प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल में ही G7 समिट में हिस्सा लेने कनाडा पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने समिट से इतर कई नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी की जिनमें फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैंक्रों के साथ उनकी बातचीत भी शामिल है। मैंक्रों के साथ बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने पहले अंग्रेजी और फिर हिंदी में एक वाक्य का इस्तेमाल किया। इसके बाद सोशल मीडिया का एक धड़ा पीएम मोदी के पीछे पड़ गया कि उन्हें अंग्रेज़ी नहीं आती है। यह पहली बार नहीं है जब इस तरह भाषा को लेकर प्रधानमंत्री का मज़ाक उड़ाया गया हो। अक्सर विरोधियों द्वारा प्रधानमंत्री पर इस तरह के हमले किए जाते रहे हैं।
हिंदी पर गर्व करने से एक जमात को दिक्कत क्यों?
पीएम मोदी ने कई बार वैश्विक मंचों से अंग्रेजी में बातचीत की है। अंग्रेजी में मीडिया से बातचीत के उनके कितने ही पुराने इंटरव्यू सामने आते हैं। साफ है कि वे अंग्रेजी समझते, बोलते हैं लेकिन क्या अंग्रेजी आना या ना आना किसी भारतीय नेता की काबिलियत का पैमाना हो सकता है। पीएम मोदी लंबे वक्त तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हैं और वे धारा प्रवाह गुजराती भी बोलते हैं, कई अन्य भाषाओं का भी उन्हें ज्ञान है। लेकिन पीएम बनने की दौड़ से अब तक जिस तरह उन्होंने हमेशा हिंदी को आने बढ़ाने की कोशिश की है, क्या वो विरोधियों को नहीं नज़र आता है। अगर कोई जर्मनी का नेता जर्मन में बात करे, फ्रांस का नेता फ्रैंच में बात करे और चीन के नेता अगर मंदारिन में बात करे तो तब इन लोगों को यह इस देशों के नेताओं का मातृभाषा के प्रति प्रेम दिखता है लेकिन मोदी अगर हिंदी की बात करें तो एक समूह को दिक्कत होने लगती है।
नेता की काबिलियत का पैमाना क्या है?
भारत या दुनिया में किसी नेता की काबिलियत का पैमाना क्या होना चाहिए, कि वो किसी दूसरी भाषा को कितने धारा प्रवाह तरीके से बोलता है या फिर वो अपने देश की जनता तक अपनी बात किस तरह पहुंचाता है। पीएम मोदी ना केवल हिंदी की वकालत करते हैं बल्कि वे सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करने की बात करते हैं और खुद भी करते हैं। पीएम मोदी ने अगस्त 2019 में को एक कार्यक्रम में अपने संबोधन में लोगों से आह्वान करते हुए कहा था कि लोग हर दिन किसी अन्य भारतीय भाषा का एक शब्द जरूर सीखें।
पीएम मोदी ने भाषा को जोड़ने का माध्यम बनाया है, ना कि इसे बंटवारे का कारण। उनके भाषणों की सरलता और गहराई ने भारतीय राजनीति और वैश्विक मंच दोनों पर एक नई मिसाल कायम की है। विदेश में जब वे भारतीय समुदाय से हिंदी में बात करते हैं तो क्या लोगों को ज़्यादा अपनेपन का एहसास नहीं होता होगा? ऐसे में जब पीएम मोदी की वैश्विक मंचों तक भारतीय भाषा गर्व के साथ ले जाने पर तारीफ की जानी चाहिए, एक धड़ा उनके विरोध आ जाता है। पीएम मोदी की भाषा का मजाक उड़ाना न केवल असम्मानजनक है, बल्कि यह भारतीय जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ भी है। सोशल मीडिया पर ही लोगों ने पीएम मोदी का मज़ाक उड़ा रहे लोगों को आईना दिखाया है।
असल में, इन लोगों का दर्द यह है कि एक चाय बेचने वाला, जो ना ऑक्सफोर्ड से पढ़ा, ना कैम्ब्रिज से और वह आज दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र का प्रधानमंत्री है और वह भी हिंदी बोलकर। उनकी परेशानी भाषा से नहीं, पीएम मोदी की लोकप्रियता से है। यह मानसिक गुलामी की स्पष्ट निशानी है, जो अंग्रेज़ों के जाने के 75 साल बाद भी कुछ लोगों के दिमागों में जिंदा है।
अमित शाह ने भारतीय भाषाओं पर क्या कहा?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को हिंदी और भारतीय भाषाओं को लेकर महत्वपूर्ण बयान दिया है। शाह पूर्व IAS अधिकारी आशुतोष अग्निहोत्री की पुस्तक ‘मैं बूंद स्वयं, खुद सागर हूं’ का विमोचन करने पहुंचे थे जहां उन्होंने हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को लेकर बातचीत की है। शाह ने कहा कि इस देश में अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को जल्द ही शर्म आएगी और ऐसे समाज का निर्माण अब दूर नहीं है।
साथ ही, शाह ने कहा, “अपना देश, अपनी संस्कृति, अपना इतिहास और अपने धर्म को समझने के लिए कोई भी विदेशी भाषा पर्याप्त नहीं हो सकती। अधूरी विदेशी भाषाओं के जरिए संपूर्ण भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। मैं अच्छी तरह जानता हूं, यह लड़ाई कितनी कठिन है, लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि भारतीय समाज इसे जीतेगा। एक बार फिर स्वाभिमान के साथ हम अपने देश को अपनी भाषाओं में चलाएंगे और दुनिया का नेतृत्व भी करेंगे।”
थरूर से ही सीख लेता विरोधी धड़ा
भाषा को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर का एक इंटरव्यू पिछले दिनों खूब वायरल हुआ था। थरूर को अंग्रेजी की शानदार समझ रखने वाले लोगों में गिना जाता है लेकिन उन्होंने पीएम मोदी के हिंदी बोलने को पूरी तरह ठीक बताया था। उन्होंने कहा था, “पीएम मोदी ने यह लगभग साफ कर दिया है कि वे अंग्रेजी बोलने से ज्यादा हिंदी बोलने में सहज हैं। और अधिकतर जब वह वैश्विक नेताओं से मिलते हैं तो दुभाषिये के ज़रिए बातचीत करते हैं लेकिन इसमें कुछ भी गलत नहीं है।”
थरूर ने कहा, “इसमें कुछ भी गलत नहीं है, दुनिया के दूसरे नेता भी ऐसा करते हैं, चीन और जापान के लोग ऐसा करते हैं। तो भारत का एक नेता ऐसा क्यों नहीं कर सकता है। पीएम मोदी हिंदी में बोलना पसंद करते हैं और इसमें कुछ गलत नहीं है। देश के कई ऐसे मुख्यमंत्री है जो हिंदी या अंग्रेजी के अलावा अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में बातचीत करते हैं जो पूरी तरह ठीक है।”
तय है कि बात-बात पर पीएम मोदी का मज़ाक उड़ने वालों ने थरूर से कुछ नहीं सीखा है और अगर भाषा से ही लोग नेता बनते तो इनके समर्थक भी प्रधानमंत्री बन गए होते लेकिन ऐसा नहीं है।
हिंदी और भारतीय भाषाओं का बढ़ता सम्मान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदी और भारतीय भाषाओं को केवल दिखाने के लिए ही महत्व नहीं दिया है बल्कि उन्हें नीतियों, शिक्षा और शासन के केंद्र में लाकर एक नई पहचान दी है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा सहित अनेक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी में भाषण देकर यह दिखाया कि भारत अपनी भाषा में भी आत्मविश्वास से वैश्विक संवाद कर सकता है। ‘मन की बात’ जैसे मासिक कार्यक्रम को हिंदी व 20 से अधिक भारतीय भाषाओं में प्रसारित कर उन्होंने भारतीय भाषाओं को सशक्त जनसंवाद का माध्यम बनाया है।
2020 में लागू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में उन्होंने मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर बच्चों की सोच और अभिव्यक्ति को जड़ों से जोड़ा है। मोदी सरकार के तहत सरकारी पोर्टलों, ऐप्स और कार्यालयों में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग तेज़ी से बढ़ा है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतें भी तेज़ी से हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की ओर बढ़ रही हैं।
हिंदी को लेकर भी मोदी कभी झिझके नहीं, उन्होंने साफ कहा कि हिंदी और बाकी भारतीय भाषाएं अब सिर्फ घर या गांव की नहीं, बल्कि विज्ञान, टेक्नोलॉजी और वैश्विक नेतृत्व की भाषाएं बन सकती हैं। उनके नेतृत्व में पहली बार ऐसा हुआ है कि भारतीय भाषाओं को स्कूलों, सरकारी कामकाज और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जगह मिलने लगी है। मोदी का ये नजरिया देश को भाषाई तौर पर मज़बूत ही नहीं बना रहा बल्कि हमें अंग्रेज़ी की मानसिक ग़ुलामी से भी आज़ाद कर रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा भारत की भाषाई विविधता को देश की ताकत माना है। उनके लिए भाषा सिर्फ बात करने का ज़रिया नहीं है बल्कि यह हमारी संस्कृति, पहचान और आत्मसम्मान का हिस्सा है। उन्होंने तमिल, तेलुगु, बंगाली, असमिया और कन्नड़ जैसी भाषाओं का सम्मान करते हुए बार-बार कहा है कि ये सभी भाषाएं भारत की आत्मा हैं और इन्हें सहेजना ज़रूरी है।