बढ़ते वैश्विक मोटापे के बीच अब एक और चौंकाने वाला पहलू सामने आया है मोटापा केवल शारीरिक बीमारी नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर असर डाल सकता है। अमेरिका की जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी में किए गए एक नए अध्ययन ने चेतावनी दी है कि अधिक वजन न सिर्फ चिंता और तनाव जैसी मानसिक समस्याओं को जन्म दे सकता है, बल्कि मस्तिष्क के सिग्नलिंग सिस्टम को भी प्रभावित कर सकता है।
इस अध्ययन में चूहों पर किए गए प्रयोग के ज़रिए पाया गया कि जब आहार के कारण मोटापा बढ़ता है, तो वह न केवल शरीर की जैविक प्रक्रियाओं को प्रभावित करता है, बल्कि आंत में मौजूद सूक्ष्मजीवों (गट माइक्रोबायोटा) और मस्तिष्क के बीच की संवाद प्रणाली को भी बाधित करता है। इन दोनों के बीच की यह अंतःक्रिया सीधे तौर पर चिंता जैसे व्यवहारिक बदलावों, मस्तिष्क की सिग्नलिंग में रुकावट, और न्यूरोलॉजिकल असंतुलन से जुड़ी हो सकती है।
अध्ययन का नेतृत्व कर रहीं डेज़ीरी वांडर्स, जो जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी के पोषण विभाग की अध्यक्ष और एसोसिएट प्रोफेसर हैं, बताती हैं: “हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि मोटापा चिंता जैसे व्यवहार को जन्म दे सकता है, जो संभवतः मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और आंत के स्वास्थ्य में परिवर्तन के कारण हो सकता है।”
जहां अब तक मोटापे को टाइप-2 डायबिटीज़ और हृदय रोग जैसे खतरे से जोड़ा जाता था, वहीं यह शोध एक नया संकेत देता है—कि हमारी सोचने-समझने की क्षमता, भावनात्मक संतुलन और मानसिक स्पष्टता भी मोटापे की गिरफ़्त में आ सकती है। प्रयोग में उपयोग किया गया माउस मॉडल ठीक वैसी ही जटिलताओं को विकसित करता है जैसी मनुष्यों में मोटापे के दौरान देखी जाती हैं, जिससे यह निष्कर्ष और अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
रिपोर्ट में क्या है
इस महत्वपूर्ण अध्ययन के अगले चरण में शोधकर्ताओं ने चूहों को दो समूहों में विभाजित किया पहले समूह को छह सप्ताह तक कम वसा वाला आहार, और दूसरे को 21 सप्ताह तक उच्च वसा वाला आहार दिया गया। जैसा कि पहले से अनुमान था, उच्च वसायुक्त आहार पर रखे गए चूहों का वजन न केवल कहीं अधिक था, बल्कि उनके शरीर में वसा की मात्रा भी कम वसा वाले चूहों की तुलना में काफी ज्यादा पाई गई। जब इन दोनों समूहों के व्यवहार का विश्लेषण किया गया, तो तस्वीर और भी चिंताजनक बन गई। मोटे चूहों ने दुबले चूहों की तुलना में कहीं अधिक चिंता से जुड़े व्यवहार दर्शाए जैसे कि ठिठक जाना या अचानक रुक जाना, जो जानवरों द्वारा किसी खतरे की आशंका में दिखाया जाने वाला रक्षात्मक व्यवहार माना जाता है।
मस्तिष्क संबंधी विश्लेषण में भी अहम संकेत मिले। मोटे चूहों के हाइपोथैलेमस जो मस्तिष्क का वह हिस्सा है जो चयापचय, हार्मोन संतुलन और संज्ञानात्मक प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाता है में संकेतों का स्वरूप पूरी तरह अलग था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मोटापा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि स्नायविक प्रणाली को भी प्रभावित कर रहा है।
इतना ही नहीं, आंत में मौजूद सूक्ष्मजीवों की संरचना में भी बड़ा अंतर देखने को मिला। मोटे चूहों और दुबले चूहों की गट माइक्रोबायोटा पूरी तरह भिन्न थी, जो यह दर्शाता है कि आहार और मोटापे का असर सीधे-सीधे आंत-मस्तिष्क संबंध पर पड़ता है। इस पूरी खोज को लेकर डॉ. डेज़ीरी वांडर्स ने ज़ोर देकर कहा, “इन निष्कर्षों का सार्वजनिक स्वास्थ्य और व्यक्तिगत निर्णयों दोनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।” उन्होंने आगे कहा, “अध्ययन मानसिक स्वास्थ्य पर मोटापे के संभावित प्रभाव को उजागर करता है, विशेष रूप से चिंता के संदर्भ में। आहार, मस्तिष्क स्वास्थ्य और आंत माइक्रोबायोटा के बीच संबंधों को समझकर, यह शोध सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों को निर्देशित करने में मदद कर सकता है, जो विशेष रूप से बच्चों और किशोरों में मोटापे की रोकथाम और प्रारंभिक हस्तक्षेप पर ध्यान केंद्रित करते हैं।”
इन चौंकाने वाले निष्कर्षों को जल्द ही फ्लोरिडा के ऑरलैंडो में आयोजित होने वाली अमेरिकन सोसाइटी फॉर न्यूट्रिशन की प्रमुख वार्षिक बैठक न्यूट्रिशन 2025 में पेश किया जाएगा, जहां दुनियाभर के पोषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस पर विचार-विमर्श करेंगे। यह अध्ययन न केवल विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आम लोगों के लिए भी एक जागरूकता की घंटी है कि हमारे खाने की थाली, हमारे दिमाग की दिशा तय कर सकती है।