बांग्लादेश में कट्टरपंथ इस हद तक हावी हो चुका है कि अब वहां की करेंसी तक को मज़हबी चश्मे से देखा जा रहा है। 1 जून को जारी हुआ नया 20 टके का नोट, जिस पर देश की एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर की तस्वीर छपी है और उसे लेने से अब मुस्लिम दुकानदार, रिक्शा चालक और व्यापारी मना कर रहे हैं। और इसका कारण है इस पर छपी वो सांस्कृतिक धरोहर। वो धरोहर दरअसल बांग्लादेश का कांताज्यू मंदिर है। कट्टरपंथियों का मानना है कि नोट पर मंदिर की फोटो आ गई है तो इसे अपने पास रखना भी गुनाह है। यह हकीकत है उस बांग्लादेश की जो कभी को धर्मनिरपेक्ष कहता था, जहां सभी धर्मों के सम्मान की बात होती थी लेकिन अब अपनी सांस्कृतिक धरोहर पर भी कट्टरपंथियों को शर्म आ रही है।
मंदिर की तस्वीर बनी ‘गुनाह’?
दिनाजपुर जिले में स्थित कांताज्यू मंदिर, बांग्लादेश की स्थापत्य कला और विरासत का प्रतीक है। लेकिन जैसे ही यह मंदिर नए नोट पर छपा, वैसे ही एक तबके का ‘ईमान’ आहत होने लगा। सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो मौजूद हैं, जहां लोग कहते नजर आ रहे हैं कि “हम मंदिर वाला नोट नहीं लेंगे, यह इस्लाम के खिलाफ है।” सवाल ये है कि अगर सरकारी मुद्रा को धार्मिक कारणों से ठुकराया जा सकता है, तो देश की कानून व्यवस्था का क्या होगा? जानकारों का मानना है कि यह विरोध सिर्फ नोट का नहीं, एक गहरी साजिश का हिस्सा है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI और उससे जुड़े आतंकी संगठनों द्वारा प्रायोजित यह मानसिकता अब बांग्लादेश को अफगानिस्तान और सीरिया की राह पर धकेल रही है। लोगों को उकसाया जा रहा है कि मंदिर की तस्वीर वाला नोट ‘अपवित्र’ है और इसे हाथ लगाना भी गुनाह है।
बांग्लादेश के मंदिर पर हैं मजहबी कट्टरता के निशान
1947 के बंटवारे के बाद से ही बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में हिंदू धार्मिक स्थलों के साथ व्यवस्थित उपेक्षा और हमलों की एक लंबी श्रृंखला चली आ रही है। हालांकि 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद उम्मीद थी कि नए बांग्लादेश में र्मनिरपेक्षता का सूरज उगेगा लेकिन कांताज्यू मंदिर जैसे तीर्थस्थल फिर भी असुरक्षित ही रहे। दिसंबर 2015 को रश्मेला उत्सव के दौरान, मंदिर परिसर में चल रहे ‘जात्रा’ नाटक के समीप तीन देसी बम फटे, जिसमें कम से कम 10 श्रद्धालु घायल हो गए। रिपोर्ट्स में न्यू जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) जैसे आतंकी संगठन का नाम सामने आया लेकिन कभी किसी ने इसकी ज़िम्मेदारी नहीं ली। मार्च 2024 में, कांताज्यू मंदिर से जुड़ी ज़मीन पर एक मस्जिद के निर्माण की शुरुआत की गई। इसे दिनाजपुर-1 से सांसद मोहम्मद जकारिया ज़ाका ने शुरू किया था। ये वहां पहले से ही प्रताड़ित हिंदू समुदाय के ज़ख्मों पर नमक रगड़ने जैसी लगी थी।
भारत से बढ़ती सांस्कृतिक निकटता को चोट पहुंचाने की साजिश?
विश्लेषकों का मानना है कि मंदिर को नोट पर छापना, बांग्लादेश सरकार की भारत से सांस्कृतिक और ऐतिहासिक साझेदारी को दर्शाने की कोशिश थी। लेकिन कट्टरपंथियों ने इसे हिंदू-मुस्लिम के रंग में रंग डाला। क्या यही वजह है कि सरकार अब चुप है? कहीं यह चुप्पी डर की निशानी तो नहीं? ध्यान रहे – यह विरोध किसी मस्जिद की जगह मंदिर बना देने का नहीं था, न ही किसी मस्जिद को गिराकर मंदिर बनाने का सवाल था। यह सिर्फ एक नोट पर सांस्कृतिक विरासत की तस्वीर छापने की बात थी, लेकिन बांग्लादेश के कट्टरपंथियों को इतना भी बर्दाश्त नहीं हुआ। इससे पहले भी बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडालों पर हमले, हिंदू घरों को जलाया जाना, और हजारों साल पुरानी मूर्तियों को तोड़े जाने जैसी घटनाएं आम हो चुकी हैं। अब प्रश्न ये है कि क्या यह देश अल्पसंख्यकों के लिए रहने लायक है?
भारत को समझने होंगे ये संकेत
भारत ने हमेशा ही बांग्लादेश को भाईचारे और सहयोग की भावना से देखा है। लेकिन जब मंदिर की तस्वीर मात्र से पूरा राष्ट्र बौखला जाए, तो यह भारत के लिए कूटनीतिक और सांस्कृतिक अलार्म होना चाहिए। यह साफ है कि बांग्लादेश का इस्लामी कट्टरपंथ अब सिर्फ वहां के हिंदुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक प्रतीकों के खिलाफ जिहाद का रूप ले चुका है। आज 20 टका के नोट को ठुकराया जा रहा है, कल शायद मंदिरों को ही नक्शे से मिटाने की साजिश हो। यह सिर्फ नोट का विवाद नहीं है बल्कि यह एक मानसिकता है जो ‘हिंदू विरासत मिटाओ’ के एजेंडे पर काम कर रही है। और इस मानसिकता के खिलाफ सच को बोलना अब जरूरी है कि तेज़, साफ़ और बिना डरे।