भूपेन हजारिका केवल गायक नहीं थे, वे असम की आत्मा की आवाज थे। उन्हें “बरड ऑफ ब्रह्मपुत्र” कहा गया, क्योंकि उनके गीत ब्रह्मपुत्र की तरह बहते थे — कभी शांत, कभी उग्र, लेकिन हमेशा जीवनदायी। उनका गीत “मनुहे मनुहोर बाबे” आज भी मानवता का सबसे बड़ा संदेश देता है — कि इंसान को इंसान के लिए जीना चाहिए। यह गीत केवल असम में नहीं, पूरे भारत में इंसानियत का प्रतीक बन गया।
लेकिन भूपेन हजारिका केवल प्रेम और सौहार्द के गायक नहीं थे, वे अपने गीतों के जरिए समय-समय पर चेतावनी भी देते थे। उनका गीत “गंगा तुम बहती हो क्यों” केवल गंगा से सवाल नहीं था, बल्कि समाज से सवाल था — अन्याय और असमानता क्यों बनी हुई है। इसी तरह, असम के बदलते डेमोग्राफिक परिदृश्य पर भी वे आज होते तो शायद यही सवाल पूछते — “असमिया संस्कृति बहती क्यों जा रही है, बचाने वाला कौन है?”
आज असम जिस संकट का सामना कर रहा है, वह केवल राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक है। दशकों से हो रही बांग्लादेशी घुसपैठ ने असम की पहचान को खतरे में डाल दिया है। 2011 की जनगणना में असम के 11 जिले मुस्लिम बहुसंख्यक हो चुके थे। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का दावा है कि यदि यह रफ्तार जारी रही तो अगले दशक में असमिया अपनी ही भूमि पर अल्पसंख्यक हो सकते हैं। हाल ही में राज्य सरकार ने 1.29 लाख बिघा जमीन से अवैध कब्जे हटाए, लेकिन अभी भी लाखों बिघा जमीन पर बाहरी लोगों का कब्जा है।
यह केवल भूमि का संकट नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भूगोल का संकट है। असम की भाषा, लोकगीत, बिहू नृत्य और पारंपरिक त्योहार धीरे-धीरे हाशिये पर जा रहे हैं। कई जिलों में असमिया माध्यम के स्कूल बंद हो रहे हैं और दूसरी भाषाओं का प्रभुत्व बढ़ रहा है। यह वही डर है जिसकी आशंका भूपेन हजारिका ने जताई थी। उनके गीत “बिस्तिरनो पारोरे” में जो पीड़ा थी, वह आज के असम में और गहरी महसूस होती है।
भूपेन हजारिका के गीत केवल संगीत नहीं, आंदोलन थे। यही वजह है कि CAA विरोधी प्रदर्शनों में हजारों लोग उनके गीत गाते हुए सड़कों पर उतरे। यह दर्शाता है कि भूपेन की विरासत आज भी लोगों को सांस्कृतिक अस्मिता के लिए खड़े होने की प्रेरणा देती है। लेकिन सवाल यह है — क्या केवल गीत गाने से संस्कृति बच जाएगी?
असम को अब ठोस सांस्कृतिक और राजनीतिक रणनीतियों की जरूरत है। भाषा को लेकर नीति बनानी होगी, असमिया माध्यम के स्कूलों को बढ़ावा देना होगा, बिहू और लोकगीतों को युवाओं में लोकप्रिय बनाना होगा। डिजिटल युग में भूपेन हजारिका के गीतों को फिर से जीवंत करना होगा, ताकि नई पीढ़ी यह समझ सके कि यह केवल संगीत नहीं, बल्कि असम की आत्मा है।
भूपेन हजारिका ने कहा था —”किसी के लिए गाना मतलब सिर्फ आवाज देना नहीं है, बल्कि उनके दर्द को अपना बनाना है।” आज यह जिम्मेदारी हर असमिया की है कि वे भूपेन हजारिका के गीतों की आत्मा को जिंदा रखें और असम की पहचान को मिटने न दें।
संस्कृति की रक्षा ही सच्ची श्रद्धांजलि
आज असम केवल एक राज्य नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर का रक्षक है। भूपेन हजारिका की विरासत हमें सिखाती है कि संस्कृति केवल गीतों में नहीं, बल्कि हमारे कर्मों में जीवित रहती है। यदि असम की डेमोग्राफिक पहचान पूरी तरह बदल गई, तो आने वाली पीढ़ियां केवल यह गा पाएंगी कि एक समय था जब असमिया संस्कृति जीवित थी।
यह समय है जागने का, खड़े होने का और अपनी जमीन, भाषा और परंपराओं की रक्षा करने का। सरकार को अवैध घुसपैठ पर और सख्त कदम उठाने होंगे, और समाज को अपनी सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित करना होगा। भूपेन हजारिका के गीतों की सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि असमिया पहचान हमेशा जीवित रहे — न कि इतिहास की किताबों में एक “खोई हुई संस्कृति” के रूप में दर्ज हो।