केरल की रहने वाली भारतीय नागरिक निमिषा प्रिया, जो इस समय यमन की जेल में बंद हैं, को 16 जुलाई को फांसी दी जानी है। उन पर यमनी नागरिक तलाल अब्दो मेहदी की हत्या का आरोप है, जिसके लिए उन्हें मौत की सजा सुनाई गई है। भारत सरकार ने उन्हें इस सजा से बचाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन अब तक सभी कोशिशें नाकाम रही हैं। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भारत सरकार ने साफ़ कहा है कि निमिषा को फांसी से बचाने का अब केवल एक ही रास्ता बचा है- ‘ब्लड मनी’।
ब्लड मनी क्या है और इसका क्या महत्व है?
इस्लामी कानून के तहत, यदि किसी हत्या के आरोपी को मृतक के परिवार द्वारा माफ़ कर दिया जाए, आम तौर पर एक तय मुआवज़ा (ब्लड मनी) लेकर तो आरोपी की सजा को माफ़ किया जा सकता है। इस राशि को ‘ब्लड मनी’ कहा जाता है। इसकी कोई तय सीमा नहीं होती, यह पूरी तरह से मृतक के परिजनों की सहमति पर आधारित होती है, वे चाहें तो रकम लेकर माफ़ कर सकते हैं, या चाहें तो मना कर सकते हैं।
सरकार ने क्या प्रयास किए?
भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि तलाल अब्दो मेहदी के परिवार को 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 8.5 करोड़ रुपये) की ब्लड मनी की पेशकश की गई थी, लेकिन मृतक के परिवार ने इसे लेने से साफ़ इंकार कर दिया। इससे यह साफ़ हो गया कि निमिषा को सजा से माफ़ कराने का यह आखिरी प्रयास भी विफल रहा। अब सवाल यह उठता है कि क्या ब्लड मनी की रकम और बढ़ाकर पेश की जा सकती है? या क्या किसी और स्तर पर बातचीत से हल निकल सकता है? हालांकि, फिलहाल ऐसा कोई संकेत नहीं है कि मेहदी का परिवार अपनी राय बदलने को तैयार है।
क्या ब्लड मनी से पहले भी फांसी टली है?
हां, ब्लड मनी का इस्तेमाल पहले भी कई बार भारतीयों को फांसी से बचाने में किया जा चुका है, विशेष रूप से खाड़ी देशों में:
2006, सऊदी अरब: भारतीय नागरिक अब्दुल रहीम को हत्या के जुर्म में मौत की सजा हुई थी। मृतक के परिजनों को 34 करोड़ रुपये की ब्लड मनी दी गई थी, जिसके बाद उन्होंने माफ़ कर दिया था। हालांकि, उनकी रिहाई अब तक नहीं हुई है।
2009, UAE: एक पाकिस्तानी नागरिक की हत्या में दोषी पाए गए 17 भारतीयों को करीब 4 करोड़ रुपये की ब्लड मनी देकर माफ़ किया गया।
2017, UAE: एक हत्या के मामले में दोषी 10 भारतीयों की सजा 200,000 दिरहम की ब्लड मनी देकर माफ की गई थी।
2019, कुवैत: एक भारतीय नागरिक को हत्या के मामले में मौत की सजा मिली थी, जिसे 30 लाख रुपये की ब्लड मनी देकर आजीवन कारावास में बदल दिया गया।
निमिषा प्रिया का मामला अलग क्यों है?
निमिषा प्रिया का मामला इसलिए अधिक संवेदनशील है क्योंकि यमन इस समय भीषण राजनीतिक अस्थिरता और युद्ध जैसी स्थिति से जूझ रहा है। ऐसे में सरकार और न्याय प्रणाली की प्रक्रिया और भी जटिल हो जाती है। इसके अलावा, मृतक मेहदी का परिवार भावनात्मक रूप से इस मामले में काफी आहत है, और वे माफी देने को तैयार नहीं हैं, चाहे उन्हें कितनी भी रकम ऑफर की जाए। भारत सरकार ने कहा है कि उन्होंने राजनयिक स्तर पर, कानूनी स्तर पर और मानवीय आधार पर हरसंभव प्रयास किए। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि अब कोई कानूनी विकल्प बाकी नहीं बचा है, और अब जो भी हो सकता है, वो केवल मृतक के परिवार की सहमति से ही हो सकता है।
निष्कर्ष:
अब जबकि फांसी की तारीख 16 जुलाई तय हो चुकी है और ब्लड मनी का ऑफर ठुकराया जा चुका है, निमिषा प्रिया को बचाने की अंतिम उम्मीद भी लगभग समाप्त हो चुकी है। ऐसे में अब केवल कोई चमत्कारिक कूटनीतिक हस्तक्षेप या मृतक परिवार के मन बदलने से ही फांसी टल सकती है। यह मामला एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय न्याय, कूटनीति और मानवीयता को लेकर गंभीर सवाल खड़ा करता है।