भाजपा का चुनावी महायज्ञ: तमिलनाडु से बंगाल और बिहार तक हर किले पर भगवा फहराने की तैयारी

भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीतिक चाल चल दी है। संगठन ने तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे तीन महत्वपूर्ण राज्यों के मोर्चों पर अपने चुनावी सेनापतियों की तैनाती कर दी है।

भाजपा का चुनावी महायज्ञ: तमिलनाडु से बंगाल और बिहार तक हर किले पर भगवा फहराने की तैयारी

भाजपा का चुनावी महायज्ञ: तमिलनाडु से बंगाल और बिहार तक हर किले पर भगवा फहराने की तैयारी

भारतीय राजनीति का मौसम बदल चुका है। 2025 की आहट अब केवल दिल्ली की गलियों तक सीमित नहीं है, बल्कि दक्षिण से लेकर पूरब और बिहार की धरती तक महसूस की जा रही है। इस बदलते परिदृश्य में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीतिक चाल चल दी है। संगठन ने तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे तीन महत्वपूर्ण राज्यों के मोर्चों पर अपने चुनावी सेनापतियों की तैनाती कर दी है। नामों का यह ऐलान महज़ संगठनात्मक औपचारिकता नहीं, बल्कि भाजपा के उस संकल्प का प्रतीक है, जो उसे हर गढ़ में भगवा फहराने की ओर ले जा रहा है।

दिल्ली में हुई घोषणा से यह स्पष्ट हो गया कि बैजयंत पांडा तमिलनाडु में भाजपा की चुनावी कमान संभालेंगे। पश्चिम बंगाल जैसे कठिन और निर्णायक मैदान में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव प्रभारी होंगे, जबकि उनके साथ बिप्लब कुमार देब सह-प्रभारी की भूमिका निभाएंगे। बिहार में मुरलीधर मोहोल को सह-प्रभारी नियुक्त किया गया है, जहां भाजपा नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की पुरानी राजनीति को चुनौती देने उतारू है।

भाजपा के लिए चुनौती है तमिलनाडु

तमिलनाडु की राजनीति लंबे समय से द्रविड़ दलों के वर्चस्व में रही है। यहां भाजपा अब तक सीमित उपस्थिति ही दर्ज करा सकी है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले कुछ वर्षों में इस राज्य को लगातार तरजीह दी है। चाहे मंदिरों की यात्रा हो या तमिल संस्कृति के सम्मान का सवाल, भाजपा ने यह स्पष्ट किया है कि वह तमिलनाडु को उत्तर भारत की राजनीति से अलग-थलग नहीं रहने देगी। बैजयंत पांडा की नियुक्ति इसी रणनीति का हिस्सा है। वह न केवल आधुनिक सोच के नेता माने जाते हैं बल्कि संगठनात्मक क्षमता और बौद्धिक ताक़त के लिए भी पहचाने जाते हैं। भाजपा की कोशिश है कि तमिलनाडु में अब वह केवल सहयोगी की भूमिका में न दिखे, बल्कि स्वतंत्र ताक़त के रूप में भी अपनी पहचान बनाए।

बंगाल में समझौते के मूड में नहीं है भाजपा

अगर बंगाल की बात करें तो वहां की लड़ाई पूरी तरह से वैचारिक हो चुकी है। 2021 का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए उम्मीद और निराशा दोनों का मिला-जुला अनुभव था। पार्टी ने विपक्ष की सबसे बड़ी ताक़त के रूप में खुद को स्थापित किया, लेकिन सत्ता हासिल नहीं कर सकी। ममता बनर्जी के “खेला होबे” नारे का मुकाबला भाजपा ने “जय श्रीराम” से किया और लाखों कार्यकर्ताओं को सड़कों पर उतार दिया। अब 2025 में वही लड़ाई एक बार फिर निर्णायक रूप ले रही है। इस बार भाजपा ने भूपेंद्र यादव जैसे रणनीतिकार को मैदान में उतारा है, जिनके पास संगठन को ज़मीन से जोड़ने का लंबा अनुभव है। उनके साथ बिप्लब देब जैसे आक्रामक नेता की मौजूदगी यह बताती है कि पार्टी बंगाल में अब किसी भी समझौते के मूड में नहीं है।

बिहार में कोई रिश्क नहीं लेना चाहती भाजपा

बिहार की राजनीति हमेशा से गठबंधनों और पलटियों की रही है। नीतीश कुमार का बार-बार पाला बदलना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 2020 के चुनाव में भाजपा ने राजद और कांग्रेस के गठबंधन को कड़ी टक्कर दी थी और नीतीश कुमार के साथ सत्ता में साझेदारी की थी। लेकिन उसके बाद से समीकरण बदल चुके हैं। नीतीश एक बार फिर महागठबंधन की तरफ़ चले गए, लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव ने सत्ता में हिस्सेदारी पा ली। ऐसे में भाजपा के सामने चुनौती यह है कि वह जनता को यह विश्वास दिलाए कि स्थिर और मज़बूत नेतृत्व केवल उसके पास है। मुरलीधर मोहोल की नियुक्ति इसी नई रणनीति का हिस्सा है, जहाँ पार्टी नई ऊर्जा और नए चेहरे के सहारे अपनी जड़ों को और मजबूत करना चाहती है।

इन तीनों राज्यों में भाजपा की रणनीति अलग-अलग है, लेकिन लक्ष्य एक ही है—हर जगह भगवा का विस्तार। तमिलनाडु में पार्टी सांस्कृतिक जुड़ाव और विकास की राजनीति के सहारे अपनी जगह बनाना चाहती है। बंगाल में वह वैचारिक संघर्ष को निर्णायक बनाने की तैयारी कर रही है। बिहार में जातीय समीकरणों से ऊपर उठकर संगठनात्मक ताक़त और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को मुख्य हथियार बनाया जाएगा।

विपक्ष की स्थिति इस समय उलझी हुई है। तमिलनाडु में डीएमके-कांग्रेस का गठबंधन सत्ता में है, लेकिन भ्रष्टाचार और वंशवाद के आरोपों से घिरा है। बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार बार-बार हिंसा और असहिष्णुता के आरोपों से सवालों के घेरे में आती रही है। बिहार में लालू-नीतीश की जोड़ी अब भी जातीय समीकरणों के सहारे राजनीति कर रही है, लेकिन जनता स्थिरता और विकास की राह चाहती है। ऐसे माहौल में भाजपा यह संदेश देने में सफल हो रही है कि वह केवल सत्ता के लिए नहीं बल्कि “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की परिकल्पना के लिए चुनाव लड़ रही है।

भाजपा की यह रणनीति विपक्ष को सीधे तौर पर चुनौती देती है। वह यह दिखाना चाहती है कि पार्टी अब केवल हिंदी पट्टी तक सीमित नहीं है। दक्षिण में तमिलनाडु, पूर्व में बंगाल और उत्तर में बिहार—तीनों राज्यों में अपनी उपस्थिति मज़बूत कर भाजपा यह साबित करना चाहती है कि वह वास्तव में अखिल भारतीय पार्टी है। यह वही सपना है जिसे अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की पीढ़ी ने देखा था, और जिसे नरेंद्र मोदी और अमित शाह अब साकार करने की दिशा में बढ़ रहे हैं।

इन नियुक्तियों से भाजपा का संदेश एकदम साफ़ है—2025 की लड़ाई में वह किसी राज्य को हल्के में नहीं लेगी। जहाँ वह मज़बूत है वहाँ अपने गढ़ को और मजबूत करेगी, और जहाँ वह अब तक कमज़ोर रही है वहाँ बड़े चेहरे और संगठित अभियान उतारेगी। विपक्ष चाहे जितना भी जोड़तोड़ करे, भाजपा यह दिखाना चाहती है कि उसके पास न केवल नेतृत्व है बल्कि राष्ट्र की एकता और विकास का विज़न भी है।

जैसे-जैसे 2025 नज़दीक आ रहा है, भाजपा का यह चुनावी शंखनाद और तेज़ सुनाई दे रहा है। तमिलनाडु से लेकर बंगाल और बिहार तक पार्टी का संदेश एक ही है—हर गढ़ पर भगवा, हर घर में मोदी का नाम। यह महायज्ञ केवल सत्ता प्राप्ति के लिए नहीं, बल्कि उस वैचारिक विजय के लिए है जिसे भाजपा “राष्ट्र प्रथम” की राजनीति कहती है। विपक्ष के लिए यह सीधा खतरा है कि भाजपा अब हर भूगोल में अपनी जड़ें जमाने को तैयार है और 2025 में उसका लक्ष्य केवल जीत नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की दिशा तय करना है।

विपक्ष के लिए सीधा खतरा है कि भाजपा हर भूगोल में जड़ें जमाने को तैयार है। उसका लक्ष्य भारतीय राजनीति की दिशा तय करना है।

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