जब महात्मा गांधी को ‘नस्लभेदी’ बताकर घाना में हटाई गई थी उनकी प्रतिमा

पीएम मोदी ने जिन क्वामे एनक्रूमा को श्रद्धांजलि दी है उन्हें 'घाना का महात्मा गांधी' कहा जाता है

घाना विश्वविद्यालय से हटाई गई महात्मा गांधी की प्रतिमा (Photo - Emmanuel Dzivenu/JoyNews)

घाना विश्वविद्यालय से हटाई गई महात्मा गांधी की प्रतिमा (Photo - Emmanuel Dzivenu/JoyNews)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों 5 देशों की यात्रा पर हैं। यात्रा के पहले चरण में पीएम मोदी, पश्चिमी अफ्रीका के देश घाना पहुंचे थे। अपनी यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने घाना की राजधानी अक्रा में क्वामे एनक्रूमा मेमोरियल पार्क का दौरा किया और घाना के संस्थापक राष्ट्रपति डॉ. क्वामे एनक्रूमा को श्रद्धांजलि दी। क्वामे एनक्रूमा को ‘घाना का महात्मा गांधी’ कहा जाता है। माना जाता है कि एनक्रूमा ने गांधी से प्रेरणा लेकर घाना को ब्रिटिश उपनिवेश से स्वतंत्रता दिलाई थी। लेकिन विडंबना यह है कि एक समय घाना में खुद महात्मा गांधी की प्रतिमा को उन्हें ‘नस्लभेदी’ बताते हुए हटा दी गई थी।

मुखर्जी ने किया था अनवारण?

भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जून 2016 में घाना की राजधानी अक्रा स्थित घाना विश्वविद्यालय (University of Ghana) में महात्मा गांधी की एक कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया था। यह मूर्ति भारत-घाना के मजबूत संबंधों और गांधी के वैश्विक विचारों के प्रतीक के रूप में स्थापित की गई थी। लेकिन अनावरण के तुरंत बाद ही यह मूर्ति विवादों में घिर गई और विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसरों, छात्रों और बुद्धिजीवियों ने इसके विरोध में अभियान शुरू कर दिया था।

कैसे शुरू हुआ विवाद?

सितंबर 2016 में विश्वविद्यालय के कई शिक्षकों और छात्रों ने ‘गांधी मस्ट फॉल’ (#GandhiMustFall) नाम से एक आंदोलन शुरू किया। उन्होंने Change.org पर एक ऑनलाइन याचिका चलाई, जिसमें गांधी के दक्षिण अफ्रीका में लिखे गए नस्लभेदी विचारों का हवाला दिया गया। याचिका में बताया गया कि गांधी ने अपने प्रारंभिक लेखन में अफ्रीकी लोगों के लिए अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया था। याचिका में मांग की गई कि गांधी की जगह स्कूलों में अफ्रीका के नायकों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

और हटा दी गई गांधी की प्रतिमा

याचिका में कहा गया था, “हम इसे चेहरे पर एक तमाचा मानते हैं जो स्वायत्तता, मान्यता और सम्मान के लिए हमारे संघर्षों को कमजोर करता है।” इस याचिका में आगे लिखा था, “एक उभरती हुई यूरेशियन महाशक्ति की इच्छाओं के आगे झुकने से बेहतर है कि हम अपनी गरिमा के लिए खड़े हों।” वहीं, इस मामले को लेकर कानून के छात्र नाना अदोमा असारे अदेई ने बीबीसी से बातचीत में कहा था, “उनकी (गांधी) प्रतिमा यहां होने का मतलब था कि वह जिन बातों के प्रतीक हैं, हम उनका समर्थन करते हैं। और अगर वह इन चीज़ों (कथित नस्लभेदी रवैया) का समर्थन करते थे तो मुझे नहीं लगता कि उनकी प्रतिमा कैंपस में होनी चाहिए।” छात्रों के लंबे विरोध प्रदर्शन के बाद इस प्रतिमा को दिसंबर 2018 में हटा दिया गया था।

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