कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों बिहार में “वोट अधिकार यात्रा” निकाल रहे हैं। उनका दावा है कि यह यात्रा लोकतंत्र को बचाने और जनता की आवाज़ बुलंद करने के लिए है। लेकिन सवाल यह है कि क्या वास्तव में राहुल गांधी की यह कोशिश जनता के मुद्दों पर आधारित है या फिर यह केवल खोई हुई राजनीतिक ज़मीन को पाने का एक नया प्रयोग है? बिहार के प्रबुद्ध लोगों का मानना है कि यह यात्रा महज़ दिखावटी है और कांग्रेस का इतिहास ही उसे लोकतंत्र और अधिकारों पर भाषण देने का नैतिक आधार नहीं देता।
बिहार की ज़मीन और कांग्रेस का संकट
बिहार भारतीय राजनीति की वह धरती है, जिसने जेपी आंदोलन से लेकर समाजवादी चेतना तक कई बड़े आंदोलनों को जन्म दिया। आज़ादी के बाद कांग्रेस लंबे समय तक यहां मजबूत रही, लेकिन 1990 के दशक के बाद से उसकी पकड़ लगभग खत्म हो चुकी है। विधानसभा हो या लोकसभा, कांग्रेस अब अपने दम पर चुनाव लड़ने और जीतने की स्थिति में नहीं है। यही वजह है कि राहुल गांधी को बार-बार यात्राओं और अभियानों का सहारा लेना पड़ रहा है।
भाजपा नेताओं का कहना है कि “वोट अधिकार यात्रा” कांग्रेस की वही हताशा दर्शाती है, जो 2024 के चुनावों में विपक्षी गठबंधन के बिखराव के बाद से साफ दिखाई दे रही है।
लोकतंत्र पर सबसे अधिक हमला किसने किया?
भाजपा का सबसे बड़ा सवाल यही है कि लोकतंत्र और वोट अधिकार पर सबसे अधिक हमला किसने किया, यह राहुल गांधी भूल जाते हैं।
1975 का आपातकाल: इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने पूरे देश में आपातकाल लगाया, विपक्षी नेताओं को जेल में ठूंस दिया और प्रेस पर सेंसरशिप लगाई। क्या यह लोकतंत्र की रक्षा थी?
संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग: कांग्रेस शासन में बार-बार राष्ट्रपति शासन लगाकर चुनी हुई राज्य सरकारों को बर्खास्त किया गया।
भ्रष्टाचार: बोफोर्स से लेकर 2G और कोयला घोटाले तक, कांग्रेस शासन ने लोकतंत्र को पारदर्शी बनाने के बजाय भ्रष्टाचार को ही संस्थागत रूप दे दिया।
दरअसल कांग्रेस का इतिहास ही लोकतंत्र पर सबसे बड़े हमलों से भरा पड़ा है। ऐसे में राहुल गांधी का लोकतंत्र बचाने का नारा जनता के गले नहीं उतर रहा।
बिहार में कांग्रेस की विफल राजनीति
भाजपा नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी बिहार की वास्तविकताओं से पूरी तरह कट चुके हैं। कांग्रेस का बिहार संगठन लगभग निष्क्रिय है। ज़मीनी कार्यकर्ता न के बराबर हैं। इतना ही नहीं, कांग्रेस के पास नीतीश कुमार या लालू प्रसाद जैसे करिश्माई नेता कम से कम बिहार में तो नहीं है। एक सत्य यह भी है कि बिहार के युवा रोजगार और विकास चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस उन्हें केवल खोखले वादे देती है। भाजपा का मानना है कि राहुल गांधी की यात्रा न तो संगठन खड़ा कर पाएगी, न ही जनता का भरोसा जीत पाएगी।
राहुल गांधी की ‘यात्रा राजनीति’
यह भी दिलचस्प तथ्य है कि राहुल गांधी पिछले कुछ वर्षों से यात्राओं पर ज़ोर दे रहे हैं। उन्होंने 2022 में “भारत जोड़ो यात्रा” निकाली। इसके बाद 2023 में “भारत जोड़ो न्याय यात्रा” और अब 2025 में “वोट अधिकार यात्रा”। अब सवाल यह है कि इन यात्राओं से कांग्रेस को क्या मिला, यह तो वही जाने। लेकिन, जनता तो उनके पक्ष में आने को तैयार नहीं दिख रही है।
भाजपा नेता कहते हैं कि इन यात्राओं का वास्तविक नतीजा क्या रहा? कांग्रेस को न तो लोकसभा चुनाव में फायदा हुआ, न ही राज्य चुनावों में। उल्टे भाजपा और एनडीए की सीटें लगातार बढ़ती गईं। इसका मतलब साफ है कि राहुल गांधी की यात्राएं केवल मीडिया सुर्खियों तक सीमित रहती हैं, जमीनी असर नहीं डाल पातीं।
भाजपा का मॉडल बनाम कांग्रेस की वादाखिलाफी
भाजपा का कहना है कि जनता को आज चुनावी वादों से नहीं, काम से उम्मीद है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गरीबों को मुफ्त राशन, आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य योजनाएं, हर घर बिजली और नल से जल, पक्के मकान और उज्ज्वला योजना ने बिहार समेत पूरे देश की तस्वीर बदली है।
इसके विपरीत, कांग्रेस के पास न तो कोई ठोस विज़न है, न ही कोई विकास का एजेंडा। राहुल गांधी केवल मोदी विरोध को ही अपनी राजनीति का आधार बनाते हैं।
वोट अधिकार बनाम परिवारवाद
एक सवाल यह भी है कि वोट अधिकार की बात करने वाली कांग्रेस खुद परिवारवाद का प्रतीक क्यों है? कांग्रेस में अध्यक्ष पद केवल नेहरू-गांधी परिवार तक सीमित रहा है। राहुल गांधी खुद जनता द्वारा बार-बार नकारे जाने के बावजूद पार्टी के शीर्ष पर बने रहते हैं। असली लोकतंत्र वही है, जहां नेतृत्व जनता की पसंद से तय हो, न कि वंशवाद से। इस लिहाज़ से देखा जाए तो कांग्रेस को लोकतंत्र और अधिकारों पर प्रवचन देने का कोई नैतिक हक़ नहीं है।
बिहार की जनता का मूड
साफ तौर पर कहें तो बिहार की जनता अच्छी तरह जानती है कि राज्य को किसने बदहाली दी और किसने विकास की राह दिखाई। लालू प्रसाद यादव के शासन को आज भी “जंगलराज” के नाम से याद किया जाता है। कांग्रेस उन्हीं ताकतों के साथ खड़ी है, जिन्होंने बिहार को अराजकता और पिछड़ेपन में धकेला। दूसरी ओर भाजपा और एनडीए ने बिहार में सड़कों, बिजली और शिक्षा के क्षेत्र में ठोस काम किए। जनता इसलिए राहुल गांधी के नारों के बजाय भाजपा के कामों पर भरोसा करती है।
कुल मिलाकर राहुल गांधी की “वोट अधिकार यात्रा” पहली नज़र में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का अभियान लग सकती है, लेकिन गहराई से देखने पर यह कांग्रेस की खोई हुई साख को लौटाने की हताश कोशिश नज़र आती है। भाजपा का मानना है कि जिस पार्टी ने सबसे बड़ा हमला लोकतंत्र पर किया, वही आज लोकतंत्र की रक्षा का दावा कर रही है, यह अपने आप में सबसे बड़ा विरोधाभास है।
बिहार की जनता राजनीतिक भाषणों और यात्राओं से ज़्यादा विकास, रोज़गार और स्थिरता चाहती है। यही कारण है कि भाजपा का विश्वास है कि राहुल गांधी की यह यात्रा भी पिछली यात्राओं की तरह केवल शोर-शराबे तक सीमित रहेगी और चुनावी असर बिल्कुल नहीं डालेगी।