महाझूठ का पर्दाफाश: राहुल गांधी का ‘मैच फिक्सिंग’ फेक नैरेटिव

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का ओपिनियन पीस सुर्खियों में है। उन्होंने मैच फिक्सिंग आर्टिक के जरिए भाजपा और चुनाव आयोग को घेरा है। आइये उनके महाझूठ का पर्दाफाश करते हैं।

Rahul Gandhi match fixing article

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कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने में एक ओपिनियन पीस लिखा। इसमें उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में अपनी पार्टी की हार को धांधली का नतीजा बताया है। उनके लेख का टाइटल ‘मैच-फिक्सिंग महाराष्ट्र’ है। पूरे लेख में राहुल गांधी ने सरकार और भाजपा को निशाने में लिया है। इतना तो ठीक है लेकिन उन्होंने चुनाव आयोग को भी फिक्सिंग का पार्टनर बता दिया है। देशभर के मीडिया घराने भी बिना किसी क्रॉस चेकिंग के इसे जनता को दिखा पढ़ा रहे हैं। किसी ने ये जानने की जहमत नहीं उठाई कि राहुल गांधी किस आधार पर संवैधानिक पद पर बैठकर संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

राहुल गांधी ने लेख को सोशल मीडिया में पोस्ट कर बिहार चुनाव के लिए भी फिक्सिंग की आशंका जताई है। इससे साफ है कि लाइमलाइट से गायब हुए राहुल गांधी किसी भी तरह बिहार की सियासी गलियों में चर्चा का विषय बने रहना चाहते हैं। राहुल गांधी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा-

‘हर ज़िम्मेदार नागरिक को सबूतों को खुद देखना चाहिए, सच्चाई समझनी चाहिए और जवाब मांगने चाहिए। क्योंकि महाराष्ट्र की यह मैच फिक्सिंग अब बिहार में भी दोहराई जाएगी और फिर वहां भी, जहां-जहां बीजेपी हार रही होगी।’

राहुल के मन में बिहार का कितना सम्मान

अब बिहार की चर्चा चल ही गई तो जान लीजिए 6 जून को बिहार के दौरे पर थे। राहुल गांधी गयाजी के गहलौर गांव में दशरथ मांझी मेमोरियल पहुंचे और वहा माउंटेन मैन की मूर्ति पर माला चढ़ाई। वो जिस तरह से माला चढ़ा रहे हैं वो देखकर किसी का भी मन खट्टा हो जाए। इसमें साफ नजर आता है कि राहुल के मन में माउंटेन मैन के लिए कितना सम्मान है। उन्होंने दो-दो माला चढ़ाई लेकिन नजरें तक नहीं उठाईं। राहुल गांधी एक हाथ से ऐसे माला पहना रहे हैं जैसे उन्हें बस काम निपटाना हो।

दशरथ मांझी के पहले और उसके बाद बिहार के साथ भारत में कांग्रेस राज का लंबा इतिहास रहा है। हालांकि, उस समय गांधी परिवार ने कुछ किया नहीं। कांग्रेस काल में ही दशरथ मांझी ने पहाड़ काटकर सड़क बनाई लेकिन कांग्रेस सड़क बनाना तो दूर उसे पक्का तक नहीं करवा पाई। अब जब कांग्रेस इंडी गठबंधन के बाद भी अकेली पड़ रही है तो राहुल गांधी महाराष्ट्र के बहाने बिहार का नाम लेने से नहीं चूक रहे हैं।

खैर आइये राहुल गांधी के ‘मैच-फिक्सिंग महाराष्ट्र‘ वाले लेख का फैक्ट चेक कर लेते हैं। राहुल गांधी ने अपने लेख में 5 स्टेप बताते हुए आरोप लगाए हैं।

नियुक्ति पैनल में हेराफेरी

राहुल गांधी को ये पता होना चाहिए कि देश में पहले चुनाव से लेकर 2023 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर होती थी। 2023 में ही अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि जब तक कोई कानून नहीं बन जाता चुनाव आयुक्त की शिफारिस प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और CJI की समिति करेगी। इसके बाद सरकार ने 2023 के अधिनियम के जरिए तय किया था कि प्रधानमंत्री, एक कैबिनेट मंत्री और नेता प्रतिपक्ष की सलाह पर चुनाव आयुक्त की नियुक्ति होगी।

फर्जी मतदाताओं का मामला

राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि महाराष्ट चुनाव से पहले फर्जी मतदाता जोड़े गए हैं। इसके लिए उन्होंने विधानसभा और लोकसभा चुनाव में वोटरों के संख्या की तुलना की है। चुनाव आयोग आधिकारिक आंकड़ों से स्पष्ट है कि 2024 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बढ़े मतदाताओं का अंतर 4.26 फीसदी रहा है। 2014 में 3.48 फीसदी, 2009 में 4.13 फीसदी और 2004 में 4.69 फीसदी रहा है। यानी ये अंतर करीब 4 फीसदी का हमेशा से ही रही है। अगर राहुल को आंकड़े पढ़ने आते तो वो चुनाव आयोग की साइट पर जाकर देख लेते की साल दर साल किस अनुपात में मतदाताओं की संख्या बढ़ी है।

मतदान बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया

राहुल गांधी ने दावा किया कि महाराष्ट चुनाव में शाम 5 बजे तक 58.22 प्रतिशत मतदान हुआ था। हालांकि, ये अगली सुबह 66.05 प्रतिशत हो गया। अब राहुल गांधी को कौन बताए की मतदान का समय खत्म होने के बाद भी लाइन में लगे लोग वोट करते हैं। इसी कारण फाइनल टैली में आंकडे बढ़ते हैं। महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एस चोकलिंगम ने यही बात नवंबर 2024 में कही थी। उन्होंने बताया था कि मतदान में वृद्धि असामान्य नहीं है। 2019 में भी शाम 5 बजे तक 54.43 वोट पड़े थे लेकिन अंतिम आंकड़ो 61.10% था।

फर्जी वोटिंग कराई गई

राहुल गांधी को इतना भी नहीं पता की लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोटिंग पैटर्न एकदम अलग होता है। महाराष्ट्र के मामले में दोनों चुनावों के बीच 5 महीने का अंतर था। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बीजेपी से 2 सीट ज्यादा जीतकर आई तो चुनाव सही था। लेकिन विधानसभा में उसे हार का सामना करना पड़ा तो मैच फिक्स हो गया। केवल महाराष्ट्र ही नहीं आप 2019 में उड़ीशा के चुनाव और 2018 में मध्य प्रदेश के चुनावों के आंकड़े भी देख सकते हैं। इससे साफ हो जाएगा कि केंद्र और प्रदेश में एक ही वोटर अलग-अलग दलों को वोट करता है।

सबूत छिपाने की कोशिश

अब बात राहुल गांधी के उस आरोप की आती है जिसमें उन्होंने कहा है कि सुबूत छिपाने की कोशिश की गई है। अब उनके इस आरोप पर क्या ही कहा जाए। उनके 4 आरोपों में कोई दम नहीं है। या तो वो गलत आंकड़े पेश कर रहे हैं या फिर उन्हें तोड़ मरोड़ कर रख रहे हैं। जब कुछ फिक्सिंग हुई ही नहीं तो सबूत छुपाने की जरूरत ही क्या है। उनका और उनकी पार्टी का इतिहास ही इसका जीता जागता सबूत है कि कैसे झूठ बोला जाता है और उसे सच साबित किया जाता है।

ऐसा पहली बार नहीं है राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों पर सवाल खड़ा किया है। बॉस्टन में भी उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पर सवाल उठाए थे। उनकी पार्टी ने हरियाणा चुनाव के नतीजों पर भी सवाल उठाया था। हालांकि, जब वो जीत जाते हैं तो EVM, चुनाव मशीनरी सब सही होती है। आइये पिछले चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालते हैं

कर्नाटक चुनाव

कर्नाटक में कांग्रेस ने 2023 का चुनाव जीता था। पार्टी को 43 फीसदी वोट मिले, जबकि, इससे पहले 2018 में उनको 38 फीसदी वोट मिले थे। मतलब कांग्रेस के वोट शेयर में 5 फीसदी का इजाफा हुआ। सीटें भी 80 से बढ़कर 136 हो गईं।

तेलंगाना चुनाव

तेलंगाना में 2023 का चुनाव भी कांग्रेस ने 39 से ज्यादा वोटों के साथ जीता था। उसे 64 सीटें मिली थी। ठीक इससे पहले 2018 में पार्टी को महज 19 सीटें और 28 फीसदी वोट मिले थे। यानी उसे 11 फीसदी वोट शेयर और 45 सीटों का फायदा हुआ।

हिमाचल प्रदेश चुनाव

ठीक इसी तरह 2022 का हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस ने जीता था। इन चुनावों में पार्टी को करीब 43 फीसदी वोट और 40 सीटें मिली थीं। इससे पहले 2017 में कांग्रेस को 41 फीसदी वोट और 21 सीटें मिलीं थीं। यानी 2 फीसदी वोट और 19 सीटों की बढ़ोतरी मिली।

तीनों ही प्रदेशों में न केवल कांग्रेस की सीटें और मत प्रतिशत बढ़े बल्कि उसने सरकार भी बनाई है। लेकिन तब सारा चुनाव सिस्टम पाक साफ था। कही बाजेपी या एनडीए जीत जाते तो सिस्टम ही खराब हो जाता है। कुल मिलाकार जहां जहां कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता है वहीं राहुल की नजरों में धांधली हो जाती है। और जहां जीत होती है वहां कांग्रेस के नजरों में राहुल को जनता का समर्थन मिला होता है।

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अपने लेख में राहुल गांधी बड़ी गंभीरता से दावा किया कि 5 चरणों धांधली की गई है। कांग्रेस के शहजादे ने इसके लिए कई आंकड़े भी पेश किए हैं। अब राहुल गांधी के अकाट्य सत्य के सबूत क्या हैं यह तो राहुल ही जानें। पर एक बात साफ है कि कांग्रेस की चुनावी हार की जिम्मेदारी केवल और केवल ईवीएम और चुनाव प्रक्रिया पर धांधली के आरोप लगाने तक सीमित रह गई है। वो चुनावी मेंढ़क की तरह आते हैं और टरर टरर करके 4 साल के लिए गायब हो जाते हैं।

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