जेन-ज़ी की डिजिटल क्रांति: क्या सोशल मीडिया नेपाल में सरकार बदल सकती है-और भारत को क्या करना चाहिए?

नेपाल में जेन-ज़ी का आंदोलन सिर्फ पड़ोसी देश की खबर नहीं है, बल्कि भारत के लिए चेतावनी है। लोकतंत्र में युवाओं की आवाज़ को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

जेन-ज़ी की डिजिटल क्रांति: क्या सोशल मीडिया नेपाल में सरकार बदल सकती है — और भारत को क्या करना चाहिए?

भारत के लिए नेपाल का मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण है।

नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस बार की हलचल अलग है। काठमांडू की सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे युवा, संसद भवन का घेराव और सोशल मीडिया पर सरकार-विरोधी अभियान यह संकेत दे रहे हैं कि सत्ता परिवर्तन की गूंज डिजिटल युग में नई परिभाषा ले रही है। खासकर जेन-ज़ी पीढ़ी (26 साल से कम उम्र के युवा) की भूमिका इस बार निर्णायक दिखाई दे रही है। सवाल सिर्फ नेपाल तक सीमित नहीं है — भारत जैसे पड़ोसी देश के लिए भी यह स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है।

नेपाल की मौजूदा स्थिति: जेन-ज़ी का विद्रोह

2024-25 के इस आंदोलन की सबसे खास बात यह है कि यह किसी पारंपरिक राजनीतिक दल के नेतृत्व में नहीं, बल्कि सोशल मीडिया-जनित, विकेंद्रीकृत आंदोलन है।

आंदोलन का ट्रिगर: सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध और सरकार की कथित भ्रष्टाचारपूर्ण नीतियों से युवा भड़के।

प्रदर्शन का पैमाना: राजधानी काठमांडू के न्यू बनेश्वर इलाके से शुरू होकर आंदोलन ने संसद घेराव का रूप ले लिया।

सरकारी प्रतिक्रिया: पुलिस ने आंसू गैस, पानी की बौछारें और रबर की गोलियां चलाईं, 9 लोगों की मौत की खबर।

डिजिटल मोर्चा: #OliResign, #FreeOurInternet जैसे हैशटैग ने 10 लाख से ज्यादा ट्वीट हासिल किए।

सोशल मीडिया: सत्ता हिलाने का नया हथियार

नेपाल का यह आंदोलन कोई पहला उदाहरण नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया कई सरकारों के पतन का कारण बन चुका है:

श्रीलंका (2022): #GoGotaGo आंदोलन ने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को इस्तीफा देने पर मजबूर किया।

बांग्लादेश (2024): फेसबुक लाइव और ट्विटर कैंपेन ने शेख हसीना सरकार के खिलाफ माहौल बनाया।

म्यांमार (2021): इंटरनेट बंद कर सेना ने आंदोलन दबाने की कोशिश की, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव ने सैन्य शासन की छवि खराब कर दी।

इन उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि डिजिटल आंदोलन अब सिर्फ बहस नहीं, बल्कि शासन बदलने की शक्ति रखता है।

चीन का बढ़ता दखल और भारत की रणनीतिक चिंता

नेपाल की राजनीति में चीन की भूमिका लगातार बढ़ रही है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI): चीन नेपाल में सड़क, रेल और ऊर्जा प्रोजेक्ट्स पर बड़े निवेश कर रहा है।

कूटनीतिक दबाव: बीजिंग लगातार काठमांडू को भारत से दूरी बनाने और अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है।

राजनीतिक प्रभाव: ओली सरकार को चीन-समर्थक माना जाता रहा है और चीनी राजनयिक खुले तौर पर दलों के बीच मध्यस्थता में सक्रिय रहे हैं।

भारत के लिए खतरा यह है कि अगर नेपाल में अस्थिरता बढ़ती है और चीन इसका फायदा उठाता है, तो भारत की उत्तरी सीमाएं और ज्यादा संवेदनशील हो जाएंगी।

भारत के लिए खतरे और अवसर

नेपाल भारत का महत्वपूर्ण रणनीतिक पड़ोसी है। दोनों देशों के बीच खुली सीमा, सांस्कृतिक संबंध और व्यापारिक निर्भरता है। नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता भारत के लिए कई मोर्चों पर चिंता का कारण बन सकती है:

सुरक्षा चुनौती:

नेपाल की अस्थिरता का फायदा चीन उठा सकता है। खुली सीमा के कारण चरमपंथी और असामाजिक तत्व भारत में घुसपैठ कर सकते हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।

आर्थिक असर:

भारत-नेपाल व्यापार पर असर पड़ेगा।

पर्यटन, सीमा-पार मजदूरी और ट्रांजिट व्यापार प्रभावित हो सकता है।

कूटनीतिक संतुलन:

अगर भारत सक्रिय नहीं रहा तो चीन नेपाल में राजनीतिक शून्य को भर सकता है। नेपाल का झुकाव पूरी तरह बीजिंग की ओर जाना भारत के लिए रणनीतिक खतरा होगा।

भारत को क्या करना चाहिए?

भारत के लिए यह समय सिर्फ दर्शक बनने का नहीं है। उसे तीन स्तरों पर सक्रिय रणनीति बनानी होगी:

1. कूटनीतिक संवाद तेज़ करना

भारत को नेपाल के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों से संवाद बनाए रखना चाहिए। सिर्फ ओली सरकार या सिर्फ विपक्ष पर भरोसा करना दीर्घकालिक नीति नहीं हो सकती।

2. युवा कनेक्ट बनाना

नेपाल के युवाओं में भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने के लिए सांस्कृतिक और शैक्षिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए। भारतीय विश्वविद्यालयों में नेपाली छात्रों के लिए स्कॉलरशिप बढ़ाना। युवाओं के साथ डिजिटल डायलॉग, हैकाथॉन और स्किल ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू करना।

3. सुरक्षा और सीमा प्रबंधन

खुफिया एजेंसियों को सतर्क रहना होगा कि नेपाल की अस्थिरता का फायदा माओवादी या इस्लामी चरमपंथी न उठाएं। सीमा चौकियों पर निगरानी बढ़ानी होगी। ड्रग्स और हथियारों की तस्करी रोकने के लिए संयुक्त पेट्रोलिंग बढ़ानी होगी।

भारत के लिए सबक

नेपाल में जेन-ज़ी का आंदोलन सिर्फ पड़ोसी देश की खबर नहीं है, बल्कि भारत के लिए चेतावनी है। लोकतंत्र में युवाओं की आवाज़ को अनदेखा नहीं किया जा सकता। सोशल मीडिया अब इतना शक्तिशाली हो चुका है कि यह संसद और सत्ता दोनों को चुनौती दे सकता है।

भारत को नेपाल में स्थिरता बनाए रखने के लिए मदद करनी चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी समझना होगा कि भारत के भीतर भी यही जेन-ज़ी अगली राजनीतिक दिशा तय करने वाली है। इसलिए बेहतर होगा कि भारत नेपाल को लोकतांत्रिक सुधार की राह पर सहयोग करे और अपने घर में भी युवाओं की नाराज़गी को समय रहते सुने। नेपाल का यह डिजिटल आंदोलन दक्षिण एशिया के लिए एक सबक है — अब सत्ता का संघर्ष सिर्फ सड़कों पर नहीं, स्क्रीन पर भी लड़ा जाएगा। जो सरकारें इस बदलाव को समझेंगी, वही टिक पाएंगी।

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