“शब्द” केवल ध्वनि नहीं होते, वे चेतना होते हैं। भाषा के भीतर छिपा हर शब्द एक इतिहास, एक राजनीति, एक दृष्टिकोण और कई बार एक ‘अन्याय’ भी होता है।
स्त्री को पुकारने वाले शब्द जैसे स्त्री, औरत, मैडम न सिर्फ उसके नाम हैं, बल्कि उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक और सत्ता-संबंधी स्थिति के भी संकेतक हैं। किसी समय वह ‘स्त्री’ थी — सृजन की जननी, प्रकृति की शक्ति, शिव की शक्ति; फिर वह ‘औरत’ बनी — देह की पहचान में कैद एक सामाजिक पहचान; और अब वह ‘मैडम’ है — एक आधुनिक, लेकिन संशय से भरा हुआ संबोधन।
शब्द की शक्ति: चेतना से संवाद
भारतीय संस्कृति में शब्द को ‘ब्रह्म’ कहा गया है। जब हम कोई शब्द उच्चारित करते हैं, तो केवल ध्वनि उत्पन्न नहीं होती, एक ऊर्जा जन्म लेती है। जैसे मंत्रों में ध्वनि की आवृत्ति शक्ति बनती है, वैसे ही किसी स्त्री को हम किस नाम से पुकारते हैं, यह केवल उच्चारण नहीं — एक दृष्टिकोण है।
शब्द, समाज की उस दृष्टि को प्रकट करते हैं, जिससे हम एक स्त्री को देखते हैं — एक माँ के रूप में, एक देह के रूप में, या फिर किसी पद की अधिकारिणी के रूप में।
‘स्त्री’ — सृजन और शक्ति की प्रतीक
‘स्त्री’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की “स्तृ” धातु से मानी जाती है — जिसका अर्थ है बिछाना, विस्तार करना, फैलाना। यह मात्र एक जैविक या लिंग पहचान नहीं है, यह एक दार्शनिक अवधारणा है।
“स्त्री वह है जो जीवन को विस्तार देती है।”
वेदों में स्त्री को ‘शक्ति’, ‘माया’ और ‘प्रकृति’ कहा गया है। अमरकोश में उसके पर्याय हैं — योषा, जननी, कामिनी, वधू। यह केवल संबोधन नहीं, यह सम्मान और सृजन की पूजा है।
‘औरत’ — देह से जुड़ा सामाजिक कटाव
‘औरत’ शब्द अरबी भाषा से आया है — ‘अउरत’ जिसका मूल अर्थ है कमजोरी, गुप्त अंग या लज्जा का विषय। यह शब्द एक ऐसे समाज की देन है जहाँ स्त्री को देह से परिभाषित किया गया, न कि चेतना से।
जब हम किसी बच्ची को पुस्तकों में ‘औ से औरत’ पढ़ाते हैं, तो हम अनजाने में उसकी पहचान को एक देहगत कमजोरी में बाँध देते हैं।
“एक समाज जहाँ स्त्री को ‘औरत’ कहा जाता है, वहाँ उसकी देह, उसकी आत्मा से बड़ी हो जाती है।”
‘मैडम’ — औपनिवेशिक संबोधन या सामाजिक विडंबना?
‘मैडम’ शब्द फ्रेंच भाषा के ma dame से आया है — “मेरी महिला”। अंग्रेज़ों के शासन काल में यह स्कूलों और नौकरशाही में एक सम्मानसूचक शब्द बना। पर समय के साथ इस शब्द ने दो विपरीत अर्थ ओढ़ लिए:
- एक तरफ, यह शिक्षित और कामकाजी महिला का प्रतीक बना;
- दूसरी ओर, यह देह व्यापार की दुनिया में ‘मैडम’ — यानी दलालिन — के रूप में एक अपमानजनक प्रतीक भी बन गया।
“जब एक ही शब्द स्त्री के सम्मान और अपमान दोनों का प्रतीक बन जाए, तो भाषा पर विचार करना अनिवार्य हो जाता है।”
शब्द नहीं बदले, दृष्टि बदल गई
हमने स्त्री को शब्दों में कैद कर दिया। कभी उसे ‘देवी’ कहा, कभी ‘बोझ’, कभी ‘विषकन्या’ तो कभी ‘मदर इंडिया’। लेकिन क्या वास्तव में हमने उसे देखा?
स्त्री होना केवल एक शरीर होना नहीं है। वह विचार है, ऊर्जा है, सृजन है। यदि हम उसे सही पहचान देना चाहते हैं, तो पहले हमें अपनी भाषा, दृष्टि और मानसिकता को पुनः देखना होगा।
शब्द बदलो, सोच बदलेगी
स्त्री को ‘औरत’ कहने से पहले सोचिए — आप क्या देख रहे हैं? एक शरीर? एक भूमिका? या एक संपूर्ण सृष्टि?
‘मैडम’ कहने से पहले देखिए — आप उसमें कितनी सत्ता देखते हैं?
और जब आप ‘स्त्री’ कहते हैं, तो जानिए — यह केवल एक लिंग नहीं, एक पूरी संस्कृति की आत्मा है।
“शब्द यदि शस्त्र बन सकते हैं, तो संस्कार भी।”
आइए, शब्दों से स्त्री को चोट न दें — उसे सृजन की तरह समझें, और सम्मान दें।