भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) का प्रोजेक्ट ‘विष्णु’ अब अंतिम चरण में है। यह दुनिया की सबसे घातक मिसाइलों से एक होने वाला है। यह मिसाइल पलक झपकते ही तीन किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है। खास बात यह कि इसे कोई भी रडार या डिफेंस सिस्टम रोक नहीं पाएगा। इसे एशिया में सबसे बड़ा गेमचेंजर माना जा रहा है। यह है । दरअसल, DRDO के तहत भारत के इस हाइपरसोनिक मिसाइल विकास कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है। अब जल्द ही इस एडवांस्ड मिसाइल का टेस्ट करने की भी तैयारी की जा रही है। आइये हम जानते हैं कि यह प्रोजेक्ट कितना घातक होगा, हाइपरसोनिक तकनीक क्या है और यह प्रोजेक्ट कितना बड़ा गेमचेंजर होगा?
पूरी तरह भारत में बनी है मिसाइल
डिफेंस एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल(रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, DRDO के सीक्रेट ‘प्रोजेक्ट विष्णु’ के तहत बनाए जा रहे इस मिसाइल का नाम-एक्सटेंडेड ट्रेजेक्टरी लॉन्ग ड्यूरेशन हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल (ET-LDHCM) है। यह पूरी तरह से भारत में ही बनी है। इसे एशिया में शक्ति का संतुलन बदलने वाली मिसाइल माना जा रहा है। यह ET-LDHCM भारत को दुश्मन के इलाके में चाहे वह पाकिस्तान हो या चीन मिनटों में हमला करने की क्षमता देगा। एक बार जब यह शुरू हो जाएगी तो यह बहुत ही सटीक तरीके से हमला कर पाएगी।
जानें क्या है हाइपरसोनिक तकनीक
हाइपरसोनिक तकनीकका मतलब है ऐसी तकनीक जो रॉकेट और मिसाइलों को बहुत तेज गति से उड़ने में मदद करती है। इस गति को सुपरसोनिक ऑन स्टेरॉयड भी कहा जाता है। यह बहुत ही ज्यादा तेज होती है। हाइपरसोनिक गति सुपरसोनिक गति से 5-6 गुना ज्यादा होती है। यानी लगभग Mach 6 के बराबर। इतनी तेज गति से चलने वाले यान हवा में मौजूद कणों के अणुओं को भी तोड़ सकते हैं।
11000 किमी प्रति घंटा होगी स्पीड
डिफेंस एनालिस्ट जेएस सोढ़ी के अनुसार प्रोजेक्ट विष्णु की स्पीड बहुत तेज है। यह Mach 8 की गति से चलती है, जो लगभग 11,000 किलोमीटर प्रति घंटा के बराबर है। यह ध्वनि की गति से आठ गुना ज्यादा है। इसका मतलब है कि यह मिसाइल एक सेकंड में तीन किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है। इतनी तेज गति के कारण, इसे मौजूदा रडार और हवाई रक्षा प्रणालियों द्वारा रोकना लगभग असंभव है।
परमाणु हथियारों से लैस होकर ज्यादा घातक
सोढ़ी के अनुसार, ET-LDHCM 1,500 किलोमीटर से अधिक की दूरी तक मार कर सकती है। इसमें 1,000-2,000 किलोग्राम के परमाणु या सामान्य हथियार ले जाने की क्षमता है। इससे यह दुश्मन के ठिकानों को पूरी तरह से नष्ट कर सकती है। इसीलिए इसकी चर्चा मात्र से ही दुश्मन सिहर उठता है।
खास इंजन बनाता है ज्यादा खतरनाक
जेएस सोढ़ी के अनुसार, इस मिसाइल में एक खास इंजन लगा है, जिसे स्क्रैमजेट इंजन कहते हैं। यह इंजन हवा से ऑक्सीजन लेकर ईंधन को जलाता है। इससे यह मिसाइल लंबे समय तक बहुत तेज गति से उड़ सकती है। यही बात इसे खतरनाक बनाती है। DRDO ने इस इंजन का जमीन पर 1,000 सेकंड तक सफल परीक्षण किया है। इससे पता चलता है कि भारत जल्द ही इस नई तकनीक को इस्तेमाल करने के लिए तैयार है।
क्या है Scramjet तकनीक
किसी भी रॉकेट के इंजन को उड़ने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। यह ऑक्सीजन इंजन के अंदर ही मौजूद होती है। लेकिन Scramjet इंजन हवा से ऑक्सीजन लेता है। सुपरसोनिक गति पाने के लिए हवा से ऑक्सीजन लेना जरूरी है। इसलिए Scramjet तकनीक का इस्तेमाल करना जरूरी था। सोवियत संघ ने सबसे पहले इस तकनीक का आविष्कार किया था। उसके बाद USA, चीन और भारत ने भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया। इस तकनीक का इस्तेमाल रॉकेट और मिसाइलों में किया जा सकता है।
चुपके से वार, बदल सकती है रास्ता
यह मिसाइल चुपके से हमला करने, शक्तिशाली होने और कई तरह से इस्तेमाल करने के लिए बनाई गई है। बैलिस्टिक मिसाइलें एक तय रास्ते पर चलती हैं, लेकिन ET-LDHCM कम ऊंचाई पर उड़ती है और उड़ान के दौरान अपना रास्ता बदल सकती है। इसे ऐसे पदार्थों से बनाया गया है जो 2,000 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सह सकते हैं।
दुश्मन के लिए है बड़ा काल
जानकारी हो कि इस मिसाइल पर एक खास तरह की परत चढ़ाई गई है, जो इसे खारे पानी और तेज धूप जैसे खराब वातावरण में भी काम करने में मदद करती है। ET-LDHCM को जमीन, हवा या समुद्र से भी लॉन्च किया जा सकता है। इससे भारत को दुश्मनों पर हमला करने के लिए बहुत अधिक विकल्प मिल जाते हैं। यह मिसाइल दुश्मन के रडार स्टेशनों, नौसैनिक जहाजों या कमांड सेंटरों को निशाना बना सकती है। इसकी सटीकता, दूरी और बचने की क्षमता इसे दुश्मन के लिए सबसे बड़ा काल बना देती है।
अमेरिका, रूस, चीन के क्लब में भारत भी
सुपरसानिक ET-LDHCM की वजह से भारत उन देशों के खास क्लब में शामिल हो गया है, जिनके पास हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक है। इस क्लब में अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश शामिल हैं। लेकिन भारत की उपलब्धि इसलिए खास है क्योंकि यह मिसाइल पूरी तरह से भारत में ही बनी है। इसे हैदराबाद में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल कॉम्प्लेक्स में भारतीय रक्षा कंपनियों के साथ मिलकर बनाया गया है। यह एक मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट है।