लोकसभा के मानसून सत्र के दौरान जमीयत उलेमा-ए-हिंद (JUH) के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने दिल्ली के शांग्री-ला होटल में एक खास डिनर आयोजित किया। इस डिनर में कई विपक्षी दलों के सांसद मौजूद थे, जैसे कि इमरान प्रतापगढ़ी, इमरान मसूद, इक़रा हसन, ज़िया उर रहमान बर्क, जावेद खान, अग़ा रुहुल्लाह मेहंदी और चंद्रशेखर आज़ाद। हालांकि यह एक आम राजनीतिक बैठक लग सकती है, लेकिन इसके समय, स्थान और दिए गए संदेश ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस कार्यक्रम में मुस्लिम समुदाय की पांच मुख्य शिकायतों वाला एक बुकलेट भी बांटा गया, जिससे यह साफ़ होता है कि यह सिर्फ एक बैठक नहीं बल्कि एक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकती है।
क्या बन रहा है मुस्लिम राजनीतिक मोर्चा?
मौलाना मदनी ने डिनर के दौरान कहा, “यह वक्त है मुस्लिम समुदाय की आवाज़ को एकजुट और मजबूत करने का।” इस बयान ने राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज कर दी है कि क्या यह बैठक आगामी राज्य चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले मुस्लिम राजनीतिक एकता की तैयारी है। JUH की लगातार राजनीतिक सक्रियता, जैसे कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और ट्रिपल तलाक के खिलाफ विरोध, इनके असली मकसद पर सवाल उठाती है। विपक्षी दलों के मुस्लिम-केंद्रित सांसदों की मौजूदगी भी इस संदिग्ध रणनीति को पुष्ट करती है।
JUH का आतंकवादी मामलों में विवादित इतिहास
इस बैठक की गंभीरता को बढ़ाता है JUH का आतंकवाद से जुड़े मामलों में कानूनी सहायता का इतिहास। 2007 से अब तक JUH ने लगभग 700 आतंकवादी मामलों में आरोपितों का बचाव किया है। इनमें से 192 आरोपी बरी हुए, लेकिन ज़्यादातर केसों में आरोप साबित नहीं हो पाए या कानूनी प्रक्रियाओं में कमी आई।
JUH ने 7/11 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट, 26/11 मुंबई हमला, और 2006 के मालेगांव ब्लास्ट जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों में भी आरोपितों की मदद की है। इस इतिहास के कारण JUH के “इस्लामोफोबिया” के खिलाफ कानून बनाने की मांग की साख पर भी सवाल उठते हैं।
राष्ट्रीय हितों के खिलाफ JUH की भूमिका
JUH ने पहले भी कई राष्ट्रीय नीतियों का विरोध किया है। यह संगठन CAA विरोधी प्रदर्शन में मुख्य भूमिका निभा चुका है, जो मानवाधिकार कानून को भेदभावपूर्ण बताता है। NPR और ट्रिपल तलाक के खिलाफ भी यह सक्रिय रहा, जबकि ट्रिपल तलाक बंद करने से मुस्लिम महिलाओं को आज़ादी मिली है।
JUH ने रोहिंग्या शरणार्थियों के भारत में रहना भी समर्थित किया है और शिक्षा में सुधारों को “सांप्रदायिक” बताकर निंदा की है। ये सभी कदम सरकार की विकास और सुरक्षा योजनाओं के खिलाफ हैं, जो विपक्ष के राजनीतिक एजेंडे से मेल खाते हैं।
क्या यह राजनीतिक बहाना है?
लोकतंत्र में समुदायों की समस्याओं को समझना ज़रूरी है, लेकिन मौलाना मदनी का यह डिनर कई सवाल छोड़ जाता है। केवल विपक्षी सांसदों को बुलाना, संसद सत्र के दौरान “इस्लामोफोबिया” की राजनीति करना और एक ऐसे संगठन द्वारा यह सब करना जो आतंकवादी मामलों में बचाव करता रहा है, चिंताजनक है। यह सब एक राजनीतिक रणनीति लगती है जो धार्मिक पहचान को लेकर मुस्लिम एकता का निर्माण कर रही है। ऐसा कदम भारत के विकास, सुरक्षा और एकता के रास्ते में बाधा है, जो केवल सामाजिक तनाव और राजनीति में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देता है।
इस प्रकार, यह भव्य रात्रिभोज महज एक सामाजिक मिलन नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है, जिसका मकसद मुस्लिम समुदाय को एकजुट कर विपक्षी दलों की राजनीति को मजबूत करना है।