अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का वैश्विक समुदाय के साथ ट्रेड के संबंध में रूखा रवैया अमेरिकी अर्थव्यवस्था को उसके पतन की ओर ले जाएगा ऐसा कहने के पीछे मेरे पास कई उदाहरण हैं और कई प्रमाण हैं, 1930 से लेकर के अभी हाल फिलहाल तक में जितने भी ट्रेड से संबंधित विवाद हुए हैं या फिर ट्रेड वॉर हुए हैं उनमें हमेशा से समझौता ही आखिरी विकल्प रहा है। वैश्विक समुदाय और वैश्विक राजनीति की अगर बात करें तो लगभग हर देश ने यह समझौता कभी न कभी किसी न किसी से अवश्य किया है, यह समझौता अमेरिका ने किया है, यह समझौता यूरोप ने किया है, यह समझौता एशिया ने किया है, यह समझौता वैश्विक समुदाय के लगभग हर एक समझदार राष्ट्र ने किया है, क्योंकि हर एक सरकार को उसकी जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए उसकी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ नियम बनाने पड़ते हैं, एवं उन नियमों को ईमानदारी से लागू करना होता है, जरूरत पड़ने पर उनमें कुछ ढील भी देनी पड़ती है, इन्हीं नियमों को आज ट्रंप अमेरिका की बख्शीश समझ रहे हैं, जिसे अमेरिका हर किसी को बांटता फिर रहा है। ट्रंप जो गलती कर रहे हैं उनके पहले भी कई लोगों ने ऐसी गलतियां की है और फिर थक हार के उन्होंने अपनी गलतियों को बहुत कुछ गंवाने के बाद सुधारा भी है। विश्व व्यापार की नाव एक बार फिर उस भँवर में फँसी प्रतीत होती है जहाँ से बहुपक्षीय विश्वास की दिशा में बढ़ती वैश्विक व्यवस्था को झटका लगा है। अमेरिका की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत भारत पर लगाया गया 24–25% आयात शुल्क केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं है, बल्कि यह एक वैचारिक दंभ का प्रतीक है, जो सहयोग की बजाय प्रतियोगिता और व्यापारिक स्वार्थ को प्राथमिकता देता है। परंतु भारत न तो इस आर्थिक दबाव से विचलित होगा, न ही नीति-निर्माण की दिशा से डिगेगा। भारत का उत्तर एक सधी हुई रणनीति है—संतुलित, आत्मनिर्भर और वैश्विक उत्तरदायित्व से युक्त। वर्ष 2025 में अमेरिका द्वारा भारत के खिलाफ लगाए गए टैरिफ का औपचारिक कारण भारत द्वारा रूस से रियायती दरों पर तेल की खरीद बताया गया। इसके तहत अमेरिका ने भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों जैसे वस्त्र, रत्न-आभूषण, ऑटो पार्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और इंजीनियरिंग सामानों पर लगभग 25 प्रतिशत शुल्क लगा दिया। इससे भारत के करीब 40 अरब डॉलर मूल्य के वार्षिक निर्यात पर सीधा प्रभाव पड़ने की आशंका व्यक्त की गई है। इस निर्णय का सर्वाधिक प्रभाव भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों पर पड़ सकता है, जिनमें लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। लुधियाना, सूरत, तिरुपुर, नोएडा, पुणे और चेन्नई जैसे औद्योगिक केंद्र इस नीति से सर्वाधिक प्रभावित होंगे।
हालाँकि यह कोई पहली बार नहीं हुआ है जब किसी महाशक्ति ने इस प्रकार का व्यापारिक हथकंडा अपनाया हो। वर्ष 1930 में अमेरिका ने स्मूट-हॉले टैरिफ कानून लागू करते हुए हजारों आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ा दिया था। परिणामस्वरूप वैश्विक व्यापार 66 प्रतिशत तक घट गया और महामंदी गहराती गई। यही संरक्षणवाद वर्ष 2018 से 2020 के बीच अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध में भी देखने को मिला, जब दोनों देशों ने एक-दूसरे के उत्पादों पर भारी शुल्क लगा दिए। इससे तकनीक, कृषि और उपभोक्ता वस्तुओं की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला टूट गई। इस अशांति का लाभ भारत, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों को मिला, लेकिन वैश्विक निवेशकों के मन में अस्थिरता और भय भी उत्पन्न हुआ। वर्ष 2019 में जापान और दक्षिण कोरिया के बीच हुआ ट्रेड विवाद भी उल्लेखनीय है, जिसमें जापान ने सेमीकंडक्टर के कच्चे माल के निर्यात पर नियंत्रण लगा दिया था। इस निर्णय से दक्षिण कोरियाई कंपनियाँ जैसे सैमसंग और हाइनिक्स प्रभावित हुईं, किंतु दीर्घकालिक दृष्टि से कोरिया ने आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।
इन ऐतिहासिक उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि व्यापार युद्ध में कोई स्थायी विजेता नहीं होता, बल्कि अंततः सभी पक्ष किसी न किसी प्रकार से आर्थिक और सामाजिक क्षति उठाते हैं। भारत के सामने यह चुनौती भी है और अवसर भी। भारत को इस समय अपनी रणनीति को बहुआयामी बनाना होगा। सबसे पहले उसे अपने निर्यात के गंतव्यों का विविधीकरण करना होगा। अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता को कम करते हुए यूरोपीय संघ, अफ्रीकी देशों, खाड़ी सहयोग परिषद और ASEAN देशों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौतों को गति देनी चाहिए। इसके साथ ही “ब्रांड इंडिया” की अवधारणा को सशक्त बनाते हुए केवल सस्ते उत्पाद नहीं, बल्कि गुणवत्ता और नवाचार आधारित मूल्यवर्धित वस्तुएँ वैश्विक बाज़ार में प्रस्तुत करनी होंगी।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को अपनी आवाज़ को मजबूती से रखना होगा। यदि अमेरिका का यह निर्णय विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों का उल्लंघन करता है, तो भारत को कानूनी दृष्टिकोण से प्रतिवाद करना चाहिए। साथ ही G20, BRICS जैसे बहुपक्षीय मंचों पर नैतिक और राजनीतिक दबाव बनाकर वैश्विक समर्थन जुटाना भी आवश्यक होगा। घरेलू स्तर पर ‘मेक इन इंडिया’, ‘आत्मनिर्भर भारत’, PLI योजनाओं और स्टार्टअप ईकोसिस्टम को नई ऊर्जा देने की आवश्यकता है ताकि भारत का उत्पादन वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिक सके। तकनीकी नवाचार और लॉजिस्टिक सुधारों के माध्यम से भारत न केवल लागत घटा सकता है, बल्कि समय और गुणवत्ता में भी उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता है।
रोजगार की दृष्टि से सरकार को उन क्षेत्रों में कौशल विकास, पुनः प्रशिक्षण और बीमा योजनाओं को लागू करना होगा जहाँ टैरिफ के कारण मांग में गिरावट आने की आशंका है। यह सामाजिक असंतोष को रोकने में भी सहायक होगा। इन सब रणनीतियों के साथ भारत सरकार ने जिस प्रकार संयम और धैर्य से यह संकट संभाला है, वह प्रशंसनीय है। भारत ने किसी प्रकार की उत्तेजक प्रतिक्रिया नहीं दी, बल्कि विदेश मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय और नीति आयोग के सहयोग से बहुपक्षीय रणनीति तैयार की, जिसमें WTO में कानूनी समीक्षा, वैकल्पिक बाजारों की खोज, राहत पैकेज और MSME नीतियों का पुनर्गठन शामिल है।
इसके उलट ट्रंप प्रशासन की व्यापारिक नीति एकपक्षीय, आक्रामक और अस्थिर रही है। उन्होंने न केवल भारत बल्कि चीन, यूरोप और कनाडा जैसे सहयोगी देशों पर भी व्यापारिक प्रतिबंध लगाए, जिससे अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय छवि को धक्का पहुँचा है। इस नीति से न तो अमेरिका के उपभोक्ताओं को राहत मिली, न ही वहाँ के उद्योगों को दीर्घकालिक लाभ हुआ। आज अमेरिका स्वयं भी आपूर्ति श्रृंखला संकट, महँगाई और बेरोज़गारी से जूझ रहा है। ऐसे में भारत जैसे लोकतांत्रिक और उदार राष्ट्रों के साथ टैरिफ युद्ध छेड़ना केवल आत्मघाती ही नहीं, अपमानजनक भी है।
भारत को इस पूरे परिदृश्य को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए। संकट का उत्तर रणनीति और साहस से देना भारत की परंपरा रही है। यदि भारत आंतरिक आर्थिक ढाँचे को मज़बूत करे, वैश्विक मंचों पर नेतृत्व करे, और नवाचार को नीति का हिस्सा बनाए, तो वह निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में विश्व व्यापार के संतुलन का नया ध्रुव बन सकता है। अमेरिका की व्यापारिक आक्रामकता के विरुद्ध भारत की शांत, संयमित और संतुलित नीति ही उसका सबसे सशक्त उत्तर सिद्ध होगी। यह लेख इस विश्वास को पुनः पुष्ट करता है कि भारत न केवल उभरता हुआ बाज़ार है, बल्कि वह अब वैश्विक नीति निर्धारण की मेज पर निर्णायक शक्ति भी बन चुका है।