सोने के कलश से इंद्रधनुष तक: दलाई लामा की खोज का रहस्यमय सफर

कैसे होता है दलाई लामा का चयन? पारंपरिक विधियां और शुभ संकेत

सोने के कलश से इंद्रधनुष तक: दलाई लामा की खोज का रहस्यमय सफर

तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने 2 जुलाई बुधवार को बताया कि वे 14वें दलाई लामा हैं और उनकी पुनर्जन्म की परंपरा जारी रहेगी और दुनिया को 15वां दलाई लामा मिलेगा। उन्होंने यह भी बताया कि उनके उत्तराधिकारी की पहचान उनकी निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही होगी, जिसमें चीन या कोई अन्य बाहरी शक्ति शामिल नहीं होगी।

14वें दलाई लामा का चयन कैसे हुआ?

तिब्बती परंपरा के अनुसार, दलाई लामा की आत्मा पुनर्जन्म लेकर जन्म लेती है। 1935 में तिब्बत के एक किसान परिवार में तेनजिन ग्यात्सो का जन्म हुआ था, जिन्हें दो साल की उम्र में 14वें दलाई लामा के रूप में चुना गया। उनकी पहचान तब हुई जब उन्होंने 13वें दलाई लामा के सामान को पहचान कर कहा, “यह मेरा है।” यह प्रक्रिया एक पारंपरिक धार्मिक तरीका है, जिसके आधार पर ही दलाई लामा चुने जाते हैं।

अगले दलाई लामा का चुनाव कैसे होगा?

दलाई लामा ने मार्च 2025 में अपनी किताब “वॉयस फॉर द वॉइसलेस” में बताया कि उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर पैदा होगा। 1959 में तिब्बत से भागकर वे भारत के धर्मशाला में आकर बसे। उन्होंने कहा है कि वे अपने 90वें जन्मदिन के आस-पास अगले दलाई लामा से जुड़ी जानकारी साझा करेंगे।

तिब्बत की निर्वासित सरकार भी धर्मशाला में बैठी है और इसके तहत दलाई लामा के उत्तराधिकारी को खोजने के लिए एक सिस्टम विकसित किया गया है। दलाई लामा ने यह भी कहा है कि वे तिब्बती जनता और धार्मिक परंपराओं से परामर्श करेंगे कि क्या दलाई लामा की संस्था को जारी रखा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा है कि अगला दलाई लामा लड़की भी हो सकती है, या एक कीट भी हो सकता है, या उनकी आत्मा किसी वयस्क व्यक्ति में भी स्थानांतरित हो सकती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगला दलाई लामा परंपरागत तरीके से ही चुना जाएगा, जो हमेशा शुभ संकेतों और पहचान के आधार पर होता है।

दलाई लामा के चयन की पारंपरिक विधियां

पहले दलाई लामा की पहचान के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल हुआ है  जैसे पूर्व दलाई लामा के वस्त्रों और सामान की पहचान, शुभ संकेतों का मिलना, या नाम निकालने की पारंपरिक विधि जिसमें कागज को आटे की लोई में छिपाकर या स्वर्ण कलश से नाम निकाला जाता था। हालांकि, वह स्वर्ण कलश अब चीन के पास है, और दलाई लामा ने चेतावनी दी है कि उसका गलत इस्तेमाल आध्यात्मिक गुणवत्ता को खत्म कर सकता है।

अब तक के दलाई लामा मुख्य रूप से तिब्बती क्षेत्रों के कुलीन या चरवाहे परिवारों में जन्मे हैं। इनमें से एक मंगोलियाई मूल का था और छठे दलाई लामा का जन्म भारत के अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुआ था।

चीन का क्या कहना है?

चीन का मानना है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने का अधिकार उनकी सरकार का है। वे इसे शाही काल की विरासत बताते हैं, जहां 1793 में सोने के कलश से नाम निकाला जाता था। चीन यह भी कहता है कि अगला दलाई लामा चीन के भीतर ही जन्मेगा और उनका चुनाव चीन के कानूनों के अनुसार होगा।

तिब्बती समुदाय चीन की इस दखलअंदाजी पर संदेह करता है और इसे राजनीतिक चाल मानता है। दलाई लामा ने अपनी किताब में तिब्बतियों से कहा है कि वे चीन या किसी अन्य राजनीतिक ताकत द्वारा मनमाने तरीके से चुने गए दलाई लामा को स्वीकार न करें।

निष्कर्ष

अगले दलाई लामा का चुनाव धार्मिक परंपराओं, तिब्बती जनता की सहमति, और राजनीतिक परिस्थितियों के बीच संतुलन बनाकर किया जाएगा। यह न केवल तिब्बत के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण होगा।

 

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