रिपोर्ट के मुताबिक, यह विजय जुलूस पूरी तरह से अनधिकृत था। हालांकि, DNA एंटरटेनमेंट नेटवर्क्स ने 3 जून को पुलिस को इस आयोजन की योजना की जानकारी दी थी लेकिन 2009 के नगर आदेश के अनुसार जो औपचारिक अनुमति आवश्यक थी उसे लेने की कोई प्रक्रिया पूरी नहीं की गई। पुलिस ने स्पष्ट रूप से इस कार्यक्रम की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, इसके बावजूद RCB ने 4 जून को सोशल मीडिया पर एक खुले आमंत्रण के माध्यम से जनता को ‘फ्री एंट्री’ वाले इस विजय उत्सव में शामिल होने के लिए बुलाया जिससे भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी।
गौरतलब है कि सरकार ने अपनी रिपोर्ट में कई गंभीर चूकों की ओर ध्यान दिलाया है, जिनमें क्रिकेटर विराट कोहली की एक सार्वजनिक वीडियो अपील भी शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस द्वारा आयोजन की अनुमति न दिए जाने के बावजूद विराट कोहली द्वारा प्रशंसकों को ‘मुफ़्त प्रवेश’ वाले समारोह में शामिल होने का आमंत्रण देने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया। इसी वीडियो के चलते अनुमानित संख्या से कहीं अधिक तीन लाख से अधिक लोग समारोह में पहुंच गए, जो आयोजकों और पुलिस की तैयारियों से कहीं आगे की स्थिति थी।
इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट में यह गंभीर खुलासा किया गया है कि RCB, DNA और KSCA तीनों में से किसी ने भी आयोजन स्थल पर प्राथमिक चिकित्सा या आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था नहीं की थी। जबकि दूसरी ओर, पुलिस ने अपनी ओर से पर्याप्त एहतियात बरतते हुए बस मार्ग पर सुरक्षा तैनात की थी और चिन्नास्वामी स्टेडियम के आसपास दो एम्बुलेंस, दो मेडिकल टीम और एक फायर इंजन की व्यवस्था की थी। इसके बावजूद, आयोजन स्थल पर स्वयं आयोजकों द्वारा कोई मेडिकल सहायता उपलब्ध न कराए जाने के कारण कई घायल लोग समय रहते जरूरी इलाज नहीं पा सके। इससे स्थिति और गंभीर हो गई। यह रिपोर्ट इस तथ्य पर भी बल देती है कि इन संस्थाओं ने न केवल पुलिस की स्पष्ट मना करने की चेतावनी की अवहेलना की, बल्कि आयोजन की पूरी सुरक्षा व्यवस्था को भी नजरअंदाज कर जनता की जान को खतरे में डाला।
इस भीषण और दुर्भाग्यपूर्ण घटना में जहां 11 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, वहीं दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हुए, जिनमें कई की हालत अभी भी नाज़ुक बनी हुई है। यह हादसा सिर्फ एक आयोजन विफलता नहीं, बल्कि एक गंभीर प्रशासनिक चूक और असंवेदनशीलता का प्रतीक बन गया है। खेलप्रेमियों और आम जनता के लिए यह घटना गहरा आघात है, जिसने पूरे बेंगलुरु शहर और कर्नाटक राज्य में सुरक्षा मानकों, आयोजकों की जवाबदेही और जनसुरक्षा पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
घटनाओं की इस श्रृंखला ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि किसी सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन बिना अनुमति, उचित योजना और प्रभावी समन्वय के किया जाए तो उसका परिणाम केवल अव्यवस्था नहीं, बल्कि जानलेवा भी हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में ऐसे आयोजनों के लिए कड़े नियम-कानून, स्पष्ट जवाबदेही, और पुलिस के साथ पूर्ण समन्वय अनिवार्य बनाया जाना चाहिए, ताकि किसी और जश्न का अंत शोक में न बदल जाए।