अमेरिका ने हाल ही में एक गंभीर सैन्य मॉडल पेश किया जिसमें B-2 स्पिरिट स्टील्थ बॉम्बर द्वारा ईरान के तीन गुप्त परमाणु ठिकानों (फोर्दो, नतांज, इस्फहान) पर भारी-भरकम 14,000 kg बंकर-बस्टर बम (GBU‑57) गिराया गया। इस हमले ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कई वर्षों तक पीछे धकेल दिया और यह दिखा दिया कि भूमिगत ठिकानों को मारना अब सरल नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टि से संभव है।
भारत का बंकर-बस्टर प्रोजेक्ट: DRDO की पहल
भारत ने इस घटना से प्रेरणा लेकर DRDO (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) की अगुवाई में खुद का डोमेस्टिक बंकर-बस्टर सिस्टम विकसित करने का काम शुरू कर दिया है। यह मिसाइल प्रणाली अग्नि-5 इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल पर आधारित होगी, जिसे विशेष रूप से भूमिगत ठिकानों को नष्ट करने के लिए संशोधित किया जा रहा है।
तकनीकी विशेषताएँ
- रेंज और पेलोड संतुलन- अग्नि‑5 की रेंज को लगभग 2,500 km तक सीमित रखा जाएगा ताकि भारी वॉरहेड फिट किया जा सके।
- गहराई में प्रवेश- यह मिसाइल भूमिगत ठिकानों के अंदर 80–100 मीटर तक घुस जाएगी और उन्हें पूरी तरह ध्वस्त कर सकेगी।
- हाइपरसोनिक गति- मिशन की सफलता के लिए इसकी स्पीड लगभग 8–24 मैक (9,878–24,696 km/h) होगी।
- भारी क्षमता- यह मिसाइल 7,500–8,000 kg का पेलोड ले जाने में सक्षम होगी, जिससे कठोर संरचनाओं को भी तबाह किया जा सके।
मिसाइल पर क्यों भरोसा?
- महंगे विमानों की जगह महंगे ऑपरेशन की बचत- B‑2 स्टील्थ बॉम्बर की लागत लगभग 2 बिलियन USD (20,000 करोड़ रुपये) है, भारत की बजट क्षमता से बहुत अधिक।
- GBU‑57 बम महंगा और तकनीक की कमी- बम की कीमत भी लगभग 170 करोड़ रुपये है, लेकिन भारत के पास स्टील्थ विमान डिजाइन की क्षमता नहीं है।
- मिसाइल निर्माण में महारत- जबकि भारत को मिसाइल बनाना आता है, इसलिए बंकर-बस्टर मिसाइल रणनीति ज्यादा व्यवहारिक साबित होती है।
सामरिक प्रासंगिकता
चीन और पाकिस्तान भारत के दो परमाणु संपन्न पड़ोसी, जो अक्सर सैन्य उत्तेजनाएँ बढ़ाते हैं, उनके खिलाफ यह सिस्टम एक रणनीतिक ताकत साबित हो सकता है।
- पूर्व में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भारत ने Su‑30MKI जेट्स और ब्रह्मोस मिसाइल द्वारा पाकिस्तानी ठिकानों पर हमला किया था, लेकिन भूमिगत ठिकानों को निशाना देने के लिए विशिष्ट मिसाइल की आवश्यकता महसूस की गई।
- इसी कमी को दूर करने हेतु DRDO अग्नि‑5 पर आधारित बंकर-बस्टर मिसाइल विकसित कर रहा है।
सामरिक और तकनीकी फायदे
- किफायती रक्षा समाधान- मौजूदा सिस्टम को मॉडिफाई करके बनाया जा रहा है, जिससे लागत कम और असर ज्यादा होगा।
- स्वदेशी क्षमता और आत्मनिर्भरता- भारत अपनी रक्षा क्षमताओं पर निर्भर बन रहा है, और इससे सामरिक स्वतंत्रता बढ़ेगी।
- रणनीतिक गहराई- भूमिगत परमाणु ठिकानों को नष्ट कर सकता है, जिससे अप्रत्याशित संकटों में सामरिक बढ़त मिलेगी।
निष्कर्ष
अमेरिकी मॉडल से प्रेरित, भारत का यह बंकर-बस्टर मिसाइल प्रोजेक्ट उसे एक पूर्ण आत्मनिर्भर, सामरिक रूप में सशक्त राष्ट्र बनने की दिशा में एक कदम और आगे ले जा रहा है। इस प्रणाली से भारत सिर्फ अपनी रक्षा शक्ति को नहीं बढ़ाएगा, बल्कि खुफिया तरीके से रणनीतिक सुरक्षा को भी सुनिश्चित करेगा और साथ ही, पड़ोसी परमाणु खुफिया संरचनाओं से निपटने में सक्षम होगा।
यह लेख स्पष्ट रूप से बताता है कि कैसे तकनीकी और बजटीय दृष्टिकोण से भारत ने स्टील्थ विमानों और भारी बम की जगह मिसाइल समाधान को चुना है- रक्षा, रणनीति और आत्मनिर्भरता के स्तर को एक नई ऊँचाई प्रदान करते हुए।