इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश और दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में आंतरिक जांच रिपोर्ट को खारिज करने की मांग की है, जिसमें कथित तौर पर उन्हें मार्च 2025 में उनके आधिकारिक आवास से बरामद जली हुई नकदी से जोड़ा गया है। इस रिपोर्ट में उनकी संलिप्तता के ‘मजबूत अनुमानित साक्ष्य’ का हवाला दिया गया था और इसी आधार पर संसद से उनके खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू करने की सिफारिश की गई थी।
जिस्टस वर्मा ने जांच प्रक्रिया को बताया दोषपूर्ण
गुरुवार को दायर एक रिट याचिका में, न्यायमूर्ति वर्मा ने रिपोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा 8 मई को दी गई सिफारिश, दोनों को चुनौती दी। उन्होंने जांच प्रक्रिया को ‘मौलिक रूप से दोषपूर्ण’ करार दिया और तर्क दिया कि यह उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है और उन्हें निष्पक्ष और पूर्ण सुनवाई से वंचित करती है।
आग बुझाने के दौरान मिले थे नोट
दरअसल यह विवाद 14 मार्च को तब शुरू हुआ, जब दिल्ली स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास के बाहरी हिस्से में आग लग गई। घटना की सूचना पर पहुंचे अग्निशामकों को कथित तौर पर बोरियों में भरे जले हुए नोट मिले। दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने इस मुद्दे को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उठाया, जिसके बाद 22 मार्च को तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया गया।
जांच समिति ने की महाभियोग की सिफारिश
न्यायमूर्ति शील नागू, न्यायमूर्ति जीएस संधावालिया और न्यायमूर्ति अनु शिवरामन की सदस्यता वाली इस समिति ने 3 मई को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति ने यह स्वीकार करते हुए कि न्यायमूर्ति वर्मा का धन से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, नकदी पर उनके ‘गुप्त या सक्रिय नियंत्रण’ के ‘मजबूत अनुमानात्मक साक्ष्य’ का उल्लेख किया। समिति ने निष्कर्ष निकाला कि उनका आचरण न्यायिक नैतिकता का गंभीर उल्लंघन था और उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘उनके स्टोररूम में जली हुई नकदी की मौजूदगी स्थापित हो गई।’ न्यायमूर्ति वर्मा पर उचित स्पष्टीकरण देकर धनराशि का हिसाब देने का दबाव बनने लगा, जो उन्होंने सीधे इनकार कर दिया। उन्होंने इसे षड्यंत्र भी करार दिया था।
‘मुझे नहीं दिया गया बचाव का समय’
न्यायमूर्ति वर्मा ने निष्कर्षों और प्रक्रिया का कड़ा विरोध किया है। उनकी याचिका में आरोप लगाया गया है कि पैनल ने पहले से तय किए गए तर्क पर काम किया और नकदी के स्वामित्व और प्रामाणिकता को स्थापित करने की आवश्यकता सहित महत्वपूर्ण तथ्यों की अनदेखी की। उनका दावा है कि उन्हें गवाहों से जिरह करने या पूर्ण बचाव प्रस्तुत करने का अवसर नहीं दिया गया, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ।उन्होंने अपनी याचिका में कहा, ‘जांच ने सबूत के दबाव को उलट दिया।’ ‘समिति द्वारा तथ्यों को स्थापित करने के बजाय, मुझसे आरोपों को गलत साबित करने की अपेक्षा की गई थी।’
इस्तीफा देने से किया था इनकार
इधर, पैनल की सिफारिश के बाद, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा को स्वेच्छा से पद छोड़ने की सलाह दी। 6 मई को लिखे एक पत्र में, न्यायमूर्ति वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसा करना उस प्रक्रिया में दोष स्वीकार करने के समान होगा, जिसे उन्होंने ‘परिणाम-आधारित और प्रक्रियात्मक रूप से अनुचित’ बताया था। 8 मई को, सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा के जवाब को स्वीकार कर लिया, लेकिन समिति के निष्कर्ष पर कायम रहा। उन्हें न्यायिक जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया।
मानसून सत्र में महाभियोग
21 जुलाई से शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र के साथ, केंद्र सरकार औपचारिक महाभियोग की कार्रवाई शुरू करने की तैयारी कर रही है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पुष्टि की है कि विपक्षी दलों से समर्थन के लिए संपर्क किया गया है, जबकि कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा प्रस्ताव पेश किए जाने की उम्मीद है।
उपराष्ट्रपति ने वैधता पर सवाल उठाए
संवैधानिक बहस को और बढ़ाते हुए, उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने मई में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में आंतरिक जांच की कानूनी स्थिति पर सवाल उठाया। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे आरोपों के लिए न्यायिक जांच नहीं, बल्कि आपराधिक जांच अधिक उपयुक्त होगी।