ईरान और इजरायल के बीच सैन्य तनाव बढ़ने के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप काफी चर्चा में हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया कि अमेरिका को ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामनेई की सटीक लोकेशन की जानकारी है। चर्चा आई कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने खामनेई को मार गिराने की योजना अमेरिकी राष्ट्रपति से साझा की थी। हालांकि, ट्रंप ने फिलहाल उन्हें निशाना बनाने से इनकार कर दिया है। खामेनेई पर इस चर्चा ने ईरान में संभावित शासन परिवर्तन और उसके नेतृत्व के भविष्य पर नए सिरे से अटकलें तेज कर दी हैं।
G7 सम्मेलन से वापसी के कारण अटकलें
ट्रंप ने कहा कि मौजूदा मध्य-पूर्वी हालात के चलते वह जी-7 शिखर सम्मेलन से पहले ही वापस लौटेंगे। व्हाइट हाउस के बयान के अनुसार उन्होंने कनाडा से रात्रि भोज के बाद प्रस्थान करने का निर्णय लिया। कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि ईरान से तनाव बढ़ने के मद्देनजर ट्रंप को अमेरिकी नागरिकों को तेहरान से निकालने जैसे कदम उठाने पड़े। वास्तव में वो अपने संदेश में सभी को तुरंत तेहरान छोड़ने की चेतावनी दी और अमेरिका ने मध्य-पूर्व क्षेत्र में अतिरिक्त युद्धक विमान तैनात किए। इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि ईरान में किसी भी अप्रत्याशित घटना की स्थिति में अमेरिका ने तुरंत प्रतिक्रिया की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
अयातुल्ला खामनेई के बाद ईरान
यदि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामनेई की अचानक मृत्यु हो जाती है या वे सत्ता से हटते हैं तो देश में संवैधानिक प्रावधानों के तहत ईरान की विशेषज्ञों की सभा नए नेता का चुनाव करेगी। अभी तक किसी विशेष उत्तराधिकारी की आधिकारिक घोषणा नहीं है। हालांकि, मीडिया जगत में उच्चतम पद के लिए संभावित उम्मीदवारों पर चर्चा हो रही है। संविधान के अनुसार अगले सर्वोच्च नेता का चुनाव 88 सदस्यीय विशेषज्ञों की सभा द्वारा किया जाएगा। वर्तमान सत्र में खामेनेई लगभग 92 वर्ष के होंगे। मई 2024 में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद खामनेई के दो मुख्य संभावित उम्मीदवारों के रूप में उनके बेटे मोज्तबा खामनेई और कड़े रूढ़िवादी नेता सादिक (सद्दीक) लारीजानी का नाम सामने आया है।
इस मामले में ईरान का राजनीतिक तंत्र भी परिवर्तन के दौर से गुजरेगा। नए सर्वोच्च नेता के आते ही देश की न्यायपालिका, अर्धसैनिक बलों (IRGC) और अन्य महत्वपूर्ण संस्थानों का नियंत्रण बदलेगा। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि उत्तराधिकारी का चुनाव तय हो चुका है लेकिन गोपनीय रखा गया है। विशेषज्ञों की सभा की क्रियाविधि बेहद पारदर्शिता रहित होती है। इस प्रक्रिया में उम्मीदवार की धार्मिक योग्यता, राजनीतिक निष्ठा और व्यवस्था की स्थिरता बनाए रखने की क्षमता का विशेष मूल्यांकन होता है।
संभावित उत्तराधिकारी कौन-कौन?
अयातुल्ला खामनेई के बाद किसका नाम सर्वोच्च नेता के रूप में उभर सकता है इसे लेकर कई शीर्ष धार्मिक और राजनीतिक हस्तियों का जिक्र हो रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, मुख्य प्रत्याशियों में उनका बेटा मोज्तबा खामनेई, कदीमी करीबी अलीरेज़ा आरफ़ी और वरिष्ठ धर्मगुरु हाशेम हुसैनी बुशहरी का नाम सबसे आगे है। मोज्तबा खामनेई को ईरानी रिवॉल्यूशन गार्ड कॉर्प्स (IRGC) में गहरे संबंधों के चलते आगे माना जाता है। हालांकि, वंशवाद को कई शक्तिशाली संस्थान अघोषित रूप से अस्वीकार करती है।
सानी आरफ़ी क़ासीदी विशेषज्ञों की सभा का उपाध्यक्ष और गार्डियन काउंसिल का सदस्य रह चुका है। साथ ही कुम में शुक्रवार की नमाज़ के खुतबे के प्रमुख भी हैं। इनके धार्मिक और संस्थागत कद को देखते हुए उन्हें एक मजबूत दावेदार माना जा रहा है। हाशेम बुशहरी भी विशेषज्ञों की सभा के प्रथम उपाध्यक्ष और कुम से जुड़े मसलों के विद्वान हैं, जिन्हें अयातुल्ला खामनेई के करीबी सलाहकार के रूप में जाना जाता है।
सादिक लारिजानी और संसद सदस्य मोह्सेन अराकी जैसे वरिष्ठ राजनेताओं का भी नाम चर्चा में आता है। धार्मिक वंश के एक प्रतीक के रूप में हसन खुमैनी, साहब-ए-ख़ुबिया रूहुल्लाह खुमैनी के पोते की भी संभावित रेस में चर्चा थी। हालांकि सुगबुगाहट भरे माहौल में उनके प्रवेश को कड़ा विरोध झेलना पड़ा और उन्हें विशेषज्ञों की सूची से वंचित रखा गया। विश्लेषकों के अनुसार अगले नेता का चयन अमूमन मौजूदा सैन्य-राजनीतिक तंत्र की सहमति से किया जाएगा। इसलिए कोई नया नेता पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं होगा।
रजा पहलवी की हो सकती है वापसी
यदि ईरान में मौजूदा सत्ताधार पूरी तरह टूट जाता है तो देश की निर्वासित राजशाही का वंशज रजा पहलवी एक महत्वपूर्ण मोड़ बनकर उभर सकता है। रजा पहलवी शाह मोहम्मद रजा पहलवी का बेटा है। अभी वो अमेरिका में निर्वासित हैं। उनका ईरानी संस्थागत शासन में कोई औपचारिक दर्जा नहीं है। हालांकि, उन्होंने ईरानियों के बीच एक प्रतीकात्मक लोकप्रियता हासिल की है। हाल के विरोध-प्रदर्शनों में उनके लिए समर्थन दिखा है और शासन परिवर्तन की आहट के बीच देश में उनका नाम चर्चा में आने लगा है। विद्रोही और विपक्षी समूह समय-समय पर रजा पहलवी की वापसी की चर्चा करते रहे हैं।
मुस्लिम दुनिया की प्रतिक्रिया
13 जून 2025 को इजराइल ने “राइजिंग लायन” नामक कोडनेम से ईरान पर सुरक्षात्मक एयरस्ट्राइक की शुरुआत की। इस ऑपरेशन में इजरायली वायुसेना और खुफिया एजेंसियों ने ईरान के कई परमाणु और सैन्य प्रतिष्ठानों पर निशाना साधा। इनमें नतांज का परमाणु परिसर, इस्फ़हान के प्रोसेसिंग संयंत्र, मिसाइल बेस और सैन्य अभियानों से जुड़े कई केंद्र शामिल थे। इस कार्रवाई में कथित रूप से 78 से अधिक लोग मारे गए जिसमें शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक भी शामिल थे।
इस हमले पर दुनिया भर में मुस्लिम बहुल देशों की तीखी प्रतिक्रिया आई है। अफ्रीका और मध्य-पूर्व के 22 मुस्लिम-बहुल राष्ट्रों ने मिलकर इजरायली हमले की “पूर्ण निंदा” की है और उसे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया है। एक संयुक्त बयान में उन्होंने संघर्ष की तीव्रता से परहेज करते हुए सभी पक्षों से शांतिपूर्ण समाधान की वकालत की है। मिस्र की विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में सऊदी अरब, यूएई, कतर, ओमान, बहरीन के साथ-साथ तुर्की, इंडोनेशिया और अफ्रीकी देश भी शामिल थे। इसमें कहा गया था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तनाव कम करने का संदेश देना चाहिए।
विदेशी हस्तक्षेप के सबक
इतिहास ने दिखाया है कि बाहरी सैन्य हस्तक्षेप से सत्ता परिवर्तन के प्रयास अक्सर गंभीर उलट-प्रभाव लाते हैं। उदाहरण के लिए 2003 में इराक में सद्दाम हुसैन को हटाकर बाथ पार्टी को भंग करने से देश में असंतुलन आया। इसके चलते अल-कायदा और बाद में ISIS का उदय हुआ। इसी तरह लीबिया में 2011 में मुअम्मर गद्दाफी के पतन ने सत्ता का वैक्यूम पैदा कर दिया। इसके बाद हजारों मिलिशिया गुटों में बंटकर लंबा गृहयुद्ध चला। सीरिया में भी बाहरी घटकों के हस्तक्षेप ने आम जनता की राय को अलग-अलग ध्रुवों में बांट दिया और सत्तर लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए। इन सबसे एक स्पष्ट सबक मिलता है कि सत्ता परिवर्तन में हथियार का उपयोग जटिल परिणाम दे सकता है।