शिया मुस्लिम आबादी वाले देश में हिंदुओं की भी थोड़ी बहुत जनसंख्या है। इसी कारण वहां कई मंदिर भी हैं। ईरान के हिंदू मंदिरों की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन काल में भारत और ईरान के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक आदान-प्रदान हुआ करता था। यहां मंदिरों का स्थापित होना प्राचीन फारसी साम्राज्य से होती है। तब भी भारत और ईरान के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध थे। इस दौरान हिंदू धर्म और संस्कृति का प्रभाव ईरान तक पहुंचा।
ईरान में कई मंदिरों के अवशेष और प्रमाण भी मिलते हैं। इससे ये तो एकदम साफ है कि यहां लंबे समय से हिंदू धर्म के अनुयायी रहते आ रहे हैं। क्योंकि, इनमें से कई मंदिर ऐसे हैं जिनको सदियों पहले बनाया गया था। ये आज भी वहां के हिंदू और दुनियाभर से ईरान जाने वाले हिंदुओं के लिए आस्था के केंद्र है।
ईरान का सबसे फेमस विष्णु मंदिर
बंदर अब्बास शहर का विष्णु मंदिर सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। कहा जाता है इसे हिंदू व्यापारियों के चंदे से हसन खान साद ओल मालेक के शासन में हुआ था। 1892 में यह मंदिर बनकर तैयार हुआ था। इसमें पारंपरिक गुंबद संरचना, जटिल नक्काशी और भारतीय शैली की सजावट है। इस प्राचीन मंदिर को ऐतिहासिक स्मारक भी माना जाता है। भारतीय वास्तुकला से इसके ऊपर एक गुंबद भी बना है।
बुशहर में बना शिव मंदिर
ब्रिटिश व्यापारिक काल में स्थापित हुआ था। यह मंदिर व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण पूजा स्थल था। इसमें इंडो-इस्लामिक प्रभाव, गुंबददार छतें और विस्तृत लकड़ी की नक्काशी है। यहां भगवान शिव की पूजा की जाती है। हालांकि, प्रांगण में अन्य हिंदू देवी देवताओं की स्थापना की गई है। वहां रहने वाले लोगों के साथ ही ईरान पहुंचने वाले हिंदू यहां एक बार जरूर जाते हैं।
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सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता
ईरान में हिंदुओं की आबादी केवल 6 प्रतिशत है। साल 2015 तक यहां 39,200 हिंदू रहते थे। हालांकि यहां हिंदुओं को माइनॉरिटी का दर्जा नहीं दिया गया है। हालांकि, इस्लामी विरासत वाले देश में भी सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता है। ईरान में हिंदू मंदिरों की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन काल में भारत और ईरान के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक आदान-प्रदान हुआ करता था। ईरान में हिंदू मंदिरों का इतिहास औपनिवेशिक और व्यापारिक विस्तार के समय का है।
ईरान के अन्य हिंदू मंदिर
- चाबहार में एक मंदिर गुजरात के हिंदू व्यापारियों ने बनवाया था। यहां हिंदू और फारसी कला का समागम है।
- केरमान में हिंदू मंदिर 19वीं शताब्दी में बनाया गया था। यहां फारसी टाइल वर्क और हिंदू रूपांकनों का दुर्लभ मिश्रण है।
- अहवाज में मंदिर फारसी और हिंदू स्थापत्य कला का अनोखा मिश्रण है। इसमें रंगीन भित्तिचित्र और पारंपरिक मंदिर मूर्तियां हैं।
- यजद में हिंदू मंदिर 19वीं शताब्दी में भारतीय व्यापारियों ने बनवाया था। यहां नक्काशी और पारंपरिक फारसी ज्यामितीय पैटर्न हैं।
- तेहरान में एक और छोटा मंदिर औपनिवेशिक व्यापारिक अतीत का एक अवशेष है। हालांकि, यहां जटिल रूप से डिजाइन किया गया गर्भगृह है।
- शिराज में काजर राजवंश के दौरान एक मंदिर बनवाया गया था। यह शहर के हिंदू समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण पूजा स्थल है।
- मशहद में मंदिर में हिंदुओं के अलावा मुसलमानों भी आते हैं। यह मंदिर खासतौर से हिंदू व्यापारियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण माना जाता है।
- सफाविद युग में इस्फहान में हिंदू मंदिर बनवाया गया था। इंडो-ईरानी इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए एक जरूरी दर्शनीय स्थल है।
सनातन का प्रभाव और सांस्कृतिक
इन मंदिरों के अलावा 16वीं शताब्दी में बंदर अब्बास में ही बनाया गया मंदिर है। यहां हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। वहीं एक और मंदिर जहेदन में है। जिसे 20वीं शताब्दी में बनाया गया था। यहां कई हिंदू धर्म के प्रतीक और मूर्तियां हैं। इन मंदिरों की कहानी ईरान में हिंदू धर्म के प्रभाव और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की गवाही देती है। नोट- यहां दी गई कई मंदिरों की जानकारी सोशल मीडिया पर आधारित है। हम इसकी पूरी तरह से पुष्टि नहीं करते।