इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने दिल्ली में अपने नए राष्ट्रीय समिति कार्यालय “कायदे मिल्लत सेंटर” का उद्घाटन किया। लेकिन इस कार्यक्रम से ज्यादा चर्चा कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी की अनुपस्थिति पर हो रही है। IUML कांग्रेस की दशकों पुरानी और भरोसेमंद सहयोगी पार्टी है। ऐसे में इस कार्यक्रम में प्रियंका गांधी का नहीं आना राजनीतिक हलचल पैदा कर रहा है।
शुरूआत से ही मुस्लिम तुष्टिकरण में लिप्त रही है कांग्रेस
कांग्रेस पर “मुस्लिम तुष्टिकरण” का आरोप नया नहीं है। आज़ादी से पहले खिलाफत आंदोलन के समर्थन से लेकर, आज़ादी के बाद कॉमन सिविल कोड पर नरमी, इंदिरा गांधी के दौर की वोट बैंक राजनीति, राजीव गांधी सरकार का शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटना और मनमोहन सिंह सरकार की सच्चर कमेटी रिपोर्ट तक—हर दौर में कांग्रेस पर मुस्लिम समुदाय को खुश करने की कोशिश करने का आरोप लगा। यही कारण है कि “तुष्टिकरण” कांग्रेस की राजनीति पर सबसे स्थायी बहसों में गिना जाता है। वैसे भी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो यहां तक कह चुके हैं कि संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है।
देखने वाली बात यह है कि भले ही प्रियंका गांधी ने इस कार्यक्रम से दूरी बनाई हो, लेकिन करती तो बिल्कुल उल्टा काम है। कांग्रेस का इतिहास ही कुछ ऐसा रहा है। एक तरफ राहुल गांधी लगातार मुस्लिम तुष्टिकरण वाले बयान देते हैं, काम भी कुछ ऐसे ही करते हैं।
IUML: कांग्रेस की जीवनरेखा
IUML केरल में कांग्रेस की सबसे मज़बूत सहयोगी पार्टी है।
वायनाड से राहुल गांधी की जीत में IUML का वोट बैंक निर्णायक रहा।
2016 विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस 22 सीटों पर सिमट गई थी, IUML ने अकेले 18 सीटें जीती थीं।
2025 लोकसभा चुनाव में UDF (कांग्रेस गठबंधन) ने 20 में से 18 सीटें जीतीं, जिनमें IUML की भूमिका अहम रही।
प्रियंका की दूरी: अटकलों के तीन बड़े कारण
कांग्रेस पर लंबे समय से “मुस्लिम तुष्टीकरण” का आरोप लगता रहा है। दिल्ली जैसे राष्ट्रीय मंच पर प्रियंका की अनुपस्थिति को कांग्रेस की “संतुलन रणनीति” के रूप में देखा जा रहा है।
राहुल गांधी का सीधा समीकरण
IUML से राहुल गांधी का जुड़ाव वायनाड सीट से है। पार्टी शायद चाहती हो कि IUML के साथ प्राथमिक संबंध राहुल ही संभालें।
भविष्य की तैयारी
2029 लोकसभा चुनाव की दृष्टि से कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि वह केवल एक वर्ग या क्षेत्र की राजनीति पर निर्भर नहीं है।
राजनीतिक संकेत क्या हैं?
प्रियंका गांधी की दूरी ने IUML के भीतर असंतोष की चर्चा भी तेज कर दी है। हालांकि, कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि इससे राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की “पैन-इंडिया अपील” को मज़बूती मिलेगी। दरअसल, IUML और कांग्रेस का गठबंधन दक्षिण भारत में पार्टी के लिए बेहद अहम है। लेकिन प्रियंका की अनुपस्थिति यह इशारा करती है कि कांग्रेस अब सहयोगियों के सहारे रहते हुए भी अपनी अलग और व्यापक छवि गढ़ना चाहती है।
IUML का कांग्रेस को योगदान
1920 के दशक से IUML का अस्तित्व।
केरल में मुस्लिम-बहुल इलाकों पर मज़बूत पकड़।
हर चुनाव में कांग्रेस को निर्णायक वोट ट्रांसफर।
राहुल गांधी की वायनाड जीत में प्रमुख भूमिका।
प्रियंका गांधी का IUML कार्यक्रम से दूरी बनाना केवल एक “अनुपस्थिति” नहीं, बल्कि कांग्रेस की भविष्य की राजनीति का संकेत है। लेकिन, यहां सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अपने इतिहास को बदल पायेगी। आज जो उसकी पार्टी के नेता बोलते हैं और करते हैं, उस पर उनकी इस अनुपस्थिति से कोई फर्क पड़ने वाला है?