इज़रायल ने हाल ही में सीरिया की राजधानी दमिश्क पर हवाई हमले किए और इनमें सीरियाई रक्षा मंत्रालय व राष्ट्रपति भवन के आसपास के क्षेत्र को निशाना बनाया गया था। दरअसल, इन हमलों की जड़ एक धार्मिक अल्पसंख्यक समूह ड्रूज़ की एक अन्य समुदाय बेडुइन से हुई लड़ाई से जुड़ी है। सीरिया के दक्षिणी हिस्से में स्थित स्वैदा (Suwayda) प्रांत में ड्रूज़ और बेडुइन समुदायों के बीच वर्षों से भूमि विवाद और संसाधनों के बंटवारे को लेकर आपसी संघर्ष चलता रहा है।
मानवाधिकार से जुड़े मामलों पर नज़र रखने वाले UK स्थित संगठन ‘सीरियन ऑब्ज़र्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स’ के मुताबिक, सीरिया के सुवेदा इलाके में हालिया हिंसा की शुरुआत 11 जुलाई को उस वक्त हुई जब बेडुइन लड़ाकों ने दमिश्क जाने वाले रास्ते पर एक ड्रूज़ व्यापारी को अगवा कर लिया। यह घटना जल्द ही दोनों समुदायों ड्रूज़ और बेडौइन के बीच एक बड़े संघर्ष में बदल गई और हालात इतने बिगड़ गए कि सीरियाई सेना को बीच में कूदना पड़ा।
इज़रायल ने किए हवाई हमले
स्वैदा के इलाके की सीमाएं इज़रायल के कब्ज़े वाले गोलन हाइट्स के करीब हैं और इज़रायल अक्सर कहता रहा है कि वो इस इलाके में सीरियाई सेना की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं करेगा। इसलिए जब सीरियाई सेना वहां पहुंची तो इज़रायल ने हवाई हमले शुरू कर दिए। इज़रायल का कहना है कि वो असल में ड्रूज़ समुदाय की रक्षा कर रहा है। लेकिन असल में कहानी केवल ड्रूज़ समुदाय की रक्षा की नहीं है इसमें इज़रायल के अपनी हित भी जुड़े हुए हैं।
DW की रिपोर्ट के मुताबिक, ज़्यादातर ड्रूज़ लोग इज़रायल की इस ‘सुरक्षा’ की पेशकश को नकार देते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इज़राइल का ये रुख असल में दक्षिण सीरिया में सीरियाई सरकार का असर कम करने की चाल है। इज़रायल के प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि वो दक्षिण सीरिया से पूरी तरह सैन्य गतिविधियों को खत्म करना चाहते हैं। इसके अलावा, इज़रायली सैनिकों को कई बार सीरिया और इज़रायल के बीच बने बफर ज़ोन (सीमा क्षेत्र) के पार, सीरिया के अंदर तक जाते हुए भी देखा गया है, जिससे उनके इरादों पर और सवाल उठने लगे हैं।
कौन हैं ड्रूज़?
ड्रूज़ एक खास अरब धार्मिक समुदाय है और यह धर्म 11वीं सदी में मिस्र से शुरू हुआ था। इसका नाम इसके एक संस्थापक मुहम्मद अल-दराज़ी के नाम पर पड़ा जिनका 1019 या 1020 में निधन हो गया था। ड्रूज़ धर्म सख्ती से एकेश्वरवादी है और इस्लाम की एक शाखा, विशेष रूप से इस्माईली इस्लाम पर आधारित है। लेकिन ड्रूज़ धर्म में सिर्फ इस्लाम के तत्व ही नहीं बल्कि ग्नोस्टिसिज्म (एक रहस्यमयी ज्ञान की परंपरा), नियोप्लैटोनिज्म (प्राचीन यूनानी दार्शनिक विचार), यहूदी धर्म और ईरानी धर्मों के भी कुछ प्रभाव शामिल हैं।
ड्रूज़ों का ये मानना है कि 985 से 1021 के बीच मिस्र में फ़ातिमी राजघराने के छठे खलीफा रहे अल-हाकिम बि-अमर अल्लाह उनके लिए वे एक तरह से भगवान जैसे थे। वे ये उम्मीद रखते हैं कि अल-हाकिम एक दिन फिर वापस आएंगे और उनकी वापसी से एक सुनहरा युग शुरू होगा, यानी वो समय जब सब कुछ अच्छा और सही हो जाएगा। ऐसा वो दिन होगा जब दुनिया में शांति और खुशहाली फैल जाएगी।
इस धर्म को मानने वाले लोगों की आबादी लगभग दस लाख के आसपास है। ये लोग मुख्य रूप से सीरिया, लेबनान और इज़रायल में रहते हैं। ड्रूज़ धर्म इस्लाम से जुड़ा ज़रूर है लेकिन इसमें कई अलग और खास बातें हैं जो इसे बाक़ी धर्मों से अलग पहचान देती हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इस धर्म में कोई भी बाहर वाला इसमें शामिल नहीं हो सकता और जो एक बार ड्रूज़ बन गया, वह इसे छोड़ भी नहीं सकता। यानी ड्रूज़ धर्म के भीतर आने और बाहर निकलने के दरवाज़े दोनों बंद हैं। इसके अलावा, ड्रूज़ समुदाय में बाहर शादी करना मना है, मतलब वे लोग अपने धर्म के बाहर शादी नहीं करते और अगर कोई ऐसा करता है तो उसे समुदाय से अलग कर दिया जाता है।
Nejla M. Abu Izzeddin ने अपनी पुस्तक The Druzes: A New Study of Their History, Faith, and Society में लिखा है कि ड्रूज़ समाज में एक खास व्यवस्था होती है, जिसमें लोग दो मुख्य समूहों में बंटे होते हैं। पहला समूह वे होते हैं जो अपने धर्म के गहरे रहस्यों और सिद्धांतों को पूरी तरह समझते हैं, इन्हें ‘उक्काल’ कहा जाता है। ये लोग अपने धर्म के ज्ञान में निपुण होते हैं और धर्म के कई छुपे हुए पहलुओं को जानते हैं। दूसरा समूह होता है आम लोग जिन्हें ‘जुह्हाल’ कहा जाता है, जो धर्म के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते या उनके बारे में कम जानते हैं। ये लोग धार्मिक नियमों का सम्मान करते हैं लेकिन गहरे रहस्यों से अनजान रहते हैं।