मराठा शासन की रणनीतिक सैन्य शक्ति की प्रतीक रहे 12 सैन्य किलों को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Sites) की सूची में शामिल किया गया है। इन 12 किलों में से 11 किले महाराष्ट्र के अलग अलग ज़िलों में स्थित हैं जबकि एक तमिलनाडु में है। इनमें महाराष्ट्र में सालहेर किला, शिवनेरी किला, लोहागढ़, खंडेरी किला, रायगढ़, राजगढ़, प्रतापगढ़, सुवर्णदुर्ग, पन्हाला किला, विजय दुर्ग, सिंधुदुर्ग और तमिलनाडु में जिंजी किला शामिल हैं। इसके साथ ही भारत में स्थित विश्व धरोहर स्थलों की संख्या बढ़कर 43 हो गई है इससे पहले इस सूची में भारत के 34 सांस्कृतिक स्थल, 7 प्राकृतिक स्थल और एक मिश्रित स्थल शामिल थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने इन किलों को सूची में शामिल किए जाने पर खुशी जताई है।
पीएम मोदी ने क्या कहा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों ने इन किलों के बारे में और जानने का आह्वान करते हुए X पर लिखा, “हर भारतीय इस मान्यता को पाकर गर्व महसूस कर रहा है। इन ‘मराठा सैन्य परिदृश्यों’ में 12 भव्य किले शामिल हैं, जिनमें से 11 महाराष्ट्र में हैं और 1 तमिलनाडु में।” उन्होंने आगे लिखा, “जब हम मराठा साम्राज्य की गौरवशाली कहानी की बात करते हैं, तो हम उसे अच्छे शासन, मजबूत सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक गौरव और सामाजिक कल्याण की भावना से जोड़ते हैं। मराठा शासकों ने कभी भी अन्याय के सामने झुकने से इनकार किया, और यही बात आज भी हमें प्रेरणा देती है। मैं सभी लोगों से अपील करता हूं कि वे इन किलों की यात्रा करें और मराठा साम्राज्य के समृद्ध इतिहास को करीब से जानें।” साथ ही, पीएम मोदी ने 2014 की अपनी रायगड किले की यात्रा की कुछ तस्वीरें भी X पर शेयर की हैं।
Here are pictures from my visit to Raigad Fort in 2014. Had the opportunity to bow to Chhatrapati Shivaji Maharaj. Will always cherish that visit. pic.twitter.com/sLx9jFXvsB
— Narendra Modi (@narendramodi) July 12, 2025
मराठा सैन्य किलों का इतिहास
‘मराठा सैन्य परिदृश्य’ का मतलब है मराठों द्वारा बनाए गए और विकसित किए गए वे खास किले और सैन्य ढांचे जो 17वीं से लेकर 19वीं शताब्दी के बीच तैयार हुए थे। यह सिर्फ किलों की बात नहीं है, बल्कि एक पूरी सैन्य रणनीति, किलेबंदी की सोच, और उस समय के भूगोल के अनुसार की गई इंजीनियरिंग को दर्शाता है। ये किले उस समय के मराठा शासकों की दूरदर्शिता और रणनीतिक सोच का प्रमाण हैं।
ये किले कहां-कहां स्थित हैं?
भारत में मराठों ने कुल मिलाकर 390 से ज्यादा किले बनाए थे। लेकिन इन सभी में से सिर्फ 12 किलों को ‘मराठा सैन्य परिदृश्य’ के तहत चुना गया है। इन किलों की खास बात ये है कि ये भारत के अलग-अलग भौगोलिक इलाकों– जैसे सह्याद्रि की पहाड़ियां, कोंकण तट, दक्कन का पठार और पूर्वी घाट में फैले हुए हैं। इसका मतलब ये किले सिर्फ सुंदर नहीं बल्कि स्थानीय भौगोलिक स्थिति के हिसाब से रणनीतिक रूप से बनाए गए थे।
कौन-कौन से 12 किले हुए शामिल?
इन 12 किलों को दो संस्थाओं द्वारा संरक्षित किया गया है:-
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित 8 किले:
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शिवनेरी किला
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लोहगढ़
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रायगढ़
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सुवर्णदुर्ग
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पन्हाला किला
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विजयदुर्ग
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सिंधुदुर्ग
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जिंजी किला (तमिलनाडु में)
महाराष्ट्र सरकार के पुरातत्व और संग्रहालय विभाग द्वारा संरक्षित 4 किले:
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सालहेर किला
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राजगढ़
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खंडेरी किला
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प्रतापगढ़
1. सालहेर किला (Salher Fort)
यह सह्याद्री की पहाड़ियों में सबसे ऊंचा किला है। इसकी चट्टानों को काटकर बनाई गई संरचना, ऊंची ढलानों और प्राकृतिक सुरक्षा से जुड़ी खासियतें इसे अनोखा बनाती हैं। यह किला साल्हेर की ऐतिहासिक लड़ाई से भी जुड़ा है, इसलिए इसे संरक्षित करना और इसकी कहानी को लोगों तक सही तरीके से पहुँचाना ज़रूरी है।
2. शिवनेरी किला (Shivneri Fort)
शिवनेरी किले में प्रथम सदी ईस्वी के बौद्ध गुफाएं हैं और यह पश्चिमी घाट (देश क्षेत्र) से कल्याण-ठाणे होते हुए समुद्र तट तक जाने वाले प्राचीन व्यापार मार्ग पर स्थित है। इसके मजबूत दरवाज़े और प्रवेश द्वार बाद के कई किलों के लिए प्रेरणा बने। यह किला ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत मूल्यवान है और इसे संरक्षित रखना ज़रूरी है।
3. लोहगढ़ किला (Lohagad Fort)
यह किला बोर घाट के ज़रिए उत्तरी कोंकण और पनवेल क्षेत्र पर नियंत्रण में बहुत अहम था। छत्रपति शिवाजी महाराज के समय इस किले की योजना महत्वपूर्ण थी और पेशवाओं के समय में बने इसके दरवाजे भी खास शैली में हैं। इन सभी पहलुओं को संरक्षित रखना आवश्यक है।
4. खंडेरी किला (Khanderi Fort)
यह एक द्वीपीय किला है जो बॉम्बे और चौल बंदरगाहों के बीच नौसैनिक केंद्र के रूप में अहम था। इसकी विशेष भौगोलिक स्थिति, शिवाजी महाराज के समय हुई पुनर्निर्माण गतिविधियाँ, और इससे जुड़ी लड़ाइयों को लोगों तक सही तरीके से प्रस्तुत करना ज़रूरी है।
5. रायगड किला (Raigad Fort)
यह किला महाराष्ट्र के इतिहास और लोककथाओं से गहराई से जुड़ा है। यह सिसोदिया वंश की दूसरी राजधानी भी था और रायगढ़ युद्ध का केंद्र रहा। यहां कई अलग-अलग वास्तुशिल्पिक अवशेष हैं, जिन्हें उनके ऐतिहासिक महत्व के अनुसार संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि इस किले की भव्यता और अनूठापन सही रूप में सामने आ सके।
6. राजगढ़ किला (Rajgad Fort)
यह किला जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसकी आकृति और किले की योजना उसी के अनुसार तैयार की गई है। संजिवनी माची की तीन परतों वाली रक्षा व्यवस्था खास और अनोखी है। इन सभी पहलुओं को उसी मूल रूप में संरक्षित रखना ज़रूरी है।
7. प्रतापगढ़ किला (Pratapgad Fort)
यह जंगलों से घिरा हुआ किला है और यह प्रतापगढ़ की लड़ाई तथा अफज़ल खान वध जैसे ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा है, जो मराठा साम्राज्य की स्थापना में निर्णायक साबित हुईं। इसकी रक्षा व्यवस्था और माची (किले की नीची सतहों) की रचना मराठा स्थापत्य की शुरुआती मिसाल है।
8. सुवर्णदुर्ग किला (Suvarndurg Fort)
यह किला एक निचली द्वीपीय भूमि पर बना हुआ है और छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा कब्जा कर इसे मजबूत किया गया था। यह मराठा नौसेना के शुरुआती केंद्रों में से एक बना। इसके सागर की ओर निकलने वाले दरवाजे, किले की दीवारें, और अन्य संरचनाएं विशेष हैं जिन्हें संरक्षित करने की ज़रूरत है।
9. पन्हाला किला (Panhala Fort)
यह किला एक महत्वपूर्ण पर्वतीय मार्ग और व्यापार रास्तों के पास स्थित है, जिससे बीजापुर तक नजर रखी जा सकती थी। यह कई राजवंशों द्वारा समय-समय पर विकसित किया गया, जिससे इसकी वास्तुशैली में विविधता है। इसके विशाल अनाज भंडार और पत्थरों से तराशी गई बावड़ियाँ संरक्षित करने योग्य हैं। यह किला पावनखिंड की लड़ाई से भी जुड़ा है।
10. विजयदुर्ग किला (Vijaydurg Fort)
यह किला एक प्रमुख नौसैनिक ऑपरेशन केंद्र था और तीन स्तरीय सुरक्षा प्रणाली के कारण यह भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे मजबूत तटीय किलों में गिना जाता है। यह एक प्रायद्वीप पर स्थित है, जिसके तीन तरफ पानी है। इसकी प्राकृतिक रक्षा प्रणाली और इससे जुड़ी ऐतिहासिक लड़ाइयों को संरक्षित और सही तरीके से प्रस्तुत करना आवश्यक है।
11. सिंधुदुर्ग किला (Sindhudurg Fort)
यह सबसे मजबूत और अब तक संरक्षित तटीय किलों में से एक है। यह मराठा नौसेना के विस्तार में बेहद अहम रहा। इसकी फैली हुई प्राचीर और रक्षा दीवारों को संरक्षित करना और इसके महत्व को लोगों तक समझाना ज़रूरी है।
12. जिंजी किला (Gingee Fort)
यह किला विजयनगर नायक, बीजापुर सुल्तान, मुग़ल, मराठा, फ्रेंच और अंग्रेज़ शासकों के अधीन रहा है। इसका मराठा कालीन रक्षा ढांचा बहुत अच्छी तरह से दर्ज है और यह एक बेहतरीन सुरक्षा प्रणाली का उदाहरण है। इसकी सभी परतों को संरक्षित करना और इसके विभिन्न रक्षा तत्वों को समझाकर प्रस्तुत करना जरूरी है।
इन किलों की विशेषताएं क्या हैं?
इन किलों की बनावट अलग-अलग प्रकार की है, जैसे:
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पहाड़ी किले: शिवनेरी, रायगढ़, सालहेर, लोहगढ़, राजगढ़ और जिंजी किला
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पहाड़ी-वन्य किला: प्रतापगढ़
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पहाड़ी-पठारी किला: पन्हाला
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तटीय किला: विजयदुर्ग
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द्वीपीय किले: खंडेरी, सुवर्णदुर्ग, सिंधुदुर्ग
इस तरह, हर किला उस इलाके की भौगोलिक स्थिति के अनुसार डिज़ाइन किया गया था, कहीं समुद्र के बीचों-बीच, तो कहीं ऊंची पहाड़ियों पर। यह दिखाता है कि मराठों की सैन्य रणनीति कितनी मजबूत और विस्तृत थी।
कितने बड़े हैं ये किले?
इस सूची के अनुसार, महाराष्ट्र के रायगढ़ ज़िले में स्थित रायगढ़ किला सबसे बड़ा है, जिसका नामित क्षेत्रफल 397.4 हेक्टेयर है और उसका बफ़र ज़ोन क्षेत्र 52,168.9 हेक्टेयर तक फैला हुआ है।, वहीं, सबसे छोटा किला है रत्नागिरी जिले में स्थित सुवर्णदुर्ग है, जिसका नामित क्षेत्रफल सिर्फ 6.75 हेक्टेयर है और बफ़र ज़ोन 376.9 हेक्टेयर है।
मराठा सैन्य विचारधारा की शुरुआत कैसे हुई?
मराठा साम्राज्य की नींव छत्रपति शिवाजी महाराज ने रखी थी। उन्होंने 1670 ई. के आसपास एक संगठित सैन्य नीति और किला प्रणाली की शुरुआत की। शिवाजी का मानना था कि अगर किलों को रणनीतिक ढंग से बनाया जाए तो वे दुश्मनों से लड़ने में बड़ी मददगार हो सकते हैं। उनके बाद यह व्यवस्था पेशवाओं के शासन (1818 ई.) तक चलती रही और मराठों की शक्ति का आधार बनी रही।
UNESCO विश्व धरोहर सूची में कैसे शामिल होता है कोई स्थल
UNESCO की विश्व धरोहर सूची में उन स्थलों को शामिल किया जाता है जो पूरी मानवता और प्रकृति के लिए बेहद खास और अद्वितीय महत्व रखते हैं। ये स्थल या तो सांस्कृतिक धरोहर होते हैं या प्राकृतिक सुंदरता और महत्व के स्थान होते हैं।
चयन के लिए मानदंड क्या होते हैं?
2004 तक इस सूची में किसी स्थल को शामिल करने के लिए छह सांस्कृतिक और चार प्राकृतिक मानदंड होते थे। लेकिन 2005 में UNESCO ने बदलाव करते हुए इन सभी को मिलाकर अब एक ही सूची बनाई है, जिसमें कुल 10 मानदंड होते हैं। इनमें से पहले छह (i से vi तक) सांस्कृतिक मानदंड होते हैं, और अगले चार (vii से x तक) प्राकृतिक। किसी भी स्थल को इस सूची में आने के लिए कम से कम एक मानदंड को पूरा करना अनिवार्य होता है। साथ ही, यह स्थल “असाधारण वैश्विक महत्व” (Outstanding Universal Value) का होना चाहिए।
मराठा सैन्य परिदृश्य किस श्रेणी में शामिल हुआ है?
भारत का ‘Maratha Military Landscapes’ यानी मराठा सैन्य परिदृश्य, सांस्कृतिक श्रेणी में नामांकित हुआ है। इसे तीन सांस्कृतिक मानदंडों के तहत प्रस्तावित किया गया है- (iii), (iv) और (vi)। यानी यह स्थल एक अनोखी सांस्कृतिक परंपरा या सभ्यता को दर्शाता है, इसमें विशिष्ट वास्तुशिल्पीय या तकनीकी विशेषताएँ हैं, और यह किसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक परंपरा या घटना से जुड़ा हुआ है।
नामांकन से पहले की प्रक्रिया: टेंटेटिव लिस्ट
कोई भी देश UNESCO को किसी स्थल का नामांकन तभी भेज सकता है जब वह स्थल उसकी टेंटेटिव लिस्ट में पहले से मौजूद हो। टेंटेटिव लिस्ट एक तरह की प्रारंभिक सूची होती है, जिसमें संभावित विश्व धरोहर स्थलों को शामिल किया जाता है। किसी स्थल को टेंटेटिव लिस्ट में कम से कम एक वर्ष तक होना अनिवार्य है, तभी उसका औपचारिक नामांकन किया जा सकता है।
अंतिम निर्णय कौन लेता है?
जब कोई देश किसी स्थल को नामांकित करता है, तो UNESCO की वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी उस प्रस्ताव की समीक्षा करती है। यही कमेटी तय करती है कि वह स्थल विश्व धरोहर सूची में शामिल होगा या नहीं। यह कमेटी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘World Heritage Programme’ के तहत कार्य करती है और नामांकनों की वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जांच करती है।
UNESCO विश्व धरोहर बनने का क्या मतलब है?
UNESCO द्वारा किसी स्मारक या जगह को विश्व धरोहर (World Heritage) का दर्जा दिया जाना, उस स्थान को वैश्विक महत्व और संरक्षण की आवश्यकता के रूप में मान्यता देना है। इसका मतलब यह भी है कि इन किलों की देखरेख अब सिर्फ भारत की नहीं बल्कि पूरे विश्व की जिम्मेदारी है, और इनके संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी मिल सकता है।
मराठा सैन्य परिदृश्य को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया जाना सिर्फ महाराष्ट्र या मराठा इतिहास की बात नहीं, यह भारत की सैन्य, स्थापत्य और सांस्कृतिक विरासत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने का प्रमाण है। छत्रपति शिवाजी महाराज की सोच, मराठा इंजीनियरिंग कौशल, और भारतीय भौगोलिक विशेषताओं को समेटे ये किले आज भी हमारे अतीत की गौरवगाथा सुनाते हैं।