3,000 साल पुराने भजन से हुआ भारत और भूमध्य सागर के संगीत संबंधों का खुलासा

हाल ही में हुई एक नई खोज ने इस प्राचीन गीत को और भी खास बना दिया है। इस शोध से पता चलता है कि कांस्य युग में दुनिया भर में संगीत की एक सामान्य परंपरा हो सकती थी।

3,000 साल पुराने भजन से हुआ भारत और भूमध्य सागर के संगीत संबंधों का खुलासा

लगभग 3,000 साल पहले, भूमध्य सागर के पूर्वी किनारे पर स्थित एक बड़ा बंदरगाह शहर उगरित में, कुछ लेखकों ने एक गीत को मिट्टी की पट्टी पर लिखा था। यह गीत हुर्रियन भाषा में था और इसे “हिम्न टू निक्कल” कहा जाता है। यह पता चला कि यह अब तक का सबसे पुराना संगीत का लेखा-जोखा है।

हाल ही में हुई एक नई खोज ने इस प्राचीन गीत को और भी खास बना दिया है। इस शोध से पता चलता है कि कांस्य युग में दुनिया भर में संगीत की एक सामान्य परंपरा हो सकती थी।

रिगवेद से मेल खाती है प्राचीन उगरित की धुन

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता बारबरा के डैन सी. बैकियु ने एक रिसर्च की है, जो Preprints.org पर प्रकाशित हुई है। इसमें उन्होंने उगरित के प्राचीन गीत की तुलना भारत के सबसे पुराने ग्रंथों में से एक, रिगवेद से की है।

बैकियु ने कंप्यूटर की मदद से इन गीतों की लय और स्वर का विस्तार से अध्ययन किया। उनके परिणाम बहुत दिलचस्प थे, रिगवेद के हर पाँच में से एक श्लोक उसी तरह की ध्वनि () पर खत्म होता है, जैसी उगरित के गीत में मिलती है। यह इतनी खास समानता संयोग से होने की संभावना बहुत ही कम है, यानी यह कहीं से भी साधारण बात नहीं है।

रिगवेद और उगरित के गीतों में एक जैसी लय

हिम्न टू निक्कल में दो तरह की खास लय (rhythm) मिलती हैं- एक आसान, जो दिल की धड़कन जैसी लगती है, और दूसरी थोड़ी कठिन। बैकियु कहते हैं कि ये दोनों ही लय रिगवेद में भी देखने को मिलती हैं।

आसान लय आमतौर पर श्लोकों के अंत में आती है, जबकि जटिल लय रिगवेद के एक खास छंद, जिसे त्रिष्टुप कहते हैं, से जुड़ी होती है। इससे यह समझ में आता है कि उस समय लय को सोच-समझकर, एक कला के रूप में चुना गया था।

मधुरता और आरोह-अवरोह में भी अद्भुत समानता

इन दोनों प्राचीन ग्रंथों की ध्वनि भी आपस में काफी मिलती है। पुराने विद्वानों ने बताया है कि रिगवेद की धुनें ज़ोर वाले अक्षरों पर ऊपर चढ़ती हैं और फिर नीचे उतरती हैं, बिलकुल वैसे ही जैसे उगरित के गीत में होता है।

जब इन दोनों गीतों को कंप्यूटर की मदद से दोबारा बनाया गया, तो उनकी ध्वनियाँ इतनी एक जैसी लगीं कि उनके बीच का संगीत संबंध साफ समझ में आने लगा।

क्या प्राचीन सभ्यताओं में साझा थी संगीत परंपरा?

यह नई खोज एक अहम सवाल उठाती है, क्या पुराने समय में अलग-अलग सभ्यताओं की संगीत परंपराएँ आपस में जुड़ी हुई थीं?

उगरित एक बड़ा बंदरगाह शहर था, जो मेसोपोटामिया, अनातोलिया और लेवंत जैसी प्राचीन सभ्यताओं को जोड़ता था। माना जाता है कि मितानी साम्राज्य, जो हुर्रियन भाषा बोलता था और जिसकी इंडो-यूरोपीय संस्कृतियों से भी नजदीकी थी, शायद भारत और उगरित के बीच संगीत और कविता की परंपराओं को आपस में जोड़ने का जरिया रहा हो।

संगीत परंपराओं की एकता का प्रमाण

डैन बैकियु की यह रिसर्च इस सोच को गलत साबित करती है कि प्राचीन सभ्यताएँ संगीत में एक-दूसरे से पूरी तरह अलग थीं। इसके उलट, यह साबित करती है कि हजारों साल पहले भी दुनिया की अलग-अलग सभ्यताओं के बीच साझा संस्कृति और कला की एक गहरी कड़ी मौजूद थी।

 

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