भारत और जापान के रिश्तों में अब नया युग शुरू होने जा रहा है। जापान अगले दस साल में 68 अरब डॉलर (करीब 5.7 लाख करोड़ रुपये) भारत में निवेश करने जा रहा है। यह सिर्फ निवेश नहीं, बल्कि एशिया की नई ताकत बनाने की रणनीति है। इस ऐतिहासिक फैसले से भारत के लिए रोजगार, तकनीक और उद्योगों की बाढ़ आने वाली है। इससे भारत टेक महाशक्ति बन जाएगा। वहीं चीन जैसे देशों के माथे पर बल पड़ना तय है।
मोदी-इशिबा मुलाकात: ऐलान से कांपेगा ड्रैगन
यूके की वेबसाइट द सन के मुताबिक, 29-30 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टोक्यो जाएंगे, जहां जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के साथ यह बड़ा ऐलान होगा। दोनों नेता मिलकर न सिर्फ निवेश का रोडमैप पेश करेंगे बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए संयुक्त घोषणा भी करेंगे। इससे साफ है कि भारत और जापान मिलकर चीन की मनमानी को रोकने और एशिया में नई शक्ति धुरी बनाने जा रहे हैं।
सेमीकंडक्टर से एआई तक – भारत बनेगा टेक हब
68 अरब डॉलर का यह निवेश उन क्षेत्रों में होगा, जो भविष्य की असली ताकत हैं –
सेमीकंडक्टर
क्रिटिकल मिनरल्स
टेलीकॉम और एआई (Artificial Intelligence)
क्लीन एनर्जी और फार्मा
जापान को 2030 तक 7.9 लाख तकनीकी विशेषज्ञों की कमी का डर है। जबकि भारत हर साल 15 लाख इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स पैदा करता है। जापान अब भारत की प्रतिभा को अपनाकर अपनी तकनीकी ताकत बढ़ाएगा। यानि, भारत के युवाओं के लिए रोजगार और अवसरों की सुनामी आने वाली है।
स्टार्टअप्स को मिलेगा जापानी पैसा
जापान ने पहले ही हैदराबाद में स्टार्टअप्स को फंडिंग दी है। अब यह दायरा और बड़ा होगा। स्टार्टअप इकोसिस्टम में जापान का पैसा और भारत की दिमागी ताकत मिलकर ऐसी क्रांति ला सकती है, जो भारत को आने वाले वर्षों में ग्लोबल टेक्नोलॉजी पावरहाउस बना देगी।
सुरक्षा साझेदारी भी होगी मजबूत
सिर्फ अर्थव्यवस्था ही नहीं, भारत और जापान 17 साल बाद अपनी सुरक्षा साझेदारी की घोषणा को अपडेट करेंगे। दोनों देश हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) में चीन की चालों पर रोक लगाने और सामरिक मोर्चे पर एकजुट होकर काम करेंगे। भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री के मुताबिक, यह सहयोग सिर्फ निवेश तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि भारत-जापान की साझेदारी को “एशिया की शांति और सुरक्षा की गारंटी” बना देगा।
चीन के लिए बड़ा झटका
इस घोषणा का असली संदेश सिर्फ भारत-जापान तक सीमित नहीं है। यह साफ संदेश है कि एशिया में चीन का एकाधिकार अब नहीं चलेगा। तकनीक और निवेश का नया केंद्र अब भारत होगा। जापान ने चीन के बजाय भारत पर भरोसा जताया है। इस ऐतिहासिक फैसले से भारत के लिए रोजगार, तकनीक और उद्योगों की बाढ़ आने वाली है। वहीं चीन जैसे देशों के माथे पर बल पड़ना तय है।
यह 68 अरब डॉलर का निवेश भारत के लिए सदी का सबसे बड़ा अवसर है। आने वाले समय में भारत न सिर्फ टेक महाशक्ति बनेगा, बल्कि एशिया में चीन के बढ़ते वर्चस्व को चुनौती देने वाला सबसे बड़ा स्तंभ भी साबित होगा। भारत-जापान की यह साझेदारी साबित करेगी कि 21वीं सदी का नेतृत्व अब भारत के हाथ में है।