मंदिरों के चढ़ावे से कॉलेज बनवाएगी DMK सरकार लेकिन चर्च और मस्जिद के साथ ऐसा करने की हिम्मत है?

श्रद्धालुओं की आस्था बनाम सरकारी योजनाएं- मंदिरों की आय से कॉलेज निर्माण पर राजनीति गरमाई

डीएमके सरकार द्वारा मंदिरों के धन का इस्तेमाल कॉलेजों के निर्माण के लिए। क्या यह नैतिक और नैतिक रूप से सही है?

तमिलनाडु सरकार द्वारा मंदिरों के चढ़ावे से कॉलेज बनाने की योजना को लेकर सियासी बहस गरमा गई है। AIADMK के महासचिव एडप्पादी के. पलानीस्वामी ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त (HR&CE) विभाग मंदिरों में चढ़ने वाले दान को कॉलेज बनाने में खर्च कर रहा है।

पलानीस्वामी ने इसे आस्था से जुड़े पैसों का गलत इस्तेमाल बताते हुए पूछा कि क्या राज्य सरकार के पास शिक्षा जैसी योजनाओं के लिए खुद का कोई बजट नहीं है? इसके जवाब में सत्तारूढ़ DMK सरकार का कहना है कि यह कदम शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है और इसका मकसद जनता की भलाई है।

पुराना मामला एक बार फिर चर्चा में

मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण और वहां के पैसों के इस्तेमाल को लेकर बहस कोई नई नहीं है। यह विवाद सबसे पहले नवंबर 2021 में तब शुरू हुआ था, जब DMK सरकार ने मंदिरों से प्राप्त धन और चढ़ावे में मिले सोने को इस्तेमाल कर चार कला और विज्ञान कॉलेज खोलने का प्रस्ताव रखा था। उस वक्त भी विपक्ष ने इसका विरोध किया था। इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने दखल देते हुए कहा था कि मंदिर का धन श्रद्धालुओं द्वारा धार्मिक भावनाओं से दिया जाता है, इसलिए इसका उपयोग ट्रस्टियों की मंजूरी के बिना नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने सरकार की योजना पर अस्थायी रोक लगा दी थी।

फिर जुलाई 2025 में उठे सवाल

जुलाई 2025 में एक बार फिर यह विवाद सामने आया, जब AIADMK ने दोबारा आरोप लगाया कि मंदिरों के दान का इस्तेमाल कॉलेज निर्माण में हो रहा है। विवाद तब और बढ़ गया जब अप्रैल 2025 में करुणानिधि स्मारक पर प्रसिद्ध श्रीविल्लिपुत्तूर मंदिर के गोपुरम की आकृति लगाई गई। BJP ने इस पर आपत्ति जताते हुए इसे हिंदू आस्था के खिलाफ कदम बताया। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष नारायणन तिरुपति ने इसे “घमंड और मूर्खता की चरम सीमा” बताया। इस पर सफाई देते हुए DMK ने कहा कि यह मंदिर से नहीं बल्कि तमिलनाडु के राज्य प्रतीक से जुड़ा हिस्सा है, जिसे 1949 में आधिकारिक तौर पर अपनाया गया था।

कितने मंदिर सरकार के अधीन है?

देश के सिर्फ 10 राज्यों में ही सरकार सीधे तौर पर हिंदू मंदिरों के प्रशासन में शामिल है। इनमें करीब 1,10,000 मंदिर सरकार के अधीन हैं। अकेले तमिलनाडु में 36,425 मंदिर, 56 मठ और 4.78 लाख एकड़ से ज़्यादा भूमि सरकार के नियंत्रण में है। HR&CE विभाग यहां 35,000 से अधिक मंदिरों का संचालन करता है। इन मंदिरों की आय से न केवल धार्मिक गतिविधियाँ चलती हैं, बल्कि अस्पताल, स्कूल, अनाथालय और अन्य समाजसेवी संस्थाएं भी चलाई जाती हैं।

सोने का निवेश और उसका लाभ

अप्रैल 2025 में आई खबरों के मुताबिक, सरकार ने 21 मंदिरों में चढ़ाए गए सोने को गलवाकर 24 कैरेट की छड़ों में बदल दिया और इन्हें बैंकों में जमा कर दिया गया। इस निवेश से मिलने वाले ब्याज से विकास कार्यों को आगे बढ़ाया जा रहा है। सरकार को इस निवेश से हर साल लगभग 17.81 करोड़ रुपये का ब्याज मिल रहा है। HR&CE विभाग ने विधानसभा में जानकारी दी कि इस योजना से मंदिरों को भी आर्थिक फायदा हुआ है।

मंदिर के पैसे से क्या-क्या बनवाया गया है?

DMK के मंत्री पी.के. शेखरबाबू ने AIADMK के आरोपों पर पलटवार करते हुए बताया कि मंदिरों की आय से अब तक 25 स्कूल, 9 कॉलेज, 1 पॉलिटेक्निक संस्थान और 19 अस्पताल खोले जा चुके हैं। उनका कहना था कि यह पैसा समाज के भले के लिए इस्तेमाल हो रहा है, और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। अगर इतिहास की बात करें, तो भारत में मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं होते थे। ये शिक्षा, चिकित्सा और अध्ययन के प्रमुख केंद्र भी थे। कई मंदिरों में गुरुकुल, पाठशालाएं और शोध संस्थान भी चलते थे। समय के साथ जब मंदिरों का संचालन सरकार के अधीन आ गया, तब उनकी संपत्ति और आमदनी पर भी सरकारी नियंत्रण बढ़ गया। इसके बाद मंदिरों की भूमिका केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सिमट कर रह गई।

क्या सिर्फ मंदिर ही सरकार के अधीन है?

यह गंभीर सोच का विषय है कि सिर्फ हिंदू मंदिरों को ही सरकार अपने नियंत्रण में रखती है, जबकि मस्जिदों और चर्चों की संपत्तियों पर न तो सरकार का नियंत्रण है और न ही हस्तक्षेप। मंदिरों को सरकार की योजना में शामिल कर श्रद्धालुओं द्वारा धर्म के नाम पर चढ़ाए गए दान को सार्वजनिक कार्यों में इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे न सिर्फ धार्मिक असंतुलन पैदा होता है, बल्कि हिंदू समुदाय की आस्था पर भी सवाल खड़े होते हैं।ऐसे मामलों में ज़रूरी है कि सरकार किसी एक धर्म की आस्था से जुड़ी संपत्ति या चढ़ावे का इस्तेमाल सार्वजनिक योजनाओं में करते समय अन्य धर्मों के संस्थानों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करे। जब तक सभी धार्मिक संस्थाओं के साथ समानता नहीं बरती जाती, तब तक यह नीतिगत पक्षपात ही माना जाएगा। इसलिए ज़रूरी है कि सभी धार्मिक समुदायों को एक समान देखा जाए और मंदिरों की संपत्ति का उपयोग उसी आस्था और मर्यादा के साथ हो, जैसी श्रद्धालुओं ने उस दान के पीछे भावना रखी थी।

 

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