केरल की राजनीति और वामपंथी आंदोलन की एक अत्यंत प्रभावशाली शख्सियत वेलिक्ककाथु शंकरन अच्युतानंदन (वी.एस. अच्युतानंदन) का सोमवार शाम को तिरुवनंतपुरम के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया है। वह 101 वर्ष के थे और बीते कुछ वर्षों से स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं से जूझ रहे थे। करीब एक महीने पहले उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, जिसके बाद से वे अस्पताल में भर्ती थे और लगातार चिकित्सकीय देखरेख में थे। अच्युतानंदन 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री भी रहे थे।
अच्युतानंदन ना केवल केरल बल्कि पूरे भारत में वामपंथी राजनीति का एक मजबूत और निडर चेहरा थे। उन्हें जनता के बीच ‘कॉमरेड वीएस’ के नाम से जाना जाता था। उनका जीवन पूरी तरह से सादगी, संघर्ष और जनसेवा को समर्पित रहा। वह केरल के उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने जनहित के मुद्दों पर कभी समझौता नहीं किया और सिद्धांतों की राजनीति करते रहे।
कैसा रहा बचपन?
1923 में केरल के अलपुझा ज़िले के पुन्नपरा गांव में जन्मे वी.एस. अच्युतानंदन का जीवन बेहद कठिन परिस्थितियों में शुरू हुआ। वे एझावा समुदाय से ताल्लुक रखते थे, जिसे उस समय सामाजिक रूप से पिछड़ा माना जाता था। मात्र 11 वर्ष की उम्र तक आते-आते उन्होंने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था। जब वे केवल चार साल के थे, तब उनकी मां की मृत्यु चेचक से हो गई थी।
उस भयावह समय की स्मृतियां उनके मन में आजीवन बनी रहीं। वे अक्सर याद करते थे कि कैसे बीमारी के डर से उनकी मां को एक झोपड़ी में अलग-थलग रखा गया था, और वे मासूम निगाहों से अपने बेटे को दूर से निहारती रहती थीं। परिवार की आर्थिक तंगी ने उन्हें बहुत जल्दी जिम्मेदारियों की ओर धकेल दिया। 12 वर्ष की आयु में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और अपने बड़े भाई की सिलाई की दुकान में काम करना शुरू कर दिया ताकि घर का गुज़ारा चल सके।
कई अन्य शुरुआती वामपंथी नेताओं की तरह वीएस अच्युतानंदन की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत भी कांग्रेस पार्टी से हुई। वे महज़ 15 वर्ष की उम्र में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। लेकिन जल्द ही उनका झुकाव वामपंथ की ओर हुआ और मात्र 17 साल की उम्र में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की सदस्यता ले ली। इसके बाद उन्होंने अलपुझा के मछुआरों, ताड़ी दोहन करने वालों और नारियल पेड़ों पर चढ़ने वाले मजदूरों के बीच सक्रिय रूप से काम करना शुरू किया और अपनी एक मजबूत पहचान बनाई। वी.एस. अच्युतानंदन धीरे-धीरे CPI में बढ़ते गए। पहले वे अलप्पुझा ज़िले के सचिव बने, फिर पार्टी की राज्य समिति के सदस्य बने और आखिरकार 1957 में राज्य सचिवालय के सदस्य बनाए गए। उसी साल CPI ने भारत में पहली बार कांग्रेस के अलावा किसी और पार्टी की सरकार बनाई।
1962 के भारत-चीन युद्ध में देश का समर्थन पड़ा भारी
भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध में वामपंथियों के एक बड़े तबके ने वामपंथी देश चीन का कथित तौर पर समर्थन किया था। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान CPI ने चीन का समर्थन किया। उन्होंने विचारधारा को देश से ऊपर रखा। इसके बाद सरकार ने कई कम्युनिस्ट नेताओं को जेल में डाल दिया। उस समय वी.एस. अच्युतानंदन 39 साल के थे और पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य थे। उन्हें तिरुवनंतपुरम सेंट्रल जेल में रखा गया। जेल में रहते हुए कम्युनिस्टों पर ‘चीन का एजेंट’ होने के आरोप लग रहे थे।
इन आरोपों को कम करने के लिए वी.एस. ने एक सादा पार्टी बैठक में सुझाव दिया कि जेल के कैदी सैनिकों के लिए खून दान करें और जो राशन वे बचा रहे हैं, उसे बेचकर पैसा इकट्ठा कर सरकार की रक्षा निधि में दें। लेकिन पार्टी की जेल कमेटी के संयोजक और बाद में राज्यसभा सदस्य बने ओ.जे. जोसफ ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
अगली बैठक में अच्युतानंदन ने फिर से प्रयास किया। उन्होंने जोरदार तरीके से तर्क दिए और बहुत कोशिश की लेकिन बैठक का अंत अच्युतानंदन और जोसफ के गुटों के बीच हाथापाई में हुआ। यह खबर मीडिया में लीक हो गई। इसके बाद बंगाल के कम्युनिस्ट नेता ज्योति बसु ने ई.एम.एस. नंबूदिरिपाद से बात की और उन्होंने के.पी.आर. गोपालन (KPR) से मामले की जांच करने को कहा। जैसे-जैसे विवाद बढ़ा, अच्युतानंदन ने सेना को खून दान करने और राशन देने की योजना छोड़ दी।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। अक्टूबर 1965 में जब अच्युतानंदन जेल से बाहर आए, तो एक पार्टी कार्यकर्ता ने पार्टी के नेताओं से उनकी ‘पार्टी के खिलाफ की गई हरकतों’ की शिकायत कर दी। इसके बाद एक जांच कमेटी बनी, जिसने अच्युतानंदन को दोषी माना। दिसंबर में केरल की पार्टी कमेटी ने जांच रिपोर्ट को सही बताया और कहा कि अच्युतानंदन का व्यवहार कम्युनिस्ट विचारधारा के खिलाफ था। इसलिए उन्हें पार्टी की सबसे ऊंची कमेटी से हटाकर नीचे की शाखा में भेज दिया गया। फिर उन्हें अलप्पुझा जिले के पार्टी ऑफिस में भेजा गया, जहां उन्होंने एक साल तक काम किया।
सीपीएम के वरिष्ठ नेता एम.एम. लॉरेंस ने कहा, “अच्युतानंदन ने सेना को खून और राशन देने का फैसला पार्टी से बिना पूछे लिया। उनका यह कदम उस सरकार की मदद करना था, जो उस समय कम्युनिस्ट पार्टी को खत्म करने की कोशिश कर रही थी। इसलिए यह पार्टी विरोधी कदम था।”
लव जिहाद पर भी रहा सख्त रुख
2010 में दिए गए एक इंटरव्यू में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता वी.एस. अच्युतानंदन ने बेहद गंभीर बयान दिया था। उन्होंने कहा था, “वे चाहते हैं कि अगले 20 सालों में केरल को मुस्लिम बहुल राज्य बना दिया जाए। इसके लिए वे लोगों को इस्लाम में धर्मांतरण कराने के लिए पैसे और दूसरी चीजों का लालच दे रहे हैं। वे अपने समुदाय से बाहर की महिलाओं से शादी भी कर रहे हैं ताकि मुस्लिम आबादी बढ़े।”
दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए अच्युतानंदन ने कहा कि राज्य में मुस्लिम कट्टरपंथी अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके लिए वे युवाओं को पैसे और हथियार देकर आकर्षित करते हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि “वे युवाओं को हिंदू लड़कियों से शादी करने के लिए उकसाते हैं।” सीधे शब्दों में कहा जाए तो अच्युतानंदन ने ‘लव जिहाद’ का मुद्दा ही उठाया था और वो भी उस समय, जब वामपंथी खेमे में इस तरह की बातों को उठाना असामान्य माना जाता था।