20 अगस्त का दिन भारतीय राजनीति ही नहीं, भारत के वर्तमान और भविष्य के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण साबित होने जा रहा है। मॉनसून सत्र की शुरुआत होने से पहले ही चर्चा थी कि इस सत्र में सरकार कोई बड़ा और सियासी तौर पर भूचाल लाने वाला बिल ला सकती है, या कोई बड़ा बदलाव कर सकती है। मंगलवार शाम से ही कहा जा रहा था कि कैबिनेट मंत्री अमित शाह बुधवार यानी 20 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को लेकर कोई बड़ा विधेयक पेश कर सकते हैं।
देर शाम लोकसभा सचिवालय की तरफ़ से अगले दिन यानी बुधवार के लिए संशोधित कार्यसूची (बिज़नेस लिस्ट) भी जारी कर दी गई और जैसे ही ये लिस्ट सामने आई– हलचल तेज़ हो गई और लोग क़यास लगाने में जुटे हैं कि कल सुबह लोकसभा में क्या होने वाला है?
दरअसल इस हड़कम्प की वजह से कार्यसूची में शामिल किए गए कल के प्रस्तावित बिल हैं
जिसमें 130 वां संविधान संशोधन बिल भी शामिल है
इसके अलावा
केंद्र शासित प्रदेश शासन (संशोधन) विधेयक, 2025
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025
और ऑनलाइन गेमिंग के प्रमोशन और रेग्युलेशन से जुड़ा विधेयक भी कल पेश किया जा सकता है।
ज़ाहिर है पहले तीनों विधेयक न सिर्फ संवेदनशील हैं, बल्कि जम्मू कश्मीर का मुद्दा जुड़ा होने की वजह से हर कोई अपने अपने तरीके से क़यास लगा रहा है।
लेकिन सूत्रों की मानें तो जम्मू कश्मीर से जुड़ा बिल तो इस बदलाव का सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा है, असली कहानी कुछ और है।
सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार भारतीय राजनीति में स्वच्छता और जवाबदेही की दिशा में एक बेहद अहम और ऐतिहासिक कदम उठाने की तैयारी कर रही है। आप चाहें तो इसे भ्रष्टाचार पर पीएम मोदी की सबसे बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक भी कह सकते हैं।
जानकारी के मुताबिक़ कल सरकार संसद में एक ऐसा प्रावधान लाने जा रही है, जिसके तहत कोई भी मंत्री या मुख्यमंत्री यदि लगातार तीस दिनों तक हिरासत में रहता है और उस पर पाँच वर्ष या उससे अधिक की सज़ा वाले अपराध का आरोप है, तो वह स्वतः ही अपने पद से बर्खास्त हो जाएगा।
संविधान के अनुच्छेद 75 में संशोधन संभव- लेकिन इससे क्या बदलेगा ?
इसके लिए संविधान में संशोधन की ज़रूरत होगी और इसीलिए प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 75 में सबक्लॉज (5) के बाद एक नया सबक्लॉज (5A) जोड़ा जाएगा।
इसके अनुसार “यदि कोई केंद्रीय मंत्री, अपने पद पर रहते हुए, लगातार तीस दिनों तक गिरफ़्तार होकर किसी प्रकार की हिरासत में रहता है और उस पर किसी ऐसे अपराध का आरोप है जो वर्तमान में लागू किसी भी कानून के अंतर्गत आता है और जिसके लिए पाँच वर्ष या उससे अधिक की जेल की सज़ा हो सकती है, तो उसे राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर 31 वें दिन पद से हटा दिया जाएगा।”
यहाँ तक कि अगर प्रधानमंत्री 30 दिन बीतने के बाद भी राष्ट्रपति को ऐसी कोई सलाह नहीं देते तो भी वो मंत्री या मुख्यमंत्री ख़ुद ही पद के लिए अयोग्य हो जाएगा ।
प्रधानमंत्री पर भी लागू होगा कानून
इस प्रावधान के दायरे में सिर्फ मंत्री या मुख्यमंत्रियों तक नहीं, ख़ुद देश के प्रधानमंत्री भी आएंगे।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार—
“यदि प्रधानमंत्री स्वयं, अपने पद पर रहते हुए, गिरफ़्तार होने के बाद लगातार तीस दिनों तक हिरासत में रहता है और उस पर ऐसे अपराध का आरोप है जो पाँच वर्ष या उससे अधिक की सज़ा वाला हो, तो उसे अपनी गिरफ़्तारी और हिरासत के इकतीसवें दिन तक इस्तीफ़ा देना होगा। यदि वह इस्तीफ़ा नहीं देता है तो वह स्वतः ही प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त हो जाएगा।”
यानी, अगर प्रधानमंत्री स्वयं इस स्थिति में आते हैं, तो भी कानून उन्हें कोई छूट नहीं देगा।
हालांकि इस विधेयक में यह भी प्रावधान रखा जा सकता है– जिसके अनुसार प्रधानमंत्री या मंत्री हिरासत से रिहा होने के बाद, दोबारा प्रधानमंत्री या मंत्री के रूप में नियुक्त किए जाने से नहीं रोके जाएंगे।
मंत्रियों-मुख्यमंत्रियों के लिए अनुच्छेद 164 में भी संशोधन संभव
इसी तर्ज़ पर संविधान के अनुच्छेद 164 में भी संशोधन प्रस्तावित है। उपबंध (4) के बाद नया उपबंध (4A) जोड़ा जाएगा। इसमें राज्यों के मंत्रियों और मुख्यमंत्री के लिए समान नियम लागू होंगे।
यानी अगर मंत्री या मुख्यमंत्री भी ऐसे किसी आरोप में जेल जाता है तो 31 वें दिन मुख्यमंत्री राज्यपाल को उसे हटाने की सलाह देंगे और अगर वो ऐसा नहीं करते तो भी वो मंत्री अपने आप 31वें दिन पद से बर्खास्त हो जाएगा।
“जबकि मुख्यमंत्री को भी ऐसे मामले में इस्तीफा देना ही होगा और अगर वो नहीं देता तो 31 वें दिन वो स्वतः ही मुख्यमंत्री पद से मुक्त हो जाएगा।”
हालांकि केंद्र सरकार के मंत्रियों और प्रधानमंत्री की तरह मुख्यमंत्री या मंत्री भी हिरासत से रिहा होने के बाद, राज्यपाल द्वारा पुनः नियुक्त किए जा सकते हैं।
जम्मू–कश्मीर का क्या एंगल है ?
जानकारी के मुताबिक़ इस बिल को जम्मू कश्मीर और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के लिए भी पारित करवाना होगा। इसके लिए जम्मू–कश्मीर पुर्नगठन अधिनियम और केंद्र शासित प्रदेश शासन नियम में भी संशोधन किए जाने आवश्यक हैं।
यानी सूत्रों की मानें तो जम्मू कश्मीर को लेकर वैसा कुछ नहीं होने जा रही, जिसकी अटकलें हैं, बल्कि असली लड़ाई भ्रष्टाचार के विरुद्ध है।
क्यों माना जा रहा है ऐतिहासिक?
जानकारों के मुताबिक, यह प्रावधान भारतीय राजनीति में “साफ़–सुथरे शासन” की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। लंबे समय से यह मांग उठती रही है कि गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपित नेताओं को सत्ता में बने रहने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के मामले में कुछ ऐसा ही हुआ था, जब उन्होने कई महीने जेल से ही सरकार चलाई थी, जिससे संवैधानिक संकट की स्थिति भी पैदा हो गई थी।
ऐसे में अब यदि यह संशोधन पेश होता है और क़ानून में बदलता है तो सत्ता में बैठे नेताओं के लिए यह स्पष्ट संदेश होगा कि कानून से ऊपर कोई नहीं है और सत्ता की आड़ में कोई भी भ्रष्टाचारी ख़ुद को बचा नहीं सकेगा, फिर चाहे वो ख़ुद ही सत्ता क्यों न हो।
जानकारों के अनुसार इस प्रावधान के लागू होने से न केवल जनता का भरोसा मजबूत होगा बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा भी बढ़ेगी। साथ ही, यह कदम आने वाले समय में चुनावी राजनीति पर गहरा असर डाल सकता है।