कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने एक अहम और विवादास्पद निर्णय लेते हुए राज्य की विभिन्न आवासीय योजनाओं में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए आरक्षण को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने की घोषणा की है। इस फैसले की जानकारी राज्य के कानून और संसदीय कार्य मंत्री एच.के. पाटिल ने दी। उन्होंने कहा कि इस निर्णय को लागू करने के लिए किसी नए नियम या अधिनियम की आवश्यकता नहीं है। यह संशोधित आरक्षण सीधे तौर पर प्रभाव में लाया जाएगा और इसमें सभी अल्पसंख्यक समुदाय जैसे ईसाई, जैन, बौद्ध, मुस्लिम आदि शामिल होंगे। मंत्री पाटिल ने इसे सरकार की सामाजिक समावेशन की नीति का हिस्सा बताया और कहा कि इसका उद्देश्य समाज के आर्थिक रूप से कमजोर और पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाना है।
कर्नाटक में आरक्षण पर बीजेपी का पलटवार?
हालांकि, कांग्रेस सरकार के इस कदम को लेकर राज्य की राजनीति में तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस फैसले को “धार्मिक आधार पर आरक्षण” बताते हुए इसे संविधान के विरुद्ध करार दिया है। भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि कांग्रेस केवल अपने अल्पकालिक राजनीतिक लाभ और वोट बैंक को साधने के लिए इस तरह के फैसले कर रही है, जिससे राज्य का सामाजिक संतुलन बिगड़ सकता है। विपक्ष का कहना है कि संविधान स्पष्ट रूप से धर्म के आधार पर आरक्षण देने की अनुमति नहीं देता, और इस प्रकार की नीतियां सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देंगी। भाजपा ने इसे “खतरनाक सामाजिक इंजीनियरिंग” बताते हुए चेतावनी दी है कि इससे समुदायों के बीच तनाव उत्पन्न हो सकता है और कर्नाटक जैसे विविधता से भरे राज्य की एकता खतरे में पड़ सकती है।
इस फैसले को लेकर न केवल राजनीतिक दलों, बल्कि कई सामाजिक संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने भी चिंता जताई है। उनका मानना है कि आरक्षण का आधार सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन होना चाहिए, न कि धार्मिक पहचान। कई विशेषज्ञों ने यह भी संकेत दिया है कि इस तरह का फैसला न्यायपालिका में चुनौती का सामना कर सकता है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही धर्म आधारित आरक्षण पर सख्त रुख अपना चुका है। वहीं, कांग्रेस सरकार का पक्ष है कि यह निर्णय किसी एक धर्म के लिए नहीं, बल्कि समस्त अल्पसंख्यक समुदायों के लिए समान रूप से लागू होगा, और इससे उन वर्गों को सीधा लाभ मिलेगा जिन्हें अब तक आवास योजनाओं का पर्याप्त लाभ नहीं मिला है।
क्या बोले DK शिवकुमार?
कर्नाटक सरकार के इस फैसले पर डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार का बयान भी सामने आया है। उन्होंने बताया कि यह निर्णय राज्य की जनसंख्या के अनुपात को ध्यान में रखकर लिया गया है। डीके शिवकुमार ने कहा कि राज्य सरकार के कई प्रोजेक्ट खाली पड़े हैं, जिन्हें भरना आवश्यक है। साथ ही, मुस्लिम समुदाय की आबादी के अनुसार आवास आरक्षण को 10% से बढ़ाकर 15% किया गया है। उन्होंने इस दौरान विपक्षी दल भाजपा पर भी तंज कसा और कहा कि भाजपा के पास मुस्लिमों के नाम पर राजनीति करने के अलावा कोई काम नहीं है।
कुल मिलाकर, कर्नाटक कैबिनेट का यह निर्णय राजनीतिक और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर बहस का विषय बन गया है। एक ओर जहां कांग्रेस इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे असंवैधानिक, विभाजनकारी और समाज को बांटने वाला निर्णय मान रहा है। आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि यह फैसला केवल राजनीतिक घोषणा बनकर रह जाएगा या फिर न्यायिक समीक्षा और जनविरोध के बीच भी इसे लागू किया जाएगा।