भारतीय समाज में नारी शक्ति को सदा से विशेष स्थान प्राप्त रहा है। वैदिक युग से लेकर आधुनिक युग तक नारी ने समाज, संस्कृति, शिक्षा, धर्म और राजनीति सहित हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। आज के समय में जब नारी सशक्तिकरण की बात होती है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम उन संगठनों की चर्चा करें जो वर्षों से इस दिशा में सतत प्रयासरत हैं। ऐसे ही एक संगठन का नाम है ‘राष्ट्र सेविका समिति’। राष्ट्र सेविका समिति नारी को राष्ट्र निर्माण में उसकी महती भूमिका का एहसास कराने वाला और उस भूमिका को अच्छे से निभाने के लिए प्रशिक्षित करने वाला संगठन है। वास्तव में यह नारी शक्ति को ‘मातृत्व’, ‘कर्तृत्व’ और ‘नेतृत्व’ के मार्ग पर अग्रसर करने वाला एक संगठन है।
राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना और उद्देश्य
राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना वर्ष 1936 में विजयादशमी के दिन लक्ष्मीबाई केलकर जी उपाख्य मौसीजी द्वारा वर्धा में की गई थी। जब उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य देखा, तो उनके मन में यह विचार आया कि महिलाओं के लिए भी ऐसा ही एक संगठन होना चाहिए, जहाँ वे राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभा सकें। यह संगठन पूर्णतः महिलाओं द्वारा, महिलाओं के लिए और महिलाओं का है।
राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं में राष्ट्रभक्ति, चरित्र निर्माण, आत्मनिर्भरता और नेतृत्व क्षमता का भाव जागृत करने के लिए सतत प्रयासरत है। इसका विचार है कि महिला केवल घर की सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि वह राष्ट्र के निर्माण में एक सशक्त स्तंभ भी है।
मातृत्व: नारी की मूल पहचान
समिति की विचारधारा में नारी को मातृत्व के प्रतीक रूप में देखा गया है। मातृत्व का अर्थ केवल संतान को जन्म देना नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की चेतना को पोषित करना भी है। एक माँ केवल अपने परिवार की ही नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों की निर्माता होती है।
राष्ट्र सेविका समिति का विचार है कि मातृत्व की भावना से ओतप्रोत महिलाएं समाज को संस्कार दे सकती हैं, मूल्यों की स्थापना कर सकती हैं और राष्ट्रीय चरित्र निर्माण में सहयोग कर सकती हैं। इसलिए समिति के प्रशिक्षण वर्गों में नारी को भारतीय संस्कृति, धर्म, परिवार के मूल्यों और राष्ट्रीय विचारधारा से जोड़ने पर विशेष बल दिया जाता है।
कर्तृत्व: नारी का कर्मपथ
मातृत्व के साथ-साथ नारी का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है कर्तृत्व, अर्थात् उसका कार्य, उसकी कर्मशीलता। समिति के विचार अनुसार नारी केवल स्नेह और करुणा की मूर्ति नहीं, बल्कि साहस, शक्ति और सेवा का भी प्रतीक है। भारतीय इतिहास में रानी लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, अहिल्याबाई होलकर जैसी नारियों ने अपने कर्तृत्व से यह सिद्ध किया है कि नारी संकट की घड़ी में नेतृत्व कर सकती है और समाज की रक्षा कर सकती है।
राष्ट्र सेविका समिति का प्रशिक्षण इस सोच को व्यवहार में लाने का माध्यम है। समिति की सेविकाएँ विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधियों के माध्यम से अपने कर्तव्यों का पालन करती हैं।
नेतृत्व: नारी का प्रेरणादायी स्वरूप
आज के समय में नेतृत्व क्षमता का विकास अत्यंत आवश्यक है। राष्ट्र सेविका समिति का मत है कि नारी केवल अनुयायी नहीं, अपितु एक नायिका भी हो सकती है। समिति की कार्यशैली भी ऐसी है कि इसमें प्रत्येक सेविका को नेतृत्व के गुणों से युक्त किया जाता है। प्रार्थना, व्यायाम, बौद्धिक वर्ग, चर्चा, गीत और विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से सेविकाओं में आत्मविश्वास, निर्णय क्षमता, और संगठन शक्ति का विकास किया जाता है। समिति की सेविकाएँ स्कूलों, कॉलेजों, गाँवों और नगरों में कार्य करते हुए राष्ट्र को जागरूक बना रही हैं।
राष्ट्र सेविका समिति का कार्यक्षेत्र और प्रभाव
समिति का कार्य केवल शहरों तक सीमित नहीं है। यह संगठन भारत के कोने-कोने में सक्रिय है और विदेशों में भी इसकी शाखाएँ कार्य कर रही हैं। राष्ट्र सेविका समिति के कार्यक्रमों में हर आयु वर्ग की महिलाएँ भाग ले सकती हैं। इसके नियमित शाखा कार्य, शिविर, वर्ग, उत्सव, और सामाजिक सेवा के माध्यम से महिलाएँ संगठित होती हैं।
समिति के कार्य का प्रभाव दीर्घकालीन और गहरा है। इस संगठन ने लाखों महिलाओं को आत्मनिर्भर और जागरूक नागरिक बनाया है। महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में यह एक मूक लेकिन शक्तिशाली आंदोलन है। समिति के अनेक कार्यकर्ताओं ने राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दिया है, चाहे वह आपदा के समय सेवा हो या समाज सुधार की दिशा में कार्य।
मातृत्व, कर्तृत्व और नेतृत्व: संतुलन का संदेश
समिति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह नारी के तीनों रूपों अर्थात् मातृत्व, कर्तृत्व, और नेतृत्व के बीच एक संतुलन स्थापित करती है। आज के आधुनिक युग में जहाँ अक्सर ये तीनों भूमिकाएँ एक-दूसरे से टकराती दिखती हैं, वहाँ राष्ट्र सेविका समिति यह संदेश देती है कि एक नारी एक साथ माँ, कर्मयोगिनी और नेतृत्वकर्ता बन सकती है।
यह संगठन नारी को उसकी जड़ों से जोड़ते हुए पंख भी देता है। नारी को भारतीय संस्कृति की नींव पर खड़ा करते हुए आधुनिकता की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह संगठन सिखाता है कि वास्तविक नारी सशक्तिकरण केवल अधिकार मांगने से नहीं, बल्कि स्वयं को कर्तव्यनिष्ठ और नेतृत्व योग्य बनाने से होता है।
राष्ट्र सेविका समिति केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक आंदोलन है और यह आन्दोलन है नारी सशक्तिकरण का, नारी नेतृत्व का और नारी को उसकी वास्तविक पहचान दिलाने का। मातृत्व के स्नेह, कर्तृत्व की निष्ठा और नेतृत्व की शक्ति से युक्त यह संगठन आज भी लाखों महिलाओं को दिशा दे रहा है।
एक संस्कारी, सशक्त और जागरूक नारी ही एक सशक्त राष्ट्र की नींव है। राष्ट्र सेविका समिति इसी विश्वास को लेकर कार्य कर रही है और ‘नारी जागरण से राष्ट्र जागरण’ की ओर अग्रसर है। मातृत्व, कर्तृत्व और नेतृत्व के त्रिवेणी संगम से प्रेरित यह संगठन, भारतीय नारी का गौरवमयी चित्र प्रस्तुत करता है। आज जब हम नारी सशक्तिकरण की बात करते हैं तो राष्ट्र सेविका समिति का योगदान निश्चय ही उल्लेखनीय और अनुकरणीय है।