राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी स्थापना के 100 साल पूरे होने पर दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय “100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज” संवाद कार्यक्रम की शुरुआत की। इस मौके पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने भारत की भूमिका, समाज की एकता और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी ऐतिहासिक धाराओं पर विस्तृत विचार रखे।
“संघ की सफलता तभी है जब भारत विश्व गुरु बने”
मोहन भागवत का सबसे बड़ा संदेश था कि भारत को अब दुनिया के सामने अपना योगदान देना है। उनके शब्दों में, “भारत को दुनिया में योगदान देना है और अब वो समय आ गया है।”
दरअसल, यह विचार आरएसएस की उस दीर्घकालिक सोच को दर्शाता है जिसमें भारत को केवल एक राजनीतिक शक्ति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
इतिहास की याद और कांग्रेस की भूमिका
भागवत ने गुलामी और स्वतंत्रता आंदोलन का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत दो बार घोर पराधीनता में गया और 1857 के बाद भारतीय असंतोष को सही दिशा देने की जरूरत थी। उस दौर में कांग्रेस एक धारा के रूप में उभरी और आजादी के आंदोलन का हथियार बनी। उन्होंने यह भी कहा कि आजादी के बाद अगर उस धारा को सही दिशा दी जाती तो भारत की तस्वीर आज और बेहतर होती।
यह टिप्पणी कांग्रेस की ऐतिहासिक भूमिका को स्वीकार भी करती है और यह संकेत भी देती है कि स्वतंत्रता के बाद नेतृत्व की दिशा वैसी नहीं रही जैसी होनी चाहिए थी।
समाज की भूमिका सबसे अहम
मोहन भागवत ने अपने भाषण में साफ किया कि राष्ट्र निर्माण केवल नेताओं या संगठनों पर नहीं छोड़ा जा सकता। उन्होंने कहा, “परिवर्तन तभी संभव है जब समाज खुद अपने दुर्गुणों को दूर करे और सामूहिक प्रयास करे।”
यह विचार संघ की उस नीति को रेखांकित करता है जिसमें सामाजिक सुधार को राष्ट्र निर्माण की मूलभूत शर्त माना गया है।
संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन
संघ प्रमुख ने हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया। उनका कहना था कि जिनका जीवन बेहतर और प्रेरणादायक होगा, वे समाज को जोड़ेंगे और उन लोगों को भी वापस लाएंगे जो हिंदू पहचान से दूर चले गए हैं। यह संदेश स्पष्ट करता है कि संघ आने वाले वर्षों में सांस्कृतिक एकता और सामाजिक संगठन पर और ज़ोर देने वाला है।
“वंदे मातरम कहना हमारा अधिकार”
भागवत ने राष्ट्रभक्ति को लेकर दृढ़ रुख अपनाया और कहा कि “वंदे मातरम कहना हमारा अधिकार है, इसे नकारा नहीं जा सकता।” साथ ही उन्होंने संघ के बारे में फैली अधूरी और गलत जानकारियों पर भी चिंता जताई और तथ्यपरक संवाद की जरूरत पर बल दिया।
बड़ी मौजूदगी और प्रतीकात्मक महत्व
इस आयोजन में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, अनुप्रिया पटेल, भाजपा सांसद कंगना रनौत, योगगुरु बाबा रामदेव, पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, क्रिकेटर कपिल देव और ओलंपिक विजेता अभिनव बिंद्रा जैसे नाम शामिल रहे।
साथ ही मुस्लिम, ईसाई और सिख समुदाय के प्रतिनिधि और विदेशी राजनयिक भी मौजूद रहे। यह संघ की उस कोशिश का हिस्सा है जिसमें वह खुद को केवल एक संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्रव्यापी और वैश्विक संवाद का मंच साबित करना चाहता है।
निष्कर्ष: आगे का रास्ता
मोहन भागवत का यह भाषण केवल संघ के 100 साल पूरे होने का उत्सव नहीं था, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने का संकेत भी था। उनका संदेश यही था कि भारत की ताकत उसकी विविधता और समाज की एकता में है। अगर पूरा समाज एकजुट होकर आगे बढ़ेगा तो भारत न केवल एक मजबूत राष्ट्र बनेगा बल्कि विश्व गुरु की भूमिका निभा सकेगा।