2018 में डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने वैश्विक व्यापार में एक नये अध्याय की शुरुआत की। अमेरिका ने चीन सहित कई देशों से आयातित वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाने की नीति अपनाई। इसे अमेरिका की घरेलू उद्योगों और किसानों की सुरक्षा के लिए आवश्यक बताया गया। ट्रंप ने इसे ‘अमेरिका को पहले’ (America First) नीति का हिस्सा कहा। लेकिन वास्तविकता ने पूरी तस्वीर बदल दी। चीन ने अमेरिकी सोयाबीन और मक्का पर जवाबी टैरिफ लागू कर दिया, जिससे अमेरिकी किसानों को अरबों डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा।
अमेरिका के किसानों का संकट भारत जैसे देश के लिए अवसर की तरह देखा जा सकता है। अमेरिकी नीति की विफलता ने वैश्विक बाजार में नए संतुलन के संकेत दिए और भारत जैसे देश के लिए कृषि और निर्यात क्षेत्र में प्रवेश के द्वार खोल दिए। ट्रंप प्रशासन ने यह भले ही सोचा था कि चीन को दबाव में लाया जा सकेगा, लेकिन चीन की जवाबी कार्रवाई ने अमेरिका के कृषि क्षेत्र की रीढ़ हिला दी। अमेरिकी किसानों की नाराजगी और आर्थिक संकट ने यह स्पष्ट कर दिया कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में केवल टैरिफ या शुल्क के माध्यम से दबाव डालना हमेशा सफल नहीं होता।
चीन ने अमेरिकी सोयाबीन और मक्का की खरीद लगभग बंद कर दी है। यह कदम अमेरिका के लिए बड़ा आर्थिक झटका साबित हुआ। सोयाबीन अमेरिका का एक प्रमुख निर्यात उत्पाद है, विशेष रूप से आइओवा, नेब्रास्का और मिनेसोटा जैसे राज्यों में। चीन की खरीद में कमी के कारण अमेरिकी किसानों की आय घट गई, उत्पादन का मूल्य गिर गया और उन्हें ऋण चुकाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अमेरिकी मीडिया और विशेषज्ञ लगातार इस नीति की आलोचना कर रहे थे। सरकार ने राहत पैकेज का ऐलान किया, लेकिन यह केवल अस्थायी मदद थी और वास्तविक संकट को नहीं रोक सकी।
भारत के लिए अवसर
भारत की दृष्टि से यह स्थिति एक रणनीतिक अवसर प्रस्तुत करती है। अमेरिकी टैरिफ वार और चीन की जवाबी कार्रवाई ने वैश्विक कृषि बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक अंतर पैदा किया। भारत के किसानों और निर्यातकों के लिए यह समय नए बाजारों में प्रवेश करने का है। भारतीय सोयाबीन, मक्का और अन्य कृषि उत्पादों की मांग चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे देशों में बढ़ सकती है। अमेरिका और चीन के टैरिफ वार से उत्पन्न अस्थिरता को भारत अपने हित में बदल सकता है।
वैश्विक व्यापार में भारत की भूमिका मजबूत हो सकती है। अमेरिका और चीन के बीच संतुलन बिगड़ने से भारत जैसे देश की मांग में वृद्धि हो सकती है। यह अवसर भारतीय कृषि और उद्योगों के लिए केवल आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक लाभ भी प्रस्तुत करता है। भारत इस स्थिति का उपयोग अपनी निर्यात नीतियों और उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए कर सकता है। तकनीकी निवेश और गुणवत्ता सुधार के माध्यम से भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
इस स्थिति ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रवाद और संरक्षणवाद का संतुलित उपयोग आवश्यक है। अमेरिकी टैरिफ वार के पीछे अमेरिका का उद्देश्य था अपने नागरिकों और उद्योगों की सुरक्षा करना, लेकिन नीति के क्रियान्वयन में चूक और चीन की जवाबी रणनीति ने यह साबित किया कि कट्टर संरक्षणवाद दीर्घकाल में नुकसानदेह हो सकता है। भारत के लिए यह एक सबक है कि वैश्विक व्यापार में नीति निर्माण में संतुलन, दूरदर्शिता और रणनीतिक योजना महत्वपूर्ण है।
भारत को चाहिए कि वह अपनी कृषि और उद्योगों की निर्यात नीति में सुधार करे। अमेरिका के किसानों की कठिनाइयों से यह स्पष्ट होता है कि बाजार की अनिश्चितताओं को समझना और नए अवसरों का लाभ उठाना ही वास्तविक राष्ट्रीय हित है। भारत वैश्विक व्यापार में अपनी पकड़ मजबूत कर सकता है और इस स्थिति का लाभ उठाकर नए वैश्विक बाजारों में प्रवेश कर सकता है।
अमेरिका और चीन के टैरिफ वार ने यह भी दिखाया कि वैश्विक व्यापार में एक देश की नीति का प्रभाव कई देशों और उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ता है। भारत के लिए यह अवसर है कि वह न केवल कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाए, बल्कि टेक्नोलॉजी, औद्योगिक उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला में भी मजबूत स्थिति बनाए। अमेरिकी टैरिफ वार की विफलता भारत के लिए सीख का स्रोत बन सकती है।
अमेरिकी किसानों की कहानी भारत के लिए चेतावनी और प्रेरणा दोनों है। जॉन मिलर जैसे किसानों की कठिनाइयों ने यह स्पष्ट कर दिया कि नीति का असली असर केवल नीतिगत उद्देश्यों से नहीं, बल्कि नागरिकों और वास्तविक आर्थिक हितों पर पड़ता है। भारत को चाहिए कि वह अपने किसानों और निर्यातकों के हितों को ध्यान में रखते हुए वैश्विक व्यापार रणनीति तैयार करे।
अमेरिका की नीति की विफलता के बावजूद, भारत इस अवसर का पूरा लाभ उठा सकता है। चीन और अमेरिका के बीच अस्थिरता ने वैश्विक बाजार में नया संतुलन पैदा किया है। भारत कृषि और उद्योग में निवेश बढ़ाकर वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है। यह केवल आर्थिक अवसर नहीं, बल्कि रणनीतिक लाभ भी है।
चीन ने ब्राजील और अर्जेंटीना से आयात बढ़ाया
न्यू एजेंसी रायटर्स के अनुसार चीन ने अमेरिकी सोयाबीन पर टैरिफ बढ़ाने के बाद ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे देशों से सोयाबीन का आयात बढ़ा दिया है। 2025 में चीन ने अर्जेंटीना से लगभग 1.3 मिलियन टन सोयाबीन का आदेश दिया, जिससे अमेरिकी सोयाबीन की मांग में और कमी आई। इस रणनीति ने चीन को अमेरिकी सोयाबीन पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद की और ब्राजील तथा अर्जेंटीना के किसानों के लिए नए बाजारों के द्वार खोले।
भारतीय किसानों के लिए खुले नए द्वार
अमेरिका और चीन के टैरिफ वार ने भारत के लिए कई अवसर उत्पन्न किए हैं। अमेरिकी सोयाबीन किसानों की कठिनाइयां और चीन की ओर से अमेरिकी सोयाबीन की खरीद में कमी ने भारतीय किसानों और निर्यातकों के लिए नए बाजारों में प्रवेश के अवसर खोले हैं।
सोयाबीन और मक्का निर्यात में वृद्धि
भारत ने 2018-2019 में लगभग 10.93 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन किया। अमेरिका और चीन के व्यापार युद्ध के कारण, भारतीय सोयाबीन और मक्का के निर्यात में वृद्धि हो सकती है। चीन और अन्य देशों में भारतीय कृषि उत्पादों की मांग बढ़ सकती है, जिससे भारतीय किसानों को लाभ होगा।
कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
अमेरिका और चीन के टैरिफ वार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक व्यापार में अस्थिरता हो सकती है। भारत को चाहिए कि वह अपनी कृषि नीतियों में सुधार करे और आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए। इससे भारत को वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिल सकती है।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की स्थिति
अमेरिका और चीन के टैरिफ वार के कारण, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अस्थिरता आई है। भारत को चाहिए कि वह इस अवसर का लाभ उठाए और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति मजबूत करे। इससे भारत को नए व्यापारिक साझेदार मिल सकते हैं और निर्यात में वृद्धि हो सकती है।
अमेरिकी टैरिफ वार और चीन की जवाबी कार्रवाई ने यह स्पष्ट कर दिया कि वैश्विक व्यापार में संतुलन, दूरदर्शिता और रणनीति आवश्यक है। भारत के लिए यह अवसर है कि वह अपने कृषि और उद्योगिक उत्पादन को बढ़ाए, निर्यात को मजबूत करे और वैश्विक व्यापार में अपनी पकड़ बनाए। अमेरिका-चीन टकराव में भारत को राष्ट्रवादी दृष्टि से अपने हित में अवसर निकालने की पूरी क्षमता है।
इस स्थिति से यह भी सीख मिलती है कि वैश्विक व्यापार केवल आर्थिक हितों का मामला नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक आत्मनिर्भरता और वैश्विक रणनीति का भी हिस्सा है। भारत के लिए अब यह समय है कि वह अपने संसाधनों, नीतियों और रणनीतिक सोच के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत करे और आर्थिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करे।