जब धर्म का सवाल उठता है, तो आस्था एक पहचान बन जाती है लेकिन हिंदुओं की धार्मिक आस्था ही न्याय की लड़ाई बनती जा रही है। भारत में करोड़ों हिंदुओं को अपने ही मंदिरों और परंपराओं के लिए अदालतों के दरवाज़े खटखटाने पड़ रहे हैं। दक्षिण भारत का ऐतिहासिक तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर एक नए विवाद के केंद्र में आ गया है। इस बार मुद्दा है प्राण-प्रतिष्ठा के मुहूर्त का यानी वह शुभ समय जिसे पुरोहित, शास्त्र और परंपरा तय करते आए हैं। लेकिन अब इस समय के लिए भी हिंदुओं को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ रहा है। हाईकोर्ट ने मंदिर के विधायाहर द्वारा तय समय नहीं माना बल्कि एक समिति द्वारा बताए गए समय को मुहूर्त के लिए तय कर दिया। तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या धार्मिक मुहूर्त भी कोर्ट तय करेंगे?
क्या है पूरा मामला?
तमिलनाडु ऐतिहासिक तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर में होने वाले कुंभाभिषेकम् (प्राण-प्रतिष्ठा) के मुहूर्त को लेकर एक बड़ा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। 7 जुलाई को तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा होनी थी जिसके लिए मंदिर के आधिकारिक ‘विधायाहर’ (Vidhayāhar) (धार्मिक विधियों के प्रमुख और समय निर्धारण के अधिकृत व्यक्ति) आर. शिवराम सुब्रमणिया शास्त्रिगल ने अपने पट्टोलाई (अंतिम फैसले) में दोपहर के समय (12:05 बजे से 12:45 बजे तक) को शुभ माना था। लेकिन मद्रास हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त आगम शास्त्र विशेषज्ञों की समिति ने पुराने ड्राफ्ट के आधार पर सुबह 6:00 से 6:47 का समय तय मुहूर्त के लिए तय कर दिया। विधायाहर आगम शास्त्रों के अनुसार मुहूर्त तय करते हैं और मंदिर परंपरा में उनके धार्मिक निर्णयों को अंतिम माना जाता है।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि समिति की नियुक्ति इसलिए हुई क्योंकि विधायाहर ने तीन अलग-अलग पट्टोलाई दिए और कहीं नहीं बताया कि पहले दो ड्राफ्ट थे। कोर्ट ने आगे कहा कि अगर विधायाहर ने अपने पहले दो पट्टोलाई को ड्राफ्ट बताया होता और साफ़ लिखा होता कि अंतिम समय पंचांग देखकर बाद में बताया जाएगा, तो यह विवाद होता ही नहीं। चूंकि दोनों पक्षों की सहमति से समिति बनाई गई थी और उस समिति के ज़्यादातर सदस्यों ने सुबह के समय को चुना, इसलिए कोर्ट ने उसी को सही माना। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस फैसले को भविष्य के लिए मिसाल नहीं माना जाएगा और सिविल कोर्ट के कोई फैसला देने तक विधायाहर की धार्मिक मामलों में भूमिका और अधिकार को सुरक्षित माना जाएगा। शास्त्रीगल ने हाईकोर्ट के फैसले को ‘प्रक्रिया के लिहाज से अन्यायपूर्ण’ और ‘धार्मिक परंपराओं के खिलाफ’ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
सुप्रीम कोर्ट में विधायाहर ने क्या कहा?
शास्त्रीगल ने मांग की है कि जब तक फिर से समीक्षा न हो तब तक कुंभाभिषेकम् के कार्यक्रम पर रोक लगाई जाए। शास्त्रीगल का कहना है कि अगर किसी समिति को धार्मिक निर्णयों में अंतिम अधिकार दे दिया गया, तो यह मंदिरों की परंपराओं और स्वतंत्रता (जो संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित है) के लिए खतरा बन जाएगा।
याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की जल्द सुनवाई की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या पिछले साल समय विधायाहर ने ही तय किया था, इस पर वकील ने ‘हां’ में जवाब देते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने भी माना था कि समय तय करने का अधिकार मेरे पास ही है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि हाईकोर्ट ने समिति द्वारा तय किए गए समय को मंज़ूरी दे दी जबकि समिति की नियुक्ति को भी उन्होंने चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के लिए 1 जुलाई की तारीख तय की है।