‘क्रूर था अकबर’: बाबर, अकबर, औरंगज़ेब और शिवाजी पर क्या कहती है NCERT की नई किताब?

'Exploring Society: India and Beyond' नाम की इस पुस्तक में 13वीं से 17वीं सदी के इतिहास को कवर किया गया है,

एनसीईआरटी (NCERT) ने कक्षा 8 के लिए सामाजिक विज्ञान की नई पुस्तक में दिल्ली सल्तनत और मुगल शासनकाल को लेकर चले आ रहे पुराने ढर्रे से हटने की कोशिश करते हुए नई और अहम जानकारियां जोड़ी हैं। ‘Exploring Society: India and Beyond’ नाम की इस पुस्तक में 13वीं से 17वीं सदी के इतिहास को कवर किया गया है, जिसमें बाबर, अकबर और औरंगज़ेब जैसे शासकों की नीतियों, मंदिरों पर हमलों और धार्मिक असहिष्णुता पर खुलकर चर्चा की गई है। NCERT का कहना है कि ये तथ्य इतिहास के अंधेरे दौर को समझने के लिए जरूरी हैं और इन्हें एक डिस्क्लेमर के साथ पेश किया गया है, जिसमें साफ कहा गया है कि आज किसी को भी अतीत की घटनाओं के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।

बाबर पर क्या कहती है NCERT की नई किताब?

NCERT की इस पुस्तक में पहले मुगल बादशाह बाबर को लेकर एक दोहरी छवि सामने आती है। उसकी आत्मकथा उसे एक पढ़ा-लिखा, कला-संस्कृति में रुचि रखने वाला और विचारशील व्यक्ति दिखाती है- एक ऐसा शासक जो बौद्धिक रूप से जिज्ञासु था। लेकिन किताब इस बात को भी नहीं छुपाती कि बाबर के भीतर एक बेरहम विजेता भी था। उसने कई शहरों पर चढ़ाई कर वहाँ की पूरी आबादी को मौत के घाट उतार दिया, महिलाओं और बच्चों को बंदी बनाया और सबसे भयावह बात मारे गए लोगों की खोपड़ियों से मीनारें खड़ी करने को अपनी विजय का प्रतीक माना था। इसके उल्ट पुरानी कक्षा 7 की किताबों में बाबर की छवि इतनी कठोर नहीं थी और वहां सिर्फ यही लिखा गया था कि वह अपने वंश का सिंहासन खो बैठा था और फिर काबुल होते हुए दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया था

अकबर का जटिल रूप

नई किताब में अकबर की छवि को एक जटिल व्यक्तित्व के रूप में पेश किया गया है और उसे एक ऐसा शासक बताया गया है जिसके शासन में क्रूरता और सहिष्णुता दोनों ही साथ-साथ मौजूद थीं। किताब के मुताबिक, जब अकबर ने चित्तौड़गढ़ के राजपूत किले पर चढ़ाई की तो उसने करीब 30,000 निर्दोष नागरिकों के नरसंहार का आदेश दिया। इसके बाद जो विजय संदेश भेजा गया, उसमें लिखा था, “हमने काफिरों के कई किलों और कस्बों पर कब्ज़ा कर इस्लाम की स्थापना की है। अपनी रक्तपिपासु तलवार से हमने उनके मन से काफिरों के निशान मिटाए हैं और उन जगहों के साथ-साथ पूरे हिंदुस्तान में मंदिरों को नष्ट कर दिया है।”

हालांकि, किताब यह भी बताती है कि समय के साथ अकबर ने अन्य धर्मों के प्रति एक हद तक सहिष्णुता अपनाई। उसने कुछ संवादों और नीतियों के जरिए धार्मिक समरसता की पहल की, लेकिन उसके प्रशासन में उच्च पदों पर गैर-मुसलमानों को बहुत सीमित प्रतिनिधित्व मिला। यही विरोधाभास उसे इतिहास में एक जटिल और बहुपरती शासक बनाता है।

औरंगज़ेब पर किताब में क्या लिखा है?

औरंगज़ेब को लेकर किताब में ज़्यादा साफ तस्वीर पेश की गई है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उसके कई फैसलों के पीछे राजनीतिक कारण थे और वे इस बात का उदाहरण देते हैं कि उसने कुछ मंदिरों को अनुदान दिए और उनकी सुरक्षा का आश्वासन भी दिया। लेकिन किताब इस पर भी ज़ोर देती है कि औरंगज़ेब के कई फ़रमानों से उसकी व्यक्तिगत धार्मिक कट्टरता भी स्पष्ट झलकती है। उसने अपने प्रांतों के राज्यपालों को स्पष्ट आदेश दिए कि विद्यालयों और मंदिरों को ध्वस्त कर दिया जाए। उसके शासन में बनारस, मथुरा, सोमनाथ जैसे प्राचीन हिंदू तीर्थस्थलों के मंदिरों के अलावा जैन मंदिरों और सिख गुरुद्वारों को भी नष्ट किया गया।

शिवाजी पर क्या कहती है NCERT की पुस्तक?

इस अध्याय के बाद आने वाले हिस्से में NCERT की इस पुस्तक में मराठों की भूमिका को उजागर किया गया है जहां विशेष रूप से छत्रपति शिवाजी महाराज को एक ‘कुशल रणनीतिकार और सच्चे दूरदर्शी’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। किताब कहती है कि मराठा साम्राज्य ने भारत के सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। शिवाजी को एक ऐसे धर्मनिष्ठ हिंदू के रूप में दिखाया गया है जो अपने धर्म का पूरी निष्ठा से पालन करते थे, लेकिन अन्य धर्मों के प्रति भी गहरा सम्मान रखते थे। उनके शासनकाल में जिन मंदिरों को हमलों में अपवित्र किया गया था, उनका पुनर्निर्माण करवाया गया, जिससे सांस्कृतिक पुनर्जागरण को बल मिला। पुरानी किताबों में शिवाजी को मुख्य रूप से एक संगठित और कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करने वाला शासक बताया गया था।

खिलजी, दिल्ली सल्तनत और जज़िया कर का पुस्तक में ज़िक्र

अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर द्वारा श्रीरंगम, मदुरै, चिदंबरम और संभवतः रामेश्वरम जैसे महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक स्थलों पर हमले किए गए थे। नई किताब में बताया गया है कि दिल्ली सल्तनत के दौर में बौद्ध, जैन और हिंदू मंदिरों की पूजनीय मूर्तियों पर भी कई बार हमले हुए, जो सिर्फ लूट के इरादे से नहीं बल्कि मूर्तिभंजन (iconoclasm) जैसी विचारधारा से प्रेरित थे। इसके अलावा, किताब में ‘जज़िया कर’ का भी विस्तार से उल्लेख है, जिसे कुछ सुल्तानों ने गैर-मुस्लिम प्रजा पर थोप दिया था। इसे सैन्य सेवा से छूट और सुरक्षा के बदले में वसूला जाने वाला टैक्स बताया गया है।

पुस्तक इसे केवल एक आर्थिक बोझ नहीं बल्कि सार्वजनिक अपमान का प्रतीक मानती है, जो लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने की वित्तीय और सामाजिक मजबूरी की ओर धकेलता था। गौरतलब है कि पुरानी कक्षा 7 की किताबों में जज़िया को सिर्फ भूमि कर के साथ लिया जाने वाला सामान्य टैक्स बताया गया था, जबकि नई किताब में इसे धार्मिक भेदभाव के एक औजार के रूप में दिखाया गया है।

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