कभी अमेरिकी राजनीति और तकनीक की सबसे अप्रत्याशित लेकिन ताकतवर जोड़ी माने जाने वाले डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क अब एक ऐसे मोड़ पर पहुंच चुके हैं जहां दोस्ती की जगह सार्वजनिक दुश्मनी ने ले ली है। एक साल पहले तक यह दोनों अपने-अपने क्षेत्रों की ताकत बनाकर अमेरिका को एक नई दिशा देने की बात कर रहे थे। ट्रंप के पास राजनीतिक सत्ता थी, मस्क के पास पूंजी, टेक्नोलॉजी और सोशल मीडिया का वर्चस्व। लेकिन अब यह साथ एक खुले युद्ध में बदल गया है और वह भी बेहद तेज़, निजी और विस्फोटक ढंग से।
तनाव की शुरुआत उस वक्त हुई जब मस्क ने ट्रंप के प्रमुख घरेलू नीति प्रस्ताव ‘बिग ब्यूटीफुल बिल’ को सार्वजनिक रूप से ‘disgusting abomination’ यानी घिनौना और घृणित कहकर खारिज कर दिया। बात यहीं नहीं रुकी। मस्क ने डॉगकॉइन (DOGE) से अपने इस्तीफे की घोषणा की, जिसे ट्रंप लॉबी के आर्थिक एजेंडे से जोड़कर देखा गया। फिर Oval Office में मस्क की आंख पर लगे काले धब्बे को लेकर ट्रंप की टिप्पणी और यह तंज कि उन्होंने मेकअप क्यों नहीं किया, चीजों को और उकसाने वाला साबित हुआ।
लेकिन असली धमाका तब हुआ जब मस्क ने ‘X’ पर ट्रंप पर सबसे गंभीर आरोपों में से एक लगा दिया। उन्होंने लिखा कि डोनाल्ड ट्रंप का नाम एपस्टीन फाइलों में है और इसी वजह से उन फाइलों को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। यह दावा न सिर्फ व्यक्तिगत हमला था बल्कि अमेरिकी न्याय व्यवस्था और सत्ता के गलियारों में खलबली मचाने वाला था। जवाब में ट्रंप ने तुरंत मस्क की कंपनियों को मिलने वाले अरबों डॉलर के फेडरल कॉन्ट्रैक्ट्स पर रोक लगाने की धमकी दे डाली, और साथ ही मस्क के करीबी को NASA के प्रमुख पद के लिए नामित करने का समर्थन भी वापस ले लिया।

अब मामला नीतियों और विचारों की असहमति से बहुत आगे निकल चुका है। मस्क अब ट्रंप के खिलाफ महाभियोग की मांग कर रहे हैं और रिपब्लिकन पार्टी से अलग होकर एक नए राजनीतिक फ्रंट की संभावना भी जताई है। उन्होंने जेडी वेंस को अगला राष्ट्रपति बनाए जाने की खुली वकालत की है, जो ट्रंप के लिए एक सीधा राजनीतिक चैलेंज है। ऐसे में यह टकराव अब सिर्फ दो शक्तिशाली व्यक्तियों की निजी लड़ाई नहीं रह गई, बल्कि अमेरिका की राजनीति, अर्थव्यवस्था और वैश्विक संबंधों पर प्रभाव डालने वाला संकट बन चुका है।
भारत के लिए यह टकराव महज़ अमेरिका की एक आंतरिक सियासी लड़ाई नहीं है, बल्कि एक ऐसा झटका है जो उसकी भविष्य की रणनीतिक दिशा को सीधे प्रभावित कर सकता है। डोनाल्ड ट्रंप के दौर में भारत ने जिस तरह व्यापार, रक्षा और विदेश नीति के मोर्चे पर कई नए दरवाज़े खोले थे, वह सहयोग किसी भी बदलाव के प्रति बेहद संवेदनशील है। दूसरी ओर, एलन मस्क भारत के टेक्नोलॉजिकल भविष्य की बड़ी उम्मीद माने जा रहे थे इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर स्पेस और टेलीकॉम सेक्टर तक उनकी बढ़ती दिलचस्पी भारत के साथ साझेदारी को एक नई ऊंचाई देने की ओर बढ़ रही थी। अब ज़रूरत है गहराई से समझने की ट्रंप और मस्क की इस अभूतपूर्व भिड़ंत का भारत के हितों, साझेदारियों और भविष्य की रणनीति पर क्या पड़ सकता है असली असर। तो चलिए शुरू करते हैं….
भरता के लिए क्या हैं इस ब्रेकअप के मायने
H-1B वीजा
भारत के नज़रिए से देखा जाए तो ट्रंप और मस्क के बीच यह टकराव सिर्फ दो वैश्विक ताकतों की राजनीतिक खींचतान नहीं, बल्कि एक गहरा संकेत है कि अमेरिका की भावी तकनीकी और इमिग्रेशन नीति किस मोड़ पर जा सकती है। यह संघर्ष उन लाखों भारतीय पेशेवरों के भविष्य से जुड़ा है, जिनके लिए अमेरिका आज भी सबसे बड़ा अवसरों का मंच बना हुआ है। खासकर H-1B वीज़ा को लेकर बीत साल हुए विवाद के सन्दर्भ में।
ट्रम्प जिन्होंने H-1B वीजा को सीमित करने की कोशिश की थी। 2020 में, उन्होंने महामारी का हवाला देकर H-1B वीजा को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया और उच्च वेतन की आवश्यकता जैसे नियम लागू किए, ताकि विदेशी श्रमिकों को सस्ते विकल्प के रूप में इस्तेमाल न किया जाए। 2016 में, उन्होंने इसे “अमेरिकी श्रमिकों के लिए बहुत बुरा” बताया था। दूसरी बार सत्ता में आने के बाद ट्रम्प ने 2024 में H-1B वीज़ा के समर्थन की बात की है, लेकिन इस कथित यू-टर्न के पीछे का सच मस्क और सिलिकॉन वैली के अन्य प्रभावशाली टेक लीडर्स का दबाव माना जा रहा है। गौरतलब है कि एलन मस्क ने 2024 के राष्ट्रपति अभियान में ट्रंप को $250 मिलियन से अधिक का दान दिया था यह महज़ राजनीतिक समर्थन नहीं था, बल्कि एक स्पष्ट संकेत था कि मस्क नीति-निर्माण में अपनी जगह चाहते हैं। और उस नीति का केंद्र बिंदु था वैश्विक प्रतिभा के लिए अमेरिका के दरवाज़े खुले रखना।
H-1B वीज़ा को लेकर मस्क की सोच भारत के लिए विशेष रूप से अहम रही है। उन्होंने इसे अमेरिका की तकनीकी श्रेष्ठता के लिए अनिवार्य बताया और इसे उस “शीर्ष 0.1% टैलेंट” से जोड़ा, जो देश को नवाचार की दौड़ में आगे रखता है। उन्होंने इसकी तुलना NBA जैसी विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं से की, जहां केवल बेहतरीन विदेशी खिलाड़ियों को जगह मिलती है। मस्क खुद H-1B पर अमेरिका आए थे, और यही वजह है कि जब ट्रंप की कट्टरपंथी MAGA लॉबी इस वीज़ा पर हमलावर हुई, तब मस्क ने खुलकर उनका विरोध किया। भारत के लिए यह एक मनोवैज्ञानिक आश्वासन था कि उसकी प्रतिभा को एक वैश्विक मंच पर संरक्षित किया जा रहा है।
अब जबकि ट्रंप और मस्क के रिश्ते सार्वजनिक रूप से टूट चुके हैं, यह सिर्फ एक व्यक्तिगत दरार नहीं बल्कि एक नीतिगत मोर्चा बनता जा रहा है। यह आशंका अब और भी प्रबल हो चुकी है कि ट्रंप एक बार फिर अपने पुराने रुख की ओर लौट सकते हैं और इस बार सिर्फ नीति के आधार पर नहीं, बल्कि मस्क को परोक्ष रूप से राजनीतिक रूप से निशाना बनाने के लिए। बढ़ती तल्ख़ी को देखते हुए यह कहना मुश्किल नहीं कि मस्क से जुड़ी हर नीति अब ट्रंप के लिए टकराव का विषय बन सकती है। और अगर ऐसा होता है, तो भारत इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा।
यह चिंता हवा में नहीं है। अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा (USCIS) की मार्च 2024 की रिपोर्ट बताती है कि वित्तीय वर्ष 2023 में जारी कुल 3.86 लाख H-1B वीज़ाओं में से 72.3% यानी लगभग 2.79 लाख भारतीय नागरिकों को मिले। दूसरे नंबर पर चीन था, जिसे महज़ 11.7% वीज़ा मिले। इस कार्यक्रम का 65% हिस्सा कंप्यूटर और आईटी सेक्टर के लिए आरक्षित रहा, जबकि इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर और शिक्षा जैसे क्षेत्रों को क्रमशः 9.5% और 6% मिला। H-1B वीज़ा धारकों का औसत वेतन $118,000 रहा, जो यह साफ दर्शाता है कि ये लोग सिर्फ “सस्ते श्रमिक” नहीं बल्कि उच्च कौशल वाले ग्लोबल प्रोफेशनल हैं।
अगर ट्रंप, इस व्यक्तिगत और वैचारिक टकराव के चलते अप्रवासन नीतियों को फिर से कठोर बनाते हैं, तो इसका सीधा और गहरा असर भारतीय पेशेवरों पर पड़ेगा। भारत, जो अब वैश्विक टेक्नोलॉजी और नवाचार की श्रृंखला में एक निर्णायक कड़ी बनने की ओर बढ़ रहा है, उसके लिए यह टकराव एक नई रणनीतिक बाधा खड़ी कर सकता है।
रेमिटेंस में टैक्स बढोतरी
दरअसल ट्रंप और मस्क के बीच बढ़ते तनाव की हालिया आग भड़की ‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल एक्ट’ (OBBBA) को लेकर एक ऐसा विधेयक जो न केवल अमेरिका के घरेलू नीति एजेंडे को दोबारा लिखने की कोशिश करता है, बल्कि अप्रवासी समुदायों के आर्थिक हितों पर सीधा वार करता है। यह बिल 22 मई 2025 को अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में महज़ एक वोट के अंतर से पास हुआ, और अब यह मस्क-ट्रंप टकराव की नई लड़ाई का केंद्रीय बिंदु बन चुका है।
इस कानून के तहत अमेरिका से विदेशों में भेजे जाने वाले पैसों यानी रेमिटेंस पर 3.5% से 5% तक का टैक्स लगाने का प्रस्ताव है। यह टैक्स विशेष रूप से गैर-अमेरिकी नागरिकों पर लागू होगा, जिसमें H-1B वीज़ा होल्डर्स, ग्रीन कार्ड आवेदक, और अस्थायी वर्कर्स शामिल हैं जिनमें से बड़ी संख्या भारतीय हैं। यह केवल एक आर्थिक प्रावधान नहीं है, बल्कि अप्रवासी समुदायों पर एक स्पष्ट राजनीतिक दबाव भी है, जो ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को एक बार फिर आक्रामक मोड में ले जाता है।
भारत के लिए यह स्थिति दोहरे संकट जैसी है। एक ओर H-1B वीज़ा पर बढ़ती अस्थिरता और अब रेमिटेंस टैक्स के ज़रिए अमेरिकी नीति अप्रवासी भारतीयों पर आर्थिक शिकंजा कस रही है, वहीं दूसरी ओर यह रिश्ता जिस मस्क के सहयोग से कभी संतुलित हो रहा था, वही अब ट्रंप के सीधा निशाना बनने लगे हैं। यह संभावित है कि ट्रंप, मस्क के विरोध में और तेज़ी लाते हुए OBBBA जैसे बिलों को और आक्रामक बनाएँ और यह भारत के हितों के लिए एक और बड़ा झटका होगा।
यह तथ्य नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि अमेरिका से भारत को हर साल अरबों डॉलर का रेमिटेंस प्राप्त होता है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, 2023 में भारत को कुल 125 अरब डॉलर का रेमिटेंस मिला था, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका में बसे भारतीयों से आया था। ऐसे में इस बिल के प्रभाव केवल अमेरिका में रहने वाले भारतीयों तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था, विदेशी मुद्रा भंडार और करोड़ों परिवारों की जीविका पर भी सीधा असर डालेंगे। अब जब ट्रंप और मस्क के बीच यह टकराव खुलकर सामने आ गया है, और OBBBA जैसे बिलों को मस्क द्वारा “इकोनॉमिक नेशनलिज़्म की घातक मिसाल” बताया गया है, यह कहना गलत नहीं होगा कि ट्रंप इस बिल को मस्क के प्रभाव को कमजोर करने के उपकरण की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। और यदि ऐसा होता है, तो इसका अगला झटका अप्रवासी भारतीयों को लगेगा।