कांग्रेस: औपनिवेशिक औजार से आपातकाल तक, भारत माता का अपमान

कांग्रेस की पहली पीढ़ी अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे दरबारी अभिजात्यों की थी। उनका सपना स्वतंत्रता नहीं, बल्कि अंग्रेज़ी मेज़ पर एक अतिरिक्त कुर्सी था। 1857 की महाक्रांति ने ब्रिटिशों को सिखा दिया था कि यदि भारतीय जनमानस जाग गया, तो साम्राज्य की चूलें हिल जाएंगी।

कांग्रेस: औपनिवेशिक औजार से आपातकाल तक, भारत माता का अपमान

इंदिरा गांधी ने सत्ता बचाने के लिए पूरे राष्ट्र की स्वतंत्रता कुचल दी।

भारत माता का इतिहास जितना गौरवशाली है, उतना ही उसका अपमान भी कांग्रेस नामक संस्था ने किया। 1885 में जिस संगठन का जन्म अंग्रेज़ों की कोख से हुआ, वह आज भी भारतीय राजनीति पर एक अभिशाप की तरह मंडरा रहा है। इसे “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस” कहा गया, लेकिन इसमें न भारतीयता थी, न राष्ट्रीयता—और देशभक्ति का तो प्रश्न ही नहीं उठता। यह केवल और केवल औपनिवेशिक सत्ता का सुरक्षा कवच था।

कांग्रेस की पहली पीढ़ी अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे दरबारी अभिजात्यों की थी। उनका सपना स्वतंत्रता नहीं, बल्कि अंग्रेज़ी मेज़ पर एक अतिरिक्त कुर्सी था। 1857 की महाक्रांति ने ब्रिटिशों को सिखा दिया था कि यदि भारतीय जनमानस जाग गया, तो साम्राज्य की चूलें हिल जाएंगी। इसलिए कांग्रेस बनाई गई, ताकि भारतीय असंतोष को बैठकों, प्रस्तावों और याचिकाओं में बांधकर निष्क्रिय कर दिया जाए और यही हुआ।

समय के साथ जब महात्मा गांधी कांग्रेस के प्रतीक बने, तो उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को “अहिंसा” की परिधि में बांध दिया। यह नैतिकता नहीं, ब्रिटिश हितों की रक्षा का साधन था। जब सुभाषचंद्र बोस जैसे वीर सशस्त्र संघर्ष का बिगुल बजाना चाहते थे, तब सबसे बड़ा अवरोध गांधी और नेहरू ही बने। बोस का “दिल्ली चलो” नारा अंग्रेज़ों को कंपा गया, लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व उन्हें अपदस्थ कर बैठा। क्या यह संयोग था या ब्रिटिशों को बचाने की सोची-समझी चाल?

दूसरे विश्वयुद्ध के समय भारत की धरती और भारतीयों का खून ब्रिटिश युद्ध मशीनरी में झोंक दिया गया। लाखों भारतीय सैनिकों को जबरन मोर्चे पर भेज दिया गया। इसी दौरान 1943 का बंगाल का अकाल हुआ। चर्चिल ने जानबूझकर भारतीय अनाज को विदेश भेज दिया और लाखों लोग भूख से तड़पकर मर गए। उस समय कांग्रेस के पास संगठन था, जनता का समर्थन था, पर साहस नहीं था। लेकिन यह क्या, न तो कोई जनांदोलन खड़ा किया और न ही ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी। भारत माता की संतानें सड़कों पर लाशों की तरह बिखर रही थीं और कांग्रेस नेताओं की चुप्पी गूंजती रही। यह मौन ही उनकी गुलामी की पराकाष्ठा थी।

गांधी नहीं, बंदूकों ने खोला आजादी का रास्ता

कितने ही बलिदनों के बाद जब देश को स्वतंत्रता मिली, तो वह भी कांग्रेस की लड़ाई से नहीं। 1946 का नौसैनिक विद्रोह, जिसने मुंबई से लेकर कराची तक ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया, यही निर्णायक मोड़ था। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली तक ने स्वीकार किया कि अंग्रेज़ भारत छोड़ने को इसलिए मजबूर हुए क्योंकि सेना और नौसेना में विद्रोह का लावा फूट चुका था। गांधी की अहिंसा और नेहरू के भाषणों से नहीं, बल्कि बंदूकों से आज़ादी का रास्ता खुला। लेकिन स्वतंत्रता का पूरा श्रेय कांग्रेस ने हथिया लिया। किताबों में बोस और नौसैनिक विद्रोह को हाशिए पर डाल दिया गया और नेहरू-गांधी परिवार को “भारत का उद्धारक” बना दिया गया। यह इतिहास का सबसे बड़ा छल था। आज भी इस सच से देश के अधिकांश लोग महरूम हैं।

लोकतंत्र का काला अध्याय

आज़ादी के बाद भी कांग्रेस का चेहरा नहीं बदला। वही औपनिवेशिक कानून, वही अंग्रेज़ों का ढांचा, वही दफ्तरशाही। भारत की आत्मा को मुक्त करने के बजाय कांग्रेस ने उसे और गुलाम बनाया। इस बार अपनी ही सत्ता के नीचे। परिवारवाद ने पार्टी को बंधक बना लिया। विदेशी शक्तियों से समझौते हुए। घोटाले दर घोटाले हुए और जब जनता की आवाज़ उठी, तो 1975 का आपातकाल आया—भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय।

इंदिरा गांधी ने सत्ता बचाने के लिए पूरे राष्ट्र की स्वतंत्रता कुचल दी। प्रेस की जुबान बंद कर दी गई। लाखों कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंस दिया गया। विपक्ष को प्रताड़ित किया गया। जबरन नसबंदी के अभियानों में गरीबों के साथ अमानवीय व्यवहार हुआ। जो कांग्रेस कभी ब्रिटिशों के लिए “सुरक्षा वाल्व” थी, वही स्वतंत्र भारत में तानाशाही का औजार बन गई। अंतर केवल इतना था कि पहले शासक अंग्रेज़ थे, अब नेहरू-गांधी परिवार।

कांग्रेस का इतिहास स्वतंत्रता की लड़ाई से लेकर आपातकाल तक केवल और केवल एक ही बात साबित करता है। यह संगठन भारत माता का नहीं, बल्कि भारत माता के शत्रुओं का साथ देता रहा। इसके नेताओं ने भारत के असली क्रांतिकारियों को दबाया, ब्रिटिशों के लिए सैनिक और संसाधन मुहैया कराए, जनता को अकाल और गरीबी में मरने दिया और स्वतंत्रता मिलने पर भी लोकतंत्र का गला घोंटा।

आज जबकि भारत विश्व मंच पर आत्मविश्वास से खड़ा है, यह स्मरण करना आवश्यक है कि कांग्रेस नामक औपनिवेशिक अवशेष ही इस देश की सबसे बड़ी बीमारी रही है, जिसने भारत को गुलामी से मुक्त नहीं किया, बल्कि गुलामी के नए-नए रूप गढ़े। कांग्रेस की असली परिभाषा यही है, भारतीय आत्मा के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात।

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