ईरान के वरिष्ठ शिया धर्मगुरु ग्रैंड आयतुल्ला नासेर मकारेम शिराज़ी ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ एक फतवा जारी किया है। इस फतवे में दोनों नेताओं को ‘खुदा का दुश्मन’ और ‘मोहेरेब’ (अर्थात जो खुदा के खिलाफ युद्ध करते हैं) घोषित किया गया है। साथ ही मुसलमानों से आह्वान किया गया है कि वे ट्रंप और नेतन्याहू को ‘अपने शब्दों और गलतियों पर पछताने को मजबूर करें’। यह फतवा ऐसे समय में आया है जब 12 दिनों तक चले ईरान-इज़रायल युद्ध के बाद अमेरिका की मध्यस्थता में 24 जून को संघर्षविराम हुआ है। इस धार्मिक आदेश ने पश्चिम एशिया में पहले से तनावपूर्ण माहौल को और गंभीर बना दिया है।
क्यों दिया गया फतवा?
यह फतवा बीते 13 जून 2025 को शुरू हुए 12 दिवसीय युद्ध के दौरान खामेनेई के खिलाफ ट्रंप और नेतन्याहू द्वारा की गई धमकियों के बारे में एक प्रश्न के जवाब में जारी किया गया था। इजरायल के दावों के अनुसार, इजरायल के ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ ने ईरानी परमाणु सुविधाओं, सैन्य कमांडरों और वैज्ञानिकों को निशाना बनाया, जिसमें कम से कम 30 कमांडर और 11 परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। संघर्ष के दौरान, इजरायल के रक्षा मंत्री इजरायल कैट्ज ने खामेनेई की हत्या की खुलेआम धमकी देते हुए कहा, “अगर खामेनेई हमारी नज़र में होते, तो हम उन्हें मार देते।” ट्रंप ने इसे दोहराते हुए कहा कि उन्हें खामेनेई का स्थान पता था और उन्होंने उन्हें ‘एक बदसूरत और अपमानजनक मौत’ से बचाया, ईरानी नेता को ‘आसान लक्ष्य’ कहा था।
इन बयानों के बाद, ग्रैंड आयतुल्ला शिराज़ी ने ट्रंप और नेतन्याहू को ‘मोहेरेब’ घोषित किया और कहा कि जो कोई भी ईरान के सर्वोच्च नेता या शिया धर्मगुरुओं को धमकाता है, वह खुदा के खिलाफ युद्ध छेड़ता है। इस्लामी कानून के अनुसार ‘मोहेरेब’ वे होते हैं जो खुदा या शरीयत के खिलाफ युद्ध करते हैं। ईरानी कानून में इनके लिए सजा बेहद सख्त है- फांसी, अंग कटना, सूली पर चढ़ाना या देश निकाला। शिराज़ी ने साफ कहा कि ट्रंप या नेतन्याहू का समर्थन करना भी इस्लाम में ‘हराम’ यानी प्रतिबंधित है।
क्या होगा फतवे का असर?
फतवा कोई कानूनी आदेश नहीं होता, लेकिन शिया मुस्लिम समुदाय में इसका गहरा असर होता है। ग्रैंड आयतुल्ला शिराज़ी ईरान के धार्मिक शहर क़ुम से ये फतवा जारी कर रहे हैं और उनके दुनियाभर में लाखों अनुयायी हैं। उनका यह कहना कि ‘इन दुश्मनों को उनके कर्मों पर पछताने को मजबूर करो’ धार्मिक हिंसा को भड़काने वाला माना जा रहा है। ब्रिटिश-ईरानी विश्लेषक नियाक घोरबानी और खुसरो इस्फहानी जैसे विशेषज्ञों ने इसकी तुलना 1989 के उस फतवे से की है जो सलमान रुश्दी के खिलाफ जारी हुआ था और जिसके चलते 2022 में उन पर जानलेवा हमला हुआ।
इस फतवे से पश्चिम एशिया में तनाव और बढ़ सकता है। ईराक, लेबनान और यमन जैसे देशों में जहां ईरान का प्रभाव है, वहां किसी चरमपंथी संगठन या व्यक्ति द्वारा हिंसक प्रतिक्रिया हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फतवा एक राजनीतिक कदम भी है, जिससे ईरान की सरकार इस्लाम और देश की रक्षा के नाम पर जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन जुटा सके। साथ ही यह ट्रंप के उन दावों का जवाब भी है जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने ईरान का परमाणु कार्यक्रम ‘बर्बाद’ कर दिया है। हालांकि, IAEA के मुताबिक ईरान की परमाणु क्षमताएं अब भी बची हुई हैं।
इस फतवे ने ईरान, अमेरिका और इजरायल के बीच चल रहे टकराव में एक धार्मिक मोड़ ला दिया है। यह महज एक धार्मिक आदेश नहीं, बल्कि एक उग्र राजनीतिक संदेश है। जिसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। जैसे सलमान रुश्दी के खिलाफ जारी फतवा दशकों तक हिंसा को भड़काता रहा, वैसे ही इस नए फतवे से भी वैश्विक सुरक्षा को खतरा हो सकता है।