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    इस्लाम से निकले ड्रूज़ समुदाय की कहानी जो करता है पुनर्जन्म में विश्वास; इन्हें बचाने के लिए इज़रायल ने किए सीरिया में हमले

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इस्लाम से निकले ड्रूज़ समुदाय की कहानी जो करता है पुनर्जन्म में विश्वास; इन्हें बचाने के लिए इज़रायल ने किए सीरिया में हमले

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
18 July 2025
in इतिहास
ड्रूज़ समुदाय (Photo - The National News)

ड्रूज़ समुदाय (Photo - The National News)

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इज़रायल ने हाल ही में सीरिया की राजधानी दमिश्क पर हवाई हमले किए और इनमें सीरियाई रक्षा मंत्रालय व राष्ट्रपति भवन के आसपास के क्षेत्र को निशाना बनाया गया था। दरअसल, इन हमलों की जड़ एक धार्मिक अल्पसंख्यक समूह ड्रूज़ की एक अन्य समुदाय बेडुइन से हुई लड़ाई से जुड़ी है। सीरिया के दक्षिणी हिस्से में स्थित स्वैदा (Suwayda) प्रांत में ड्रूज़ और बेडुइन समुदायों के बीच वर्षों से भूमि विवाद और संसाधनों के बंटवारे को लेकर आपसी संघर्ष चलता रहा है।

मानवाधिकार से जुड़े मामलों पर नज़र रखने वाले UK स्थित संगठन ‘सीरियन ऑब्ज़र्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स’ के मुताबिक, सीरिया के सुवेदा इलाके में हालिया हिंसा की शुरुआत 11 जुलाई को उस वक्त हुई जब बेडुइन लड़ाकों ने दमिश्क जाने वाले रास्ते पर एक ड्रूज़ व्यापारी को अगवा कर लिया। यह घटना जल्द ही दोनों समुदायों ड्रूज़ और बेडौइन के बीच एक बड़े संघर्ष में बदल गई और हालात इतने बिगड़ गए कि सीरियाई सेना को बीच में कूदना पड़ा।

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इज़रायल ने किए हवाई हमले

स्वैदा के इलाके की सीमाएं इज़रायल के कब्ज़े वाले गोलन हाइट्स के करीब हैं और इज़रायल अक्सर कहता रहा है कि वो इस इलाके में सीरियाई सेना की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं करेगा। इसलिए जब सीरियाई सेना वहां पहुंची तो इज़रायल ने हवाई हमले शुरू कर दिए। इज़रायल का कहना है कि वो असल में ड्रूज़ समुदाय की रक्षा कर रहा है। लेकिन असल में कहानी केवल ड्रूज़ समुदाय की रक्षा की नहीं है इसमें इज़रायल के अपनी हित भी जुड़े हुए हैं।

DW की रिपोर्ट के मुताबिक, ज़्यादातर ड्रूज़ लोग इज़रायल की इस ‘सुरक्षा’ की पेशकश को नकार देते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इज़राइल का ये रुख असल में दक्षिण सीरिया में सीरियाई सरकार का असर कम करने की चाल है। इज़रायल के प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि वो दक्षिण सीरिया से पूरी तरह सैन्य गतिविधियों को खत्म करना चाहते हैं। इसके अलावा, इज़रायली सैनिकों को कई बार सीरिया और इज़रायल के बीच बने बफर ज़ोन (सीमा क्षेत्र) के पार, सीरिया के अंदर तक जाते हुए भी देखा गया है, जिससे उनके इरादों पर और सवाल उठने लगे हैं।

कौन हैं ड्रूज़?

ड्रूज़ एक खास अरब धार्मिक समुदाय है और यह धर्म 11वीं सदी में मिस्र से शुरू हुआ था। इसका नाम इसके एक संस्थापक मुहम्मद अल-दराज़ी के नाम पर पड़ा जिनका 1019 या 1020 में निधन हो गया था। ड्रूज़ धर्म सख्ती से एकेश्वरवादी है और इस्लाम की एक शाखा, विशेष रूप से इस्माईली इस्लाम पर आधारित है। लेकिन ड्रूज़ धर्म में सिर्फ इस्लाम के तत्व ही नहीं बल्कि ग्नोस्टिसिज्म (एक रहस्यमयी ज्ञान की परंपरा), नियोप्लैटोनिज्म (प्राचीन यूनानी दार्शनिक विचार), यहूदी धर्म और ईरानी धर्मों के भी कुछ प्रभाव शामिल हैं।

ड्रूज़ों का ये मानना है कि 985 से 1021 के बीच मिस्र में फ़ातिमी राजघराने के छठे खलीफा रहे अल-हाकिम बि-अमर अल्लाह उनके लिए वे एक तरह से भगवान जैसे थे। वे ये उम्मीद रखते हैं कि अल-हाकिम एक दिन फिर वापस आएंगे और उनकी वापसी से एक सुनहरा युग शुरू होगा, यानी वो समय जब सब कुछ अच्छा और सही हो जाएगा। ऐसा वो दिन होगा जब दुनिया में शांति और खुशहाली फैल जाएगी।

इस धर्म को मानने वाले लोगों की आबादी लगभग दस लाख के आसपास है। ये लोग मुख्य रूप से सीरिया, लेबनान और इज़रायल में रहते हैं। ड्रूज़ धर्म इस्लाम से जुड़ा ज़रूर है लेकिन इसमें कई अलग और खास बातें हैं जो इसे बाक़ी धर्मों से अलग पहचान देती हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इस धर्म में कोई भी बाहर वाला इसमें शामिल नहीं हो सकता और जो एक बार ड्रूज़ बन गया, वह इसे छोड़ भी नहीं सकता। यानी ड्रूज़ धर्म के भीतर आने और बाहर निकलने के दरवाज़े दोनों बंद हैं। इसके अलावा, ड्रूज़ समुदाय में बाहर शादी करना मना है, मतलब वे लोग अपने धर्म के बाहर शादी नहीं करते और अगर कोई ऐसा करता है तो उसे समुदाय से अलग कर दिया जाता है।

Nejla M. Abu Izzeddin ने अपनी पुस्तक The Druzes: A New Study of Their History, Faith, and Society में लिखा है कि ड्रूज़ समाज में एक खास व्यवस्था होती है, जिसमें लोग दो मुख्य समूहों में बंटे होते हैं। पहला समूह वे होते हैं जो अपने धर्म के गहरे रहस्यों और सिद्धांतों को पूरी तरह समझते हैं, इन्हें ‘उक्काल’ कहा जाता है। ये लोग अपने धर्म के ज्ञान में निपुण होते हैं और धर्म के कई छुपे हुए पहलुओं को जानते हैं। दूसरा समूह होता है आम लोग जिन्हें ‘जुह्हाल’ कहा जाता है, जो धर्म के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते या उनके बारे में कम जानते हैं। ये लोग धार्मिक नियमों का सम्मान करते हैं लेकिन गहरे रहस्यों से अनजान रहते हैं।

सीरिया और लेबनान की सीमा पर स्थित माउंट हरमोन में ड्रूज़ (1901) (Photo- Stereograph Cards/Prints and Photographs Division/Library of Congress, Washington, D.C.)

Izzeddin ने लिखा है कि कुछ उक्काल ब्रह्मचर्य (बिना विवाह के जीवन) का पालन करते हैं, जबकि कुछ शादीशुदा होते हैं लेकिन अपनी पत्नियों के साथ सहवास नहीं करते। वे धार्मिक ग्रंथों को पढ़ सकते हैं और उन्हें समझा सकते हैं, इसलिए उन्हें धर्म के संरक्षक माना जाता है। उक्काल ही जुहहाल यानी आम लोगों को धर्म की राह दिखाते हैं, उन्हें धार्मिक सभा में शामिल करते हैं और आध्यात्मिक शिक्षा देते हैं।

आम तौर पर ड्रूज़ धर्म के कई रहस्य बाहरी लोगों से छिपाए जाते हैं। उनका धार्मिक ज्ञान और ग्रंथ आम जनता के लिए गोपनीय होते हैं। हालांकि, इस पूरे समुदाय में कोई ऐसा नेता नहीं है जो सबको एक साथ जोड़ सके या पूरी दुनिया के ड्रूज़ों का प्रतिनिधित्व करता हो। हर देश में इनके स्थानीय नेता होते हैं लेकिन एक बड़ा संगठनात्मक नेतृत्व नहीं होता।

जहां तक उनकी बसावट का सवाल है, ड्रूज़ ज़्यादातर सीरिया में रहते हैं। खासकर स्वैदा प्रांत और दमिश्क शहर के कुछ इलाकों जैसे जारामाना और अशरफियत सहनाया में उनकी अच्छी संख्या है। ये इलाक़े इज़राइल के कब्जे वाले गोलन हाइट्स के पास हैं। इसके अलावा, ड्रूज़ लेबनान, इज़राइल और जॉर्डन में भी पाए जाते हैं। इज़रायल में करीब 1.5 लाख ड्रूज़ हैं, जिनमें से लगभग बीस प्रतिशत को इज़राइली नागरिकता मिली हुई है। इज़राइल के ड्रूज़ सेना में शामिल हो सकते हैं और कई ड्रूज़ अफसर इस सेना में ऊंचे पदों पर भी काम करते हैं। ये लोग खासतौर से उत्तर इज़राइल और गोलन हाइट्स के इलाके में रहते हैं। इज़राइल के भीतर रहने वाले ड्रूज़ कई बार सरकार के प्रति वफादारी भी दिखाते हैं।

सीरिया में क्या है ड्रूज़ की स्थिति

सीरिया में 2020 के आस-पास वहां करीब 7 लाख ड्रूज़ रहते थे। ये लोग ज़्यादातर 18वीं सदी में लेबनान से आए थे और सीरिया के स्वैदा इलाके में बसे, जिसे ड्रूज़ माउंटेन भी कहते हैं। Britannica के मुताबिक, 1925 में ड्रूज़ नेता सुल्तान अल-अत्रश ने फ्रांसीसी शासन के खिलाफ विद्रोह किया था। शुरुआत में उनकी लड़ाई सफल रही और धीरे-धीरे पूरे सीरिया में ये विद्रोह फैल गया, यहां तक कि दमिश्क तक पहुंच गया। हालांकि 1927 में फ्रांसीसी सरकार ने इसे दबा दिया। सीरियाई लोग आज भी इस विद्रोह को अपनी पहली बड़ी आजादी की लड़ाई मानते हैं।

ड्रूज़ों की राजनीतिक ताकत इसके बाद भी बनी रही। 1954 में एक और ड्रूज़ विद्रोह हुआ जिससे उस वक्त के राष्ट्रपति अदिब अल-शिशाकली की सरकार गिर गई। सुल्तान अल-अत्रश के बेटे मंसूर अल-अत्रश ने भी सीरिया की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बाअथ के गठन में हिस्सा लिया और 1965 में संसद के अध्यक्ष भी बने लेकिन अगले साल ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

सीरिया में असद के शासन के गिरने के बाद ड्रूज़ समुदाय की प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है। ड्रूज़ के कुछ नेता एक एकीकृत और बहुलतावादी सिरिया की पैरवी कर रहे हैं और उन्होंने असद के खिलाफ विद्रोही नेता अहमद अल-शरारा के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के साथ काम करने की इच्छा जताई है। वहीं कुछ अन्य ड्रूज़ नेता इस नए शासन के खिलाफ अधिक सख्त और टकराव वाला रुख अपनाए हुए हैं।

2025 की शुरुआत में ड्रूज़ और सरकार के बीच हिंसक संघर्ष हुए, जिनमें 100 से अधिक ड्रूज़ मारे गए जबकि कुल 1,700 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें अधिकांश अलावाइट अल्पसंख्यक के थे। इस तरह ड्रूज़ समुदाय की स्थिति जटिल बनी हुई है। एक और कुछ नेता नई सरकार के साथ सहयोग चाहते हैं, तो कुछ संघर्ष और अपने स्वायत्त सुरक्षा बलों के माध्यम से अपनी पहचान बनाए रखना चाहते हैं।

Tags: DamascusDruzeIsraelSyriaइजरायलड्रूज़दमिश्कसीरिया
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