उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के तमकुहीराज तहसील के रकबा जंगलीपट्टी गांव से पहला मॉडल रॉकेट आसमान में पहुंचा है। यह केवल एक तकनीकी प्रयोग नहीं था। यह भविष्य के भारत की अंतरिक्ष क्रांति का प्रतीक है। इस एक उड़ान में भारत की नई पीढ़ी, नए वैज्ञानिक और नई संभावनाएं छुपी हैं। आने वाले वर्षों में इसरो और भारत की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगी।

कुशीनगर में इसरो का प्रयोग

14 जून 2025 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के तमकुहीराज तहसील के जंगलीपट्टी गांव में शनिवार को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने थ्रस्ट टेक इंडिया लिमिटेड के सहयोग से एक मॉडल रॉकेट का सफल परीक्षण किया। यह उत्तर प्रदेश में इसरो का पहला ऐसा परीक्षण था, जिससे पहले इस तरह की लॉन्चिंग अहमदाबाद जैसे समुद्री क्षेत्रों में की गई थी।

शनिवार शाम 5 बजकर 14 मिनट 33 सेकंड पर रॉकेट ने उड़ान भरी और लगभग 1.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा। इस 15 किलोग्राम वजनी रॉकेट में 2.26 किलोग्राम ईंधन का उपयोग किया गया था सफलतापूर्वक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद, रॉकेट से एक छोटा कैन-आकार का उपग्रह (कैनसैट) निकला। उपग्रह के 5 मीटर नीचे गिरने पर उसका पैराशूट सक्रिय हो गया और लगभग 400 मीटर के दायरे में सुरक्षित रूप से धरती पर उतर गया। रॉकेट भी पैराशूट के सहारे धीरे-धीरे वापस जमीन पर आ गया।

परीक्षण का मकसद क्या था?

इसरो इन-स्पेस के निदेशक डॉ. विनोद कुमार के अनुसार, इसका मुख्य लक्ष्य ‘इन-स्पेस मॉडल रॉकेट्री/कैनसैट इंडिया छात्र प्रतियोगिता 2024-25’ को बढ़ावा देना है। यह पहल इन-स्पेस और एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (एएसआई) के सहयोग से चलाई जा रही है। इसका मकसद छात्रों के बीच अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्रति रुझान पैदा करना और उन्हें भविष्य में इस क्षेत्र से जुड़ने के लिए प्रेरित करना है।

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डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि अक्टूबर-नवंबर में इस प्रतियोगिता के तहत देशभर के लगभग 900 युवा वैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए मॉडल रॉकेट और कैन-आकार के उपग्रहों का परीक्षण किया जाएगा। ये छात्र विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से होंगे। उनको इसरो की देखरेख में अपने डिजाइनों का विकास और प्रक्षेपण करने का अवसर मिलेगा। कुशीनगर का परीक्षण एक पूर्वाभ्यास है।

इससे क्या लाभ होंगे?

इस परीक्षण से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए दूरगामी शैक्षिक लाभ होंगे। छात्रों को वास्तविक अनुभव और डिजाइनिंग विशेषज्ञता मिलेगी। इससे उन्हें भविष्य की अंतरिक्ष विज्ञान परियोजनाओं के लिए लाभ होगा। इतना ही नहीं छोटे स्थानों में होने वाले ये प्रयोग नए क्षेत्रों को अंतरिक्ष तकनीक से जोड़ेगा। इससे छोटे लॉन्च व्हीकल्स के विकास और निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी से ISRO की अनुसंधान एवं विकास क्षमता का और अधिक विस्तार होगा।

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