महिलाओं की अस्मिता की गंभीरता को लेकर हमेशा की चर्चा की जाती है। इसके बीच रेप जैसे वीभत्स मामले जब सामने आते हैं तो महिलाओं के प्रति संवेदनाओं का स्तर और बढ़ जाता है, आरोपियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की मांग की जाती है। अधिकतर मामलों में सज़ा मिलती भी है। लेकिन रेप के मामले में अगर महिला को ही सज़ा मिल जाए तो? सुनने में यह बात बेशक अजीब लग रही हो लेकिन लखनऊ से एक ऐसा ही मामला सामने आया है। 29 जून 2021 को बाराबंकी की रेखा देवी ने जैदपुर थाने में राजेश और भूपेंद्र के खिलाफ बलात्कार और जान से मारने की धमकी का केस दर्ज कराया था। पुलिस को छानबीन में घटनास्थल लखनऊ का बीकेटी मिला तो केस बीकेटी थाने में दर्ज किया गया लेकिन जांच में सामने आया कि मामला झूठा था और उसने जानबूझकर दोनों को फंसाया था।
पुलिस ने इस मामले में राजेश और भूपेंद्र को क्लीन चिट दे दी और कोर्ट से रेखा पर कार्रवाई की मांग की, जिसके बाद रेखा को सज़ा सुनाई गई है। 4 साल बाद कोर्ट ने रेखा को दोषी मानते हुए 7 साल 6 महीने की सजा सुनाई और साथ ही 2 लाख रुपए से अधिक का जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट ने यह भी तय किया है कि इस जुर्माने की आधी-आधी रकम राजेश और भूपेंद्र को दी जाएगी क्यूंकि उन दोनों को बिना किसी गलती के रेप के झूठे केस में फसाया गया था, भूपेंद्र की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई थी, इसलिए भूपेंद्र के हिस्से की रकम उसके परिवार को दी जाएगी ।
न्यायधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने कहा है कि अगर रेखा देवी को सरकार की तरफ से किसी तरह की राहत राशि प्रदान की गई होगी तो उसे जल्द वापस लिया जाए और साथ ही कोर्ट ने एक बड़ा फैसला भी लिया की अब किसी भी पीड़ित को तभी सरकार की तरफ से मुआवजा तभी दिया जाए जब पुलिस चार्जशीट दाखिल कर दे। सिर्फ रिपोर्ट दर्ज होने पर नहीं। इससे झूठे केस करने वालों पर लगाम लगेगी। इस मामले में कोर्ट का फैसला एक सख्त संदेश है कि रेप जैसे मामलों में कानून का दुरुपयोग करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। झूठे मुकदमे दर्ज कराना न सिर्फ निर्दोष लोगों की जिंदगी को बर्बाद करता है, बल्कि न्याय व्यवस्था की साख को भी चोट पहुंचाता है। अब उम्मीद की जा सकती है कि ऐसे मामलों पर सख्ती से रोक लगेगी और असली पीड़ितों को ही न्याय और राहत मिल सकेगी।