राजस्थान के अलवर ज़िले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है जिसने पूरे देश को झकझोर दिया है। यहां एक ईसाई मिशनरी हॉस्टल में 50 से अधिक मासूम बच्चों का सुनियोजित तरीके से ब्रेनवॉश किया जा रहा था। बच्चों को कहा जाता था –“अगर भगवान को मानोगे तो नर्क में जाओगे, आग में जलाए जाओगे।”
पुलिस ने छापा मारकर इस रैकेट का पर्दाफाश किया और दो लोगों को गिरफ्तार किया।
मासूम बच्चों पर सुनियोजित हमला
यह घटना सिर्फ अपराध नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक युद्ध है।
6 से 17 साल की उम्र के बच्चों को रोज सुबह-शाम हिंदू देवी-देवताओं को “नकली” कहा जाता था।
मूर्तियाँ पानी में डुबोकर कहा जाता था – “देखो, तुम्हारा भगवान डूब गया।”
बच्चों को सिर्फ बाइबल पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता था।
मुफ्त पढ़ाई और खाने का लालच देकर धर्म बदलने के लिए तैयार किया जाता था।
यह केवल धार्मिक शिक्षा नहीं, बल्कि संस्कृति मिटाने का अभियान है।
16 साल से चल रहा था गोरखधंधा
अलवर पुलिस ने अहमदाबाद निवासी अमृत और स्थानीय निवासी सोनू रायसिख को गिरफ्तार किया। इस दौरान हॉस्टल से मिशनरी साहित्य, प्रचार सामग्री और बच्चों की सूची बरामद हुई। जानकारी हो कि हॉस्टल का संचालन तमिलनाडु स्थित संस्था ‘नया जीवन संस्था’ द्वारा किया जा रहा था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सिल्वा चरण नामक व्यक्ति पिछले 16 वर्षों से इस इलाके में सक्रिय है और धर्मांतरण करवाता है। यह साफ दिखाता है कि यह केवल स्थानीय घटना नहीं, बल्कि एक संगठित नेटवर्क का हिस्सा है।
राष्ट्रवाद और अस्मिता का प्रश्न
अलवर का यह मामला भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक अस्मिता पर सीधा हमला है। हिंदू धर्म भारत की सभ्यता की आत्मा है। मासूम बच्चों को अपने ही धर्म से घृणा करना सिखाना केवल व्यक्तिगत अपराध नहीं, बल्कि राष्ट्रविरोधी कृत्य है। यह वही तरीका है जिससे उपनिवेशवादियों ने भारतीय समाज को मानसिक गुलामी में जकड़ा था। आज जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी पहचान मजबूत कर रहा है, ऐसे षड्यंत्र राष्ट्र को भीतर से कमजोर करने की कोशिश हैं।
केंद्र और राज्य से सख्त कार्रवाई की मांग
यह मामला केवल अलवर का नहीं, बल्कि देशभर के लिए चेतावनी है। राजस्थान सरकार से मांग उठ रही है कि इस पूरे नेटवर्क की गहन जांच कराई जाए और इसके पीछे फंडिंग व विदेशी संपर्कों का खुलासा हो। केंद्र सरकार से राष्ट्रवादी संगठन मांग कर रहे हैं कि पूरे देश में सख्त धर्मांतरण-रोधी कानून लाया जाए, जिससे लालच, डर या धोखे से धर्मांतरण करने वालों को कड़ी सजा मिले। बच्चों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी तंत्र बनाया जाए, जो हॉस्टलों और निजी संस्थाओं में चल रहे धार्मिक ब्रेनवॉश को रोक सके।
समाज की जिम्मेदारी
ऐसे मामलों के प्रति सरकार के साथ समाज को भी जागरूक होना होगा। गांव-गांव, कस्बे-कस्बे में यह संदेश पहुंचना चाहिए कि धर्म कोई बिकने वाली चीज नहीं है। स्थानीय प्रशासन पर दबाव बनाया जाना चाहिए कि वे ऐसे संस्थानों की निगरानी करें। गरीब बच्चों के लिए सरकारी छात्रावास, शिक्षा और भोजन योजनाओं को और मजबूत करना होगा, ताकि वे लालच में न फँसें।
अलवर का यह मामला एक गंभीर चेतावनी है। यह दिखाता है कि अगर समाज और प्रशासन समय रहते जागरूक न हों, तो ऐसे नेटवर्क धीरे-धीरे हमारी जड़ों को खोखला कर देंगे। यह सिर्फ एक पुलिस केस नहीं, बल्कि राष्ट्र सुरक्षा का मामला है। अब वक्त है कि सरकारें निर्णायक कदम उठाएं, दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दें और बच्चों को मानसिक गुलामी से मुक्त कराएं। तभी भारत की सांस्कृतिक अस्मिता सुरक्षित रह पाएगी।