ब्रिटेन और जर्मनी के कॉलेजों में भी पढ़ाया जाएगा आयुर्वेद: भारत के जोधपुर आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने की शुरूआत

"आयुर्वेद" शब्द संस्कृत के दो शब्दों से बना है। "आयु" यानी जीवन और "वेद" यानी ज्ञान। इसीलिए आयुर्वेद को "जीवन का विज्ञान" कहा जाता है। 

ब्रिटेन और जर्मनी के कॉलेजों में भी पढ़ाया जाएगा आयुर्वेद: भारत के जोधपुर आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने की शुरूआत

आयुर्वेद एक बहुत ही पुरानी और बड़ी चिकित्सा प्रणाली है, जिसे दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा परंपराओं में से एक माना जाता है। इसकी शुरुआत भारत के वैदिक काल लगभग 1500 ईसा पूर्व यानि करीब 3500 साल पहले से मानी जाती है। “आयुर्वेद” शब्द संस्कृत के दो शब्दों से बना है। “आयु” यानी जीवन और “वेद” यानी ज्ञान। इसीलिए आयुर्वेद को “जीवन का विज्ञान” कहा जाता है।

माना जाता है कि आयुर्वेद, अथर्ववेद का हिस्सा है, जो चार वेदों में से एक है। वेदों में पूजा-पाठ के साथ-साथ जड़ी-बूटियों, ऑपरेशन और अलग-अलग बीमारियों के इलाज की जानकारी भी दी गई है। इसमें सिर्फ बीमारी का इलाज नहीं, बल्कि पूरे जीवन का संतुलन देखा जाता है। यानी शरीर, मन और आत्मा तीनों का ध्यान रखा जाता है। इसमें सही खानपान, अच्छी जीवनशैली, औषधीय जड़ी-बूटियाँ,  योग और ध्यान जैसी चीज़ें शामिल होती हैं।

परंपरा के अनुसार, आयुर्वेद का ज्ञान भगवान ब्रह्मा ने ऋषियों को दिया था। ऋषियों ने इसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी बोलकर आगे बढ़ाया और बाद में संस्कृत ग्रंथों में लिखा गया।

अब भारत ब्रिटेन और जर्मनी के कॉलेजों में भी आयुर्वेद पढ़ाएगा

पहली बार ऐसा होगा कि कोई भारतीय विश्वविद्यालय सीधे ब्रिटेन और जर्मनी के कॉलेजों में जाकर छात्रों को आयुर्वेद पढ़ाएगा। यह पहल सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर ने शुरू की है। इसके लिए यूनिवर्सिटी ने ब्रिटेन की एसोसिएशन ऑफ आयुर्वेद एकेडमी, कम्युनिटी इंटरेस्ट कंपनी (CIC) और जर्मनी की इंडो-जर्मन यंग लीडर्स फोरम के साथ समझौता (MoU) किया है। इस समझौते के बाद विदेशी छात्र अब आयुर्वेद की पढ़ाई ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से कर सकेंगे।

बीएएमएस कोर्स की सुविधा

विदेशी छात्रों के लिए बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) कोर्स शुरू किया गया है। इसमें छात्र पहले साढ़े तीन साल तक अपने देश से ऑनलाइन पढ़ाई करेंगे और फिर डेढ़ साल के लिए जोधपुर आकर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग लेंगे। उनके लिए NCISM की गाइडलाइन के अनुसार खास आयुष सिलेबस भी बनाया जा रहा है। यूनिवर्सिटी ने ऐसा टाइमटेबल बनाया है कि यहां की सामान्य क्लास पर असर न पड़े। प्रोफेसर ऑनलाइन पढ़ाएंगे और जरूरत पड़ने पर ब्रिटेन व जर्मनी भी जाकर पढ़ाएंगे।

आधुनिक विज्ञान से जोड़ने की कोशिश

अब सिर्फ आयुर्वेद की पढ़ाई ही नहीं, बल्कि उसे आधुनिक विज्ञान से जोड़ने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है। इसी वजह से यूनिवर्सिटी ने दिल्ली की केंद्रीय आयुर्वेदिक रिसर्च काउंसिल, पुणे का नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरोपैथी और जयपुर की केंद्रीय होम्योपैथी काउंसिल के साथ मिलकर पीएचडी प्रोग्राम शुरू किया है।

इस रिसर्च का मकसद है कि आयुर्वेद को जीन विज्ञान (genomics) और बायोटेक्नोलॉजी जैसी नई तकनीकों से जोड़ा जाए, ताकि नई दवाइयाँ और बेहतर इलाज की पद्धतियाँ बनाई जा सकें।

विदेशी छात्रों के लिए आसान रास्ता

पहले विदेशी छात्रों को बीएएमएस के पूरे 5.5 साल भारत में रहकर पढ़ाई करनी पड़ती थी। अब इस पहल के तहत उन्हें केवल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए भारत आना होगा, जबकि बाकी पढ़ाई अपने देश से ही पूरी कर सकेंगे।

ब्रिटेन सरकार ने इस कोर्स को मंजूरी दे दी है, जबकि जर्मनी में प्रक्रिया अभी चल रही है। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय की अनुमति मिलने के बाद यह कार्यक्रम आधिकारिक तौर पर शुरू होगा। विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. पीके प्रजापति ने कहा कि यह पहल आयुर्वेद के लिए नया अध्याय है। इससे आयुष का ज्ञान दुनिया तक पहुंचेगा और आयुर्वेद और ज्यादा लोगों के करीब जाएगा।

लंबे समय तक लोग आयुर्वेद का मज़ाक उड़ाते रहे, इसे सिर्फ़ दादी-नानी के नुस्खों तक सीमित मानते रहे। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। लेकिन अब भारतीय विश्वविद्यालय सीधे ब्रिटेन और जर्मनी जैसे बड़े देशों के कॉलेजों में जाकर विद्यार्थियों को आयुर्वेद पढ़ाएगा। यह दिखाता है कि हमारी पुरानी परंपरा आज पूरी दुनिया में सम्मान पा रही है।

 

 

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